अक्सर आम के बाग पुराने होने पर फल देना कम कर देते हैं, जिससे किसानों की कमाई घट जाती है. इसको काट देते हैं, लेकिन अब पुराने पेड़ों को काटने के बजाय जीर्णोद्धार तकनीक अपनाकर उन्हें फिर से जवान बनाया जा सकता है. इस विधि में पेड़ों की सूखी और घनी टहनियों की वैज्ञानिक तरीके से छंटाई की जाती है, जिससे सूरज की रोशनी सीधे तने तक पहुंचती है और नई शाखाएं निकलती हैं.
इंजीनियर मोहम्मद कमर तौहीद ने इंजीनियरिंग का असली जादू दिखाते हुए कबाड़ से जुगाड़ कर एक ऐसी 'सुपर मशीन' तैयार की है, जिससे अब खेती में क्रांतिकारी बदलाव आएगा. इस मशीन से किसानों के हजारों रुपये बचेंगे, क्योंकि अब बीज बोने का खर्च आधा हो जाएगा. इस देसी अवतार वाली मशीन की खासियत यह है बहुत कम डीजल में खेत की जुताई होगी, जिससे पुरानी मशीनों की छुट्टी तय है.
भारत में अधिकतर किसानों के पास ट्रैक्टर पुराने ही होते हैं. मगर जरूरी नहीं है कि आपका ट्रैक्टर पुराना दिख रहा है तो चलेगा भी पुराने की तरह. अगर आप अपने पुराने ट्रैक्टर के साथ कुछ देसी उपाय अपनाएंगे और रखरखाव में कुछ अहम चीजों का ध्यान रखेंगे तो पुराने ट्रैक्टर की लाइफ भी कई सालों के लिए बढ़ सकती है. बूढ़े ट्रैक्टर को जवान बनाने के लिए हम आपको कुछ ऐसी ही देसी जुगाड़ बता रहे हैं.
जहां तक इजरायल की सीड टेक्नोलॉजी का सवाल है, देश इस क्षेत्र में ग्लोबल लेवल पर लीडर माना जाता है. इजरायