किसानों को बारिश और बाढ़ जनित समस्याओं से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी की गई है. किसानों को कहा गया है कि वह खेतों में भरे पानी की निकासी की तत्काल व्यवस्था करें. ताकि फसल में सड़न रोग के प्रकोप को रोका जा सके. कृषि एक्सपर्ट ने कहा है कि मसूर, अरहर समेत अन्य दलहन फसलों को मोजेक रोग समेत अन्य कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए खास सतर्कता बरतनी होगी.
भारत में डायबिटीज कि समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. डायबिटीज एक पुरानी बीमारी है, जिसमें खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है, जो शरीर में कई तरह की समस्याओं का कारण बनती है. डायबिटीज मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है, टाइप 1 और टाइप 2. टाइप 2 में शरीर इंसुलिन के प्रति असंवेदनशील हो जाता है. नियमित व्यायाम, आहार नियंत्रण और दवा से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहती है.
महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश के किसानों को बारिश, बाढ़ के साथ ही कीटों और रोगों से बचाव की सलाह दी गई है. इन इलाकों में पानी में डूबी फसलों को बचाने के लिए किसानों से तत्काल जल निकासी की व्यवस्था करने को कहा गया है.
एनपीके और डीएपी को अक्सर पूरी खेती के लिए ही विशेषज्ञ बेस्ट करार देते हैं. एनपीके यानी नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम के अलग-अलग अनुपातों वाले उर्वरक. वहीं डीएपी यानी डायमोनियम फॉस्फेट और इसमें एनपीके का भी कुछ हिस्सा होता है. जिन क्षेत्रों की मिट्टी में फॉस्फोरस की कमी होती है तो वहां पर इस उर्वरक का प्रयोग होता है. गुलाब के लिए डीएपी को सबसे अच्छा उर्वरक माना जाता है.
टमाटर के पौधे में अगर पर्ण सुरंगक जैसे कीड़े लग जाएं तो फिर उसमें फूल या फिर फल नहीं आ पाते हैं. यह कीड़ा तब हमला करता है जब पौधा नया होता है और ऐसे में उसे बहुत नुकसान भी होता है. इस कीड़े के प्रकोप से पौधे की पत्तियां मुरझा जाती हैं और ऐसे में पौधे में फल या फूल आने की संभावना भी जीरो हो जाती है.
महिला किसान सुनीता पूर्विया ने बताया कि ढैंचा की फसल न तो बरसात में खराब होती है और न ही गर्मी का इस पर कोई फर्क पड़ता है. खास बात ये है कि इसमें किसी भी तरह का कीट भी नहीं लगता है. उन्होंने कहा कि जब खेत में ढैंचा का पौधा 4-5 फीट ऊंचाई का हो जाए तो उसमें ट्रैक्टर से हैरो लगाकर जुताई कर देनी चाहिए. यह ढैंचा का पौधा मिट्टी में मिलकर खाद बन जाता है.
किसानों को कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती में कई बार कीट और रोगों की समस्या से जूझना पड़ता है. ऐसे में किसान मचान विधि का उपयोग कर फसल को कीड़ों और बीमारियों से बचा सकते हैं. साथ ही इससे उपज भी बढ़ेगी और किसानों का मुनाफा बढ़ेगा.
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को तोरिया खेती के लिए सलाह जारी की है. जिन किसानों ने खरीफ सीजन की बड़ी फसलों जैसे धान, मक्का आदि की बुवाई नहीं की है, उनके लिए तोरई की बुवाई के यह सही समय है. देरी करने पर गेहूं की बुवाई पर असर पड़ सकता है.
गुलाब के पौधे को वास्तु शास्त्र में शुभ माना जाता है या अशुभ. घर में गुलाब का पौधा लगाने से क्या कभी भी पैसों की कमी होती है या नहीं. आइए जानते हैं गुलाब से जुड़े वास्तु टिप्स के बारे में.
देश के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है. इन दिनों यूपी के कुछ इलाकों में गन्ने की फसल पर सूखा रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है. ऐेसे में इस रोग से फसल का बचाव जरूरी है, ताकि उपज और मुनाफे पर असर न पड़े.
भारत सरकार लगातार पशुधन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है. देश की पशुधन अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में असम में भी राज्य सरकार इसके लिए घर बैठे पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा दे रही है. इससे पशुपालकों को आसानी होगी और पशुधन की आबादी बढ़ेगी.
