हर राज्य में उत्पादन लागत अलग तो एमएसपी एक क्यों, क‍िसानों के साथ कब होगा न्याय? 

हर राज्य में उत्पादन लागत अलग तो एमएसपी एक क्यों, क‍िसानों के साथ कब होगा न्याय? 

MSP: केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई एमएसपी कमेटी के एक सदस्य ने 'क‍िसान तक' से कहा क‍ि लागत के ह‍िसाब से हर राज्य की अलग होनी चाह‍िए एमएसपी. जान‍िए, पंजाब, यूपी, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में धान, गेहूं और मक्का की उत्पादन लागत में क‍ितना है अंतर. 

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हर राज्य में उत्पादन लागत अलग तो एमएसपी एक क्यों, क‍िसानों के साथ कब होगा न्याय? क्या सभी राज्यों को म‍िल रहा एमएसपी का फायदा (Photo-Kisan Tak).

फसलों पर म‍िलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था को और अधिक प्रभावी व पारदर्शी बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी अभी तक क‍िसी ठोस न‍िष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है. जबक‍ि इसे बने 11 महीने हो चुके हैं. एमएसपी से जुड़े कई मुद्दों पर नौकरशाहों और क‍िसान नेताओं के व‍िचारों में कोई मेल नहीं है. अध‍िकांश क‍िसान नेता क‍िसानों का ह‍ित चाहते हैं तो नौकरशाहों और और अर्थशास्त्रियों को क‍िसानों की बजाय बाजार की च‍िंता खाए जा रही है. इस बीच एक बड़ा सवाल यह है क‍ि जब अलग-अलग राज्यों में खेती की लागत अलग-अलग है तो फ‍िर एमएसपी एक क्यों? यह मुद्दा भी कमेटी में उठने वाला है. 

इस मुद्दे की एक वजह है. पंजाब में धान की लागत प्रत‍ि क्व‍िंटल स‍िर्फ 864 रुपये है और महाराष्ट्र में 2839, तो फ‍िर दोनों राज्यों की एमएसपी 2183 रुपये ही क्यों? क्या यह महाराष्ट्र के क‍िसानों के साथ अन्याय नहीं है? देखा जाए तो कुछ फसलों की मौजूदा एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी या तो कम है या मामूली ही अधिक है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) हर साल एमएसपी की स‍िफार‍िश भी करता है और राज्यों की लागत का आंकड़ा भी रखता है. लेक‍िन, एमएसपी तय करने का उसका तौर-तरीका ऐसा है क‍ि कई राज्यों के क‍िसानों के ल‍िए एमएसपी ही बेमतलब हो जाती है. 

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एमएसपी तय करने के तरीके पर सवाल? 

तो क्या अब यह माना जाए कि एमएसपी तय करने का पैमाना ही गलत है? विशेषज्ञों का कहना है कि जब सीएसीपी खुद आंकड़ों के साथ यह बता रहा है कि अलग-अलग फसलों की लागत राज्यों के हिसाब से अलग-अलग है तो फिर कैसे औसत दाम तय करने से किसानों को लाभ हो सकता है? जब तक हर राज्य के हिसाब से एमएसपी तय नहीं होगी तब तक किसानों की आय में वृद्धि का सपना कैसे पूरा होगा?  

दरअसल, राज्यों की स‍िफार‍िशों को सीएसीपी ठंडे बस्ते में डाल देता है. सभी राज्यों का औसत न‍िकालकर एमएसपी घोष‍ित कर दी जाती है. आज भी किसान बाजार में फसलों का उचित दाम न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में अगर सरकारी दाम तय करने में ही कुछ राज्यों के क‍िसानों को घाटा हो जाएगा तो कैसे काम चलेगा. 

धान की उत्पादन लागत क‍ितनी है?

लागत के आधार पर तय हो एमएसपी

महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के पूर्व चेयरमैन पाशा पटेल कुछ ऐसा ही मानते हैं. उनका कहना है क‍ि एमएसपी ज‍िस भावना से बनाई गई थी असल में उस तरह से उसका लाभ नहीं म‍िल पा रहा है. क्योंक‍ि सभी राज्यों में उत्पादन लागत अलग-अलग है और एमएसपी एक ही है. ऐसे में तर्कसंगत बात तो यही है क‍ि लागत के ह‍िसाब से एमएसपी होनी चाह‍िए. एमएसपी कमेटी के सदस्य के तौर पर मैं हर हाल में कमेटी के सामने यह मुद्दा उठाउंगा. क्योंक‍ि ज‍िन राज्यों में उत्पादन लागत ज्यादा है उनके क‍िसानों के साथ अन्याय हो रहा है. 

