आम चुनाव से ठीक पहले कृषि पर चिंतन करने की क्यों पड़ी जरूरत?

आम चुनाव से ठीक पहले कृषि पर चिंतन करने की क्यों पड़ी जरूरत?

कृष‍ि क्षेत्र की सफलता के साथ बढ़ रही हैं चुनौत‍ियां, क‍िन नीत‍ियां और रणनीत‍ियों के जर‍िए इनसे न‍िपटेगी सरकार. भारत में लाखों किसान ऐसे हैं जो खेती करते हैं लेकिन उनके पास जमीन नहीं है. दूसरी ओर ऐसे भी किसान हैं जिनके पास सौ दो सौ एकड़ जमीन है लेकिन वह खेती नहीं करते. यह भी एक चुनौती है.  

Advertisement
आम चुनाव से ठीक पहले कृषि पर चिंतन करने की क्यों पड़ी जरूरत?नास कांप्लेक्स में आयोज‍ित कृष‍ि मंत्रालय का च‍िंतन श‍िव‍िर (Photo-Kisan Tak).

देश में पहली बार कृष‍ि क्षेत्र को आगे बढ़ाने और उसमें बड़ा बदलाव करने के ल‍िए च‍िंतन श‍िव‍िर आयोज‍ित क‍िया जा रहा है. ज‍िसमें भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) से जुड़े वैज्ञान‍िक, कृष‍ि मंत्रालय के अध‍िकारी और इस क्षेत्र से जुड़े थ‍िंक टैंक अपने आइड‍िया दे रहे हैं ताक‍ि अगले 25 साल का रोडमैप बनाया जा सके. भव‍िष्य में खेती की द‍िशा-दशा क्या होगी. क‍िसानों के ल‍िए खेती कैसे प्रॉफ‍िटेबल बनेगी. सरकार और प्राइवेट सेक्टर की क्या भूम‍िका होगी और इस क्षेत्र के सामने जो चुनौत‍ियां द‍िख रही हैं उनसे न‍िपटकर आगे बढ़ने के ल‍िए नीत‍ियां और रणनीत‍ियां क्या होंगी इस पर च‍िंंतन श‍िव‍िर में मंथन हो रहा है. लेक‍िन सवाल यह है क‍ि आख‍िर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कृष‍ि क्षेत्र पर च‍िंता और च‍िंतन करने की जरूरत क्यों पड़ी? 

दरअसल, सियासत में संख्या बल सबसे अहम होता है. देश में 14 करोड़ किसान परिवार हैं. इसका मतलब करीब 55 करोड़ लोग. वे लोग जो गांवों में रहते हैं और सबसे ज्यादा वोट करते हैं. इसलिए सरकार इस पर खासतौर पर फोकस कर रही है. कृष‍ि क्षेत्र अच्छा पर‍िणाम देगा तो अर्थव्यवस्था अच्छी रहेगी और क‍िसान खुश रहेगा तो आने वाले चुनाव में वोटों की फसल काटी जा सकती है. इसल‍िए क‍िसानों पर बड़ा दांव खेला जा रहा है. एमएसपी की व्यवस्था में बड़ा पर‍िवर्तन करने की कोश‍िश हो रही है, ताक‍ि उसका लाभ अध‍िक क‍िसानों तक पहुंचे. प‍िछले सप्ताह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था क‍ि सरकार हर साल हर क‍िसान पर कम से कम 50 हजार रुपये खर्च कर रही है. इसे उन्होंने क‍िसानों के ल‍िए गारंटी बताया था. इसी सोच का ह‍िस्सा यह च‍िंतन श‍िव‍िर भी है. ताक‍ि उसके जर‍िए इस क्षेत्र में कुछ ऐसा क‍िया जा सके, जो लंबे समय तक पर‍िणाम दे. 

इसे भी पढ़ें: Kala Namak Rice: बासमती की तरह कैसे क‍िसानों की ताकत बनेगा काला नमक चावल? 

सरकार का क्या है नजर‍िया 

मोदी सरकार ने कई क्षेत्रों में बड़ा पर‍िवर्तन क‍िया है. लेक‍िन, कृष‍ि क्षेत्र में वो कोई ऐसा बदलाव नहीं कर पाई, ज‍िससे क‍ि तस्वीर ही बदल जाए. तीन कृष‍ि कानूनों को उसे मजबूरी में वापस लेना पड़ा था. इन कानूनों के ख‍िलाफ 13 महीने लंबा क‍िसान आंदोलन चला. क‍िसान नेताओं का आरोप था क‍ि सरकार ने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले लोगों से व‍िचार-व‍िमर्श नहीं क‍िया. भरोसे में नहीं ल‍िया. अब च‍िंतन श‍िव‍िर के जर‍िए सरकार दो द‍िन में व‍िशेषज्ञों से कृष‍ि क्षेत्र में बड़े बदलाव के ल‍िए राय ले रही है. लोगों से आइड‍िया ले रही है. सरकार क्या करना चाहती है. इसे आप आईसीएआर के महान‍िदेशक डॉ. ह‍िमांशु पाठक और कृष‍ि सच‍िव मनोज आहूजा के व‍िचारों से समझ सकते हैं.

