गौतम बुद्ध के महाप्रसाद के रूप में चर्चित काला नमक चावल (Kala Namak Rice) के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है. इसलिए इसके धान की खेती का दायरा भी तेजी से बढ़ रहा है. पूर्वांचल में खेती की नई पहचान बनकर उभर रहे काला नमक धान का रकबा इस साल 80 हजार हेक्टेयर होने का अनुमान है. इसके बीज की बिक्री को देखते हुए मशहूर कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी ने यह अनुमान लगाया है. काला नमक चावल को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सबसे ज्यादा काम प्रो. चौधरी ने ही किया है. 'किसान तक' को चौधरी ने दावा कि इस साल रकबे में काफी वृद्धि होने की संभावना है. इसका जीआई टैग हासिल करने वाले 11 जिलों में पिछले चार-पांच साल के दौरान इसका रकबा तेजी से बढ़ा है. क्योंकि इसकी नई किस्मों में पैदावार अच्छी है.
लेकिन, एक बड़ा सवाल यह है कि इतनी अच्छी गुणवत्ता का चावल आखिर एक्सपोर्ट में क्यों पीछे है? जिस तरह से हरियाणा, पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश में बासमती चावल (Basmati Rice) किसानों की एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है, क्या उसी तरह काला नमक कभी पूर्वांचल के किसानों के लिए काम कर पाएगा. अगर ऐसा होगा तो कैसे? एक बात तो तय है कि सिर्फ घरेलू बाजार में बेचने से काला नमक उत्पादक किसानों को अच्छा फायदा नहीं मिलेगा. इसके लिए एक्सपोर्ट को बढ़ावा देना ही होगा.
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चौधरी कहते हैं कि बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन की तरह ही काला नमक एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन बनाने की जरूरत है. ताकि उसकी गुणवत्ता की भी जांच पड़ताल हो सके और एक्सपोर्ट के लिए प्रमोशन हो. इससे इंडस्ट्री जुड़े. काला नमक का अभी नाम मात्र का एक्सपोर्ट होता है. यूपी में एक बार बासमती एक्सपोर्टरों को बुलाकर इसकी कोशिश की गई थी लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ी. चौधरी का दावा है कि काला नमक चावल में सामान्य चावल के मुकाबले प्रोटीन दोगुना, आयरन तीन गुना और जिंक चार गुना है. जबकि ग्लाइसेमिक इंडेक्स 50 के आसपास ही है. इसलिए प्राचीन वैराइटी का यह चावल दाम, खासियत और स्वाद तीनों मामले में बासमती को मात देता है.
दूसरी ओर, ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सीनियर एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बिनोद कौल कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि काला नमक चावल बेहतरीन है. इसके जीआई टैग मिला हुआ ही है. ऐसे में एक्सपोर्ट में कोई दिक्कत नहीं है. बस राज्य सरकार और केंद्र को मिलकर इसे प्रमोट करना होगा. एक्सपोर्ट में गुणवत्ता और उपलब्धता बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसे में उपलब्धता बढ़ानी होगी ताकि ऑर्डर आए तो वो पूरा हो सके. इसके लिए इससे जुड़े एफपीओ को काम करना होगा. देखना होगा कि क्या इतना उत्पादन हो रहा है कि हम एक्सपोर्ट करने की स्थिति में हैं? जब उत्पादन पर्याप्त होगा और एक्सपोर्ट के नॉर्म्स पूरे होंगे तो फिर इसमें कोई शक नहीं कि बासमती की तरह यह किसानों की ताकत न बने. एक्सपोर्टर तो तैयार हैं.
संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रह चुके चौधरी ने बताया कि 2009 तक पूर्वांचल में सिर्फ 2000 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही थी. क्योंकि पुरानी किस्मों में पैदावार बहुत कम होती थी. लोग इसकी कमर्शियल खेती नहीं कर रहे थे. लेकिन, जब नई किस्में विकसित की गईं तो इसकी खेती में जैसे पंख लग गए. काला नमक धान बौना होने के बाद पैदावार बढ़ी और किसान फायदे में आने लगे तब जाकर रकबा बढ़ना शुरू हुआ.
पूर्वांचल के जीआई टैगधारी 11 जिलों में इसका रकबा 2021 के दौरान 50 हजार हेक्टेयर हुआ. इस साल 80 हजार हेक्टेयर होने का अनुमान है. क्योंकि बीज की बंपर बिक्री हुई है. सिद्धार्थनगर में इसका सबसे ज्यादा एरिया है. इसकी उत्पत्ति करीब 2700 साल पहले सिद्धार्थनगर से ही मानी जाती है. चौधरी कहते हैं कि किसानों को चाहिए कि वो इसकी खेती बढ़ाएं और फायदा कमाएं.
काला नमक किरण इसकी सबसे नई वैराइटी है, जिसमें प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 50 क्विंटल है. यह लंबी अवधि का धान है. इसे पकने में 145 का वक्त लगता है. जबकि 2007 में आई इसकी केएन-3 किस्म में सिर्फ 25 क्विंटल की पैदावार थी. बहुत कम उत्पादन होने की वजह से ही किसान इसकी खेती का विस्तार नहीं करते थे.
पूर्वांचल के 11 जिलों को काला नमक चावल का जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग मिला हुआ है. इनमें सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, संत कबीरनगर, बस्ती, महराजगंज, बहराइच, बलरामपुर, बाराबंकी और गोंडा शामिल हैं. ये जिले काला नमक चावल का उत्पादन और बिक्री दोनों कर सकते हैं. इनके किसान जुट जाएंगे उत्पादन बढ़ाने में, लेकिन एक्सपोर्ट की बात तब बनेगी जब इंडस्ट्री आगे आए. खासतौर पर वो लोग जिन्हें बासमती का एक्सपोर्ट करने का अनुभव है. अभी तक देश के बाहर सिर्फ बासमती की ही ब्रांडिंग होती है. ऐसे में काला नमक चावल पीछे छूट जाता है.
गुणवत्ता और धार्मिक पहचान की वजह से इस चावल में एक्सपोर्ट की काफी संभावनाएं हैं. क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है. इसे बुद्धा राइस भी कहते हैं. ऐसे में थाइलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, भूटान, जापान, ताइवान, सिंगापुर और श्रीलंका जैसे देशों में प्रमोट करने से काफी फायदा मिल सकता है, जहां बौद्ध धर्म के अनुयायी अधिक हैं.
प्रो. चौधरी के मुताबिक ब्रिटिश शासन के दौरान भी काला नमक चावल एक्सपोर्ट होता रहा है. लेकिन आजादी के बाद पहली बार 2019-20 में 200 क्विंटल चावल सिंगापुर भेजा गया. वहां के लोगों को पसंद आया. इसके बाद दुबई और जर्मनी में भी एक्सपोर्ट किया गया. लेकिन, बड़े पैमाने पर कोई काम नहीं हो पाया. जबकि, इसका चावल बासमती से भी महंगा है. इसका दाम 120 रुपये से लेकर 300 रुपये प्रति किलो तक है.
जब तक एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन नहीं बनेगा और इंडस्ट्री से इसे नहीं जोड़ा जाएगा तब तक सही मायने में यह पूर्वांचल के किसानों की ताकत नहीं बन पाएगा. हम सब मिलकर इसे आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. सरकार भी इस मसले पर संजीदा है. इसीलिए उसने काला नमक महोत्सव करवाया था.
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