किचन गार्डन का सबसे बड़ा फायदा है अब आपको फ्रेश और केमिकल फ्री खाना घर पर ही मिलेगा. यहां पर उगाई गईं सब्जियां और फल पूरी तरह ऑर्गेनिक होते हैं, जिनमें किसी भी प्रकार का हानिकारक रसायन नहीं होता. साथ ही पैसों की भी बचत होगी. अब जब घर में ही जरूरी सब्जियां उगाई जा रही हैं तो फिर बाजार पर निर्भरता भी कम होगी और इससे पैसों की बचत होगी.
रबी सीजन में गेहूं के अलावा किसान दलहनी और मसाला फसलों की भी खेती कर सकते हैं. वहीं कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह समय लहसुन और धनिया की बुवाई से लेकर मक्का, चना, मटर, राजमा, मेथी सहित अन्य फसलों की खेती के लिए उपयुक्त है, जिसे लेकर कृषि वैज्ञानिक मुख्य रूप से किसानों को सलाह दे रहे हैं.
तापमान और जलवायु आलू के उत्पादन को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं. आलू के अच्छे अंकुरण के लिए 24-25 डिग्री और उत्पादन और वानस्पतिक वृद्धि के लिए 18-20 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान अनुकूल होता है जबकि कंद निर्माण के लिए 17-20 डिग्री सेल्सियस जरूरी है. आलू की फसल कई जलवायु क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है.
अगर आप पूरे साल ताजा पुदीना चाहते हैं, तो बस सही कटिंग करें, पौधे को हल्की धूप दें, समय-समय पर पानी और देखभाल करें. यही आसान तरीका है जिससे आपका घर हमेशा पुदीना से महकता रहेगा और आपकी रसोई में ताजगी बनी रहेगी. ताजा पुदीना सिर्फ आपके खाने का स्वाद बढ़ाएगा, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. ताजे पुदीना में एंटीऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्व होते हैं जो पाचन और इम्यूनिटी के लिए अच्छे हैं.
मूंगफली की फसल में फलियां बनते समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है. अगर नमी कम हो, तो फलियों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है. ऐसे में पौधों की वृद्धि की अवस्था के अनुसार समय-समय पर सिंचाई करना लाभदायक होता है. मूंगफली के पौधों में फूल एक साथ नहीं आते. गुच्छेदार प्रजातियों में फूल करीब दो महीनों तक और फैलने वाली प्रजातियों में लगभग तीन महीनों तक आते रहते हैं.
भारत में पीच (आड़ू) की खेती मुख्य रूप से ठंडे और पहाड़ी इलाकों में की जाती है. भारत में पीच की खेती के प्रमुख क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश हैं यानी वो सभी जगहें जहां पर काफी सर्दी पड़ती है और बर्फबारी होती है. सर्दियों के मौसम में अपने पीच (आड़ू) के पेड़ को ठंडी हवाओं, पाले और नमी की कमी से बचाना बेहद जरूरी है.
आम के बाग जिसके पास हैं उनका सपना होता है कि उनके बाग में पेड़ों पर बंपर फल लगें. इसके लिए लोग साल भर मेहनत करते हैं—कभी खाद, कभी पानी, तो कभी कटाई-छंटाई. लेकिन क्या आप जानते हैं कि साल में तीन महीने ऐसे आते हैं जब आम के पेड़ पर 'कोई भी काम न करना' ही सबसे 'बड़ा काम' होता है? आपकी एक छोटी सी गलती से अगले साल के आम की पूरी उपज को बर्बाद कर सकती है.
अगर आप सब्जियों और फलों की छिलकों के वेस्ट को फेंक देते हैं तो ऐसा न करें क्योंकि घर के किचन वेस्ट से खाद बनाना बहुत ही आसान और किफायती होता है. इसे कोई भी अपने घर पर तैयार कर सकता है.
राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में सरकारी दरों पर प्रमाणित बीज उपलब्ध. किसानों को दी गई सतर्कता और जांच की सलाह. गेहूं सीजन की शुरुआत से पहले नकली बीजों के खिलाफ अलर्ट जारी. किसानों को प्रमाणित, सीलबंद बीज खरीदने की सलाह. 1800-180-1551 पर टोल फ्री हेल्पलाइन — सुबह 6 से रात 10 बजे तक. राजस्थान, हरियाणा के कृषि केंद्रों पर सरकारी रेट में हाई क्वालिटी बीज उपलब्ध.