सितंबर के महीने में धान की फसल में बालियां बनने की शुरूआत होती है. इस दौरान कुछ खतरनाक कीटों का प्रकोप फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिर सकता है. इसलिए, किसानों को अपने खेतों की नियमित और सतर्कता से निगरानी करनी चाहिए और कीट या रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उचित रोकथाम के उपाय अपनाने चाहिए.
गमले में गार्डनिंग करने के लिए आपको पर्याप्त मात्रा में मिट्टी की जरूरत होती है. वहीं, अगर आपको गमले में डालने के लिए पर्याप्त मिट्टी नहीं मिलती है, तो आप कोकोपीट के जरिए अपनी बागवानी के शौक को पूरा कर सकते हैं.
भारत में गाजर की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. सर्दियों के सीजन में इसकी अच्छी मांग और खपत रही है. सर्दियों में खासकर इसका इस्तेमाल गाजर का हलवा बनाने में किया जाता है. देश में हरियाणा, पंजाब, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार में सबसे ज्यादा गाजर की खेती की जाती है.
मटर एक ऐसी सब्जी है, जिसका उपयोग भारत के हर घर में होता है. अधिक मांग की वजह से किसान भी इसकी खेती करते हैं. साथ ही इसकी फसल भी जल्दी तैयार हो जाती है. ऐसे में जानिए इसकी चार अगेती किस्माें के बारे में जिन्हें लगाने पर नवंबर में आपको फसल प्राप्त हो जाएगी.
लंपी स्किन डिजीज, वह बीमारी जो आजकर पशुओं में काफी तेजी से फैल रही है. यह एक संक्रामक रोग है जो ज्यादातर गाय और भैंसों में होता है. एक कीड़े के काटने की वजह से होने वाली यह बीमारी जानवरों की जान तक ले सकती है. ऐसे में यह काफी जरूरी हो जाता है कि पशुपालकों को यह पता हो कि अगर उनके जानवर को यह रोग लग गया है तो उस समय क्या किया जाए.
अगर बकरियों को कोई घाव हो गया है और नियमित तौर पर उसकी देख-रेख या ड्रेसिंग नहीं होती है तो गंदगी की वजह से खास प्रजाति की मक्खियां घाव में अंडे दे देती हैं. इन मक्खियों के लार्वा में बदलने की वजह से मैगट घाव बकरियों में हो जाते हैं. ये लार्वा या मेगट्स बकरियों का खून और घाव में मौजूद मवाद या घाव के सड़े टिश्यूज को खाकर जिंदा रहते हैं. ऐसे में घावों से खून, या फिर लाल रंग का एक लिक्विड निकलता रहता है.
फसल की बुवाई से पहले किसानों को बीज उपचार करने की सलाह दी जाती है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसान फसल से सही उत्पादन और अच्छी क्वालिटी चाहते हैं तो उन्हें फसल की बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना चाहिए. इसके लिए किसान FIR विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. आइए जानते हैं ये विधि क्या है.
उत्तर प्रदेश में इस साल गन्ने की फसल में पीला पड़ने और सूखने की समस्या तेजी से बढ़ रही है. गन्ना विभाग ने इस समस्या के पीछे तीन मुख्य कारणों की पहचान की है और किसानों को इससे बचने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं. गन्ना विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को इन सुझावों का पालन करना चाहिए ताकि गन्ने की फसल को पीला होने और सूखने से बचाया जा सके.
कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि बरसात मे अमरूद की फसल लेते समय सबसे ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत होती है. क्योंकि, इस समय फल मक्खी का प्रजनन तेज होता है. फल मक्खी अमरूद के फूल और पत्ती और फल पर अंडे दे देती है, जिससे काले निशान पड़ने लगते हैं और फल का गूदा खराब होने लगता है. शुरुआत में यह दिखता नहीं है. ऐसे में किसानों को पेड़ के फूलों पर ध्यान देने की जरूरत होती है.
पशुपालन एक कृषि व्यवसाय है जिसे भूमिहीन किसान भी कर सकते हैं. पशुपालन करने से किसानों को दूध के साथ-साथ गोबर की खाद भी मिलती है. पशुपालन से पहले किसानों को पशु खरीदने के लिए कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है.
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