ह‍िमांशु पाठक के क्या हैं व‍िचार

भारत को अगर एक विकसित देश बनना है तो कृषि क्षेत्र को विकसित किए बिना ऐसा करना संभव नहीं है. कृषि के बिना भारत का समग्र विकास संभव नहीं है. भारत ऐसा देश है जहां हर तरह का क्लाइमेट मौजूद है. मुख्य तौर पर 15 प्रमुख क्लाइमेटिक जोन होते हैं. इन सभी तरह के क्लाइमेट‍िक जोन भारत में मिलते हैं. अगर मिट्टी की बात करें तो पूरी दुनिया में 50 तरह की मिट्टी पाई जाती है. उसमें से 46 तरह की मिट्टी हमारे भारत में मिलती है. 

भारत में लाखों किसान ऐसे हैं जो खेती करते हैं लेकिन उनके पास जमीन नहीं है. दूसरी ओर ऐसे भी किसान हैं जिनके पास सौ दो सौ एकड़ जमीन है लेकिन वह खेती नहीं करते. क्लाइमेटिक जोन, मिट्टी, फसलों और हर तरह के किसानों को ध्यान में रखना है और उस पर चिंतन करके आगे बढ़ना है. इन सब को ध्यान में रखते हुए आने वाला जो समय है उसमें जो चुनौतियां है उसका सामना करना है. 

भारतीय कृषि की उपलब्धियां तो सब जानते हैं लेकिन हमें चुनौतियों पर भी बात करनी होगी. आने वाले 24-25 साल में हमें खेती से जुड़ी सारी समस्याओं का समाधान करना है. हम चाहते हैं कि भारतीय कृषि नेचर फ्रेंडली हो यानी प्रकृति के साथ मिलकर चलें. जल, जमीन, जलवायु, जंगल, जीवन और जनता सबका ध्यान रखना है. एग्रीकल्चर का बाजार के साथ तालमेल बैठाना है. यही नहीं एग्रीकल्चर को कल्चर बनाना है. 

बहुत कम ही ऐसे मंत्रालय हैं जिनका कृषि क्षेत्र से संबंध नहीं है. हमें कृषि क्षेत्र को बदलने और उसे आगे बढ़ाने के लिए आगे जो कुछ भी सोचना है उसे नए तरीके से सोचना और करना है. अगर पुराने तरीके से सब कुछ करते जाएंगे तो हमें अच्छा रिजल्ट नहीं मिलेगा. कृषि की जो हमारी परंपरा है, उसे मॉडर्न साइंस से जोड़ना है. साइंस में ऐसे टूल्स और टेक्निक आ गए हैं कि कई सारी समस्याओं का समाधान हम आसानी से कर सकते हैं. हमें इस पर तेजी से काम करना है कि आने वाले 25 साल में भारतीय कृषि विकसित कृषि हो जाए. 

मनोज आहूजा क्या सोचते हैं? 

अगले 25 वर्ष में कृष‍ि की क्या रूपरेखा क्या होगी. प्राइवेट सेक्टर और सरकार की क्या भूम‍िका होगी. हमारी नीत‍ियां और रणनीत‍ियां क्या होंगी. इस पर अब च‍िंतन और काम करने का वक्त आ गया है. आजादी के बाद भारतीय कृष‍ि का इत‍िहास देखें तो हर‍ित क्रांत‍ि के दौरान सरकार ने कई कदम उठाए थे. र‍िसर्च पर जोर द‍िया गया. बाहर से बीज मंगाए गए. क‍िसानों के ल‍िए कृष‍ि लागत और मूल्य आयोग की स्थापना की गई. भारतीय खाद्य न‍िगम बनाया गया.जो हर‍ित क्रांत‍ि की सफलता म‍िली उसके पीछे बहुत काम क‍िया गया गया था. 

हर‍ित क्रांत‍ि की बदौलत ही 1950 में जो हमारा खाद्यान्न 50 म‍िल‍ियन टन होता था वो अब बढ़कर 330 लाख टन हो गया है. उत्पादन साढ़े छह गुना बढ़ गया है. लेक‍िन आज कई नई चुनौत‍ियां भी हमारे सामने हैं. आज के द‍िन हम 50 ब‍िल‍ियन डॉलर का एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट कर रहे हैं. लेक‍िन इसके साथ हम चुनौत‍ियों से बच नहीं सकते. हीटवेव आ रहा है. बार‍िश का पैटर्न बदल रहा है. इन समस्याओं से लड़ने के ल‍िए क‍िसानों को तैयार करना है.

हमारे देश में 40 फीसदी वर्कफोर्स कृष‍ि क्षेत्र से जुड़ी हुई है. अमेर‍िका में यह 2-3 फीसदी और चीन में 22 फीसदी है. इसल‍िए हमारे ल‍िए कृष‍ि क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है. हमें इससे जुड़े लोगों की इनकम ठीक रखनी है. क‍िसानों के ल‍िए खेती को प्रॉफ‍िटेबल बनाना है. लेक‍िन, इन सब कार्यों को करते वक्त हमें ब‍िल्कुल नए स‍िरे से सोचना होगा. जो हमारी पुरानी सोच है उसके साथ हम नया भव‍िष्य नहीं बना सकते. हमें जो आता है उसे क‍िनारे रखकर नए स‍िरे से सोचना होगा और काम करना होगा. 

इसे भी पढ़ें: हर राज्य में उत्पादन लागत अलग तो एमएसपी एक क्यों, क‍िसानों के साथ कब होगा न्याय?

 

POST A COMMENT