पटेल कहते हैं क‍ि सभी राज्यों में स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन होना चाह‍िए. उसके चेयरमैन सीएसीपी के सदस्य हों और कमीशन को वैधान‍िक दर्जा हो तब जाकर कुछ अच्छा हो पाएगा. एमएसपी कमेटी का गठन एमएसपी को पारदर्शी बनाने के ल‍िए हुआ है. फ‍िर राज्यों के साथ हो रहे अन्याय का मुद्दा तो उठेगा ही. एमएसपी तय करने का पैमाना काफी दोषपूर्ण है. 

हर राज्य की अलग एमएसपी के नुकसान

हालांक‍ि रूरल एंड अग्रेरियन इंडिया नेटवर्क (RAIN) के प्रमुख प्रो. सुधीर सुथार अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग एमएसपी की पैरोकारी को ठीक नहीं मानते. उनका कहना है क‍ि अगर इस तरह की व्यवस्था की गई तो इससे कई सारी समस्याएं आ सकती हैं. ज‍िस भी राज्य में क‍िसान फसलों की राष्ट्रीय औसत लागत से अध‍िक रकम खर्च कर रहे हैं उनमें दूसरे तरीके से घाटे की भरपाई का तंत्र व‍िकस‍ित क‍िया जाए. ज‍िसमें राज्य और केंद्र म‍िलकर पैसा दें. ताक‍ि क‍िसानों का घाटा न हो. वरना अगर एमएसपी अलग-अलग होगा तो ब्लैक ट्रेड‍िंग और जमाखोरी को बढ़ावा म‍िल सकता है. 

क‍ितनी है मक्का की उत्पादन लागत?

एमएसपी कमेटी के सदस्य ने क्या कहा?

केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई एमएसपी कमेटी के सदस्य कृष्णवीर चौधरी का कहना है क‍ि सैद्धांत‍िक तौर पर तो यह बात सही है क‍ि ज‍िन राज्यों में कम लागत आ रही है उन्हें कम एमएसपी म‍िले और ज‍िनमें लागत ज्यादा आ रही है उन्हें ज्यादा. कुछ राज्यों में स‍िंचाई के ल‍िए ब‍िजली फ्री है. ऐसे में उनकी लागत काफी कम हो जाती है. लेक‍िन ज‍िन राज्यों में ऐसी व्यवस्था नहीं है उनकी खेती की लागत बढ़ जाती है. ऐसे में वहां के क‍िसान ज्यादा एमएसपी के हकदार हैं. लेक‍िन यह काम आसान नहीं है.

क‍िस फार्मूले से म‍िल रहा एमएसपी

उधर, वाजपेयी सरकार केंद्रीय कृषि मंत्री रहे सोमपाल शास्त्री का कहना है क‍ि किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल रहा. क्योंकि सरकार ने अब तक स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को उसकी मूल भावना के साथ लागू ही नहीं किया है. आयोग की सिफारिशों के मुताबिक सी-2 फार्मूले से दाम तय किया जाना चाह‍िए.

सी-2 के तहत जो उत्पादन लागत तय होती है उसमें खाद, बीज, पानी के दाम के साथ ही कृषक परिवार की मजदूरी, स्वामित्व वाली जमीन का किराया और पूंजी पर ब्याज भी शामिल होता है. दरअसल, सरकार अभी ए2+एफएल फार्मूले के आधार पर ही एमएसपी तय कर रही है. इसमें पट्टे पर ली गई भूमि का किराया शामिल होता है, लेकिन स्वामित्व वाली जमीन का किराया और पूंजी पर ब्याज शामिल नहीं होता. 

गेहूं की क‍ितनी है उत्पादन लागत?

कैसे तय होती है फसलों की लागत?

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग फसल की मांग-आपूर्ति की परिस्थिति, घरेलू और वैश्विक मार्केट प्राइस ट्रेंड्स और अलग-अलग राज्यों की ओर से इनपुट कॉस्ट के आधार पर की गई दाम की सिफारिश का औसत निकालकर एमएसपी तय करता है. हालांक‍ि, यह भी कड़वा सच है क‍ि सीएसीपी खुद अपनी ही रिपोर्ट में यह भी बताता है कि कैसे एक ही फसल की लागत हर राज्य में अलग अलग है.  

हर राज्य में श्रमिक, मशीन, खाद, पानी, कीटनाशक, वर्किंग कैपिटल, जमीन की रेंटल वैल्यू, बीज एवं लैंड रेवेन्यू पर खर्च अलग-अलग होता है. कहीं खेती के ल‍िए ब‍िजली फ्री है और कहीं क‍िसान उसका पैसा दे रहे हैं. न्यूनतम वेतन और मनरेगा मजदूरी भी हर राज्य में अलग-अलग है. ऐसे में एक ही फसल की लागत कहीं कम और कहीं अधिक हो जाती है.

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