अब जब दिवाली आ रही है तो बड़े पैमाने पर बनने वाली मिठाइयां बाजारों में सजेंगी, लेकिन लालची लोग दूध में मिलावट करेंगे और दूध में डिटर्जेंट, यूरिया और सिंथेटिक स्टार्च मिलाकर मिठाइयों को बेचेंगे, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है. दूध और मिठाई हमें खरीदना और उपयोग करना पड़ता है क्योंकि ये हमारे दैनिक आहार का हिस्सा है. हम चाहें तो इन चीजों के असली और नकली होने की पहचान कर सकते हैं. इसकी लागत मात्र 10 से 12 रुपये है, सभी टेस्ट 8 से 10 मिनट में पूरे हो जाते हैं.
कम समय और कम इन्वेस्टमेंट में अधिक कमाई के लिए सब्जियों की खेती करना अच्छा माना जाता है. हालांकि रबी सीजन में सब्जियों की खेती के लिए बेहतर विकल्प जान लीजिए.
छोटे और सीमांत किसानों के लिए खुशखबरी है. अब बीजों की बुवाई के पारंपरिक तरीके को छोड़ आधुनिक कृषि यंत्रों की मदद से खेती करना होगा आसान. रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही प्लांट रिप्लेसर, अर्थ ऑगर, रोटरी डिबलर और डिबलर जैसे उपकरण किसानों के लिए नई उम्मीद बनकर सामने आए हैं, जो समय और श्रम दोनों की बचत के साथ फसल उत्पादन को भी बढ़ाएंगे.
केले के छिलके सिर्फ फेंकने के लिए नहीं होते. ये पौधों के लिए पोटैशियम, फॉस्फोरस और कैल्शियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का खजाना हैं. ये तत्व पौधों की जड़ों को मजबूत करते हैं, फूलों और फलों की गुणवत्ता बढ़ाते हैं और पौधों को रोगों से लड़ने की शक्ति भी देते हैं.
कुछ किसानों की समस्या है कि उनके खेत में पानी की कमी के चलते वे खेतों की बुवाई नहीं कर पाते हैं, आपको बता दें कि कुछ ऐसी फसलें हैं जिन्हें उगाने के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है.
इस महीने में पौधा लगाना विशेष रूप से लाभकारी होता है, क्योंकि इन फलों को अक्टूबर में लगाकर कुछ ही महीनों में आप ताजे फल प्राप्त कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं किन बातों का ध्यान रखकर आप अपने बगीचे में फलों के पौधे लगाएं.
कॉफी पाउडर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह रासायनिक उर्वरकों की तुलना में पूरी तरह प्राकृतिक है. इससे न केवल पौधों को पोषण मिलता है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहते हैं. साथ ही, यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध विकल्प है, जो किसी भी घर में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है.
Marigold Disease: इन दिनों मौसम में हुए बदलाव से गेंदे की फसल में रोग का खतरा बढ़ने लगा है, जिससे पत्तियां पीली होकर सूखने लगे हैं. जिससे फूलो का रंग और ताजगी दोनों प्रभावित हो रहे हैं.
सरसों की अच्छी पैदावार के लिए किसानों के सामने सबसे बड़ा सवाल होता है कि DAP डालें या SSP? दोनों ही खादें खेत की उर्वरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं, लेकिन इनकी उपयोगिता और प्रभाव अलग-अलग हैं. किस परिस्थिति में कौन-सी खाद सरसों की फसल के लिए ज्यादा फायदेमंद होगी, यह जानना बेहद अहम है.
परिजात या हरसिंगार का पौधा गठिया, बुखार, डायबिटीज और त्वचा रोगों में फायदेमंद है. यह सिर्फ फूल नहीं, एक प्राकृतिक औषधि है. हिंदू धर्म में परिजात का विशेष स्थान है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान परिजात वृक्ष का उद्भव हुआ था. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण इस वृक्ष को स्वर्ग से द्वारका ले आए थे.
खेती के क्षेत्र में नई तकनीक और टेक्नोलॉजी को अपनाना. आधुनिक खेती करने वाले किसान ना सिर्फ अधिक पैदावार प्राप्त कर रहे हैं बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रहे हैं. आज आपको आधुनिक खेती से जुड़ी खास बात बताने जा रहे हैं.
सूखी और बंजर भूमि में कैक्टस की खेती से किसानों को पर्याप्त चारा और अच्छी आय मिलती है. कम पानी, कम देखभाल और उच्च लाभ के साथ यह खेती राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे सूखे क्षेत्रों के लिए आदर्श है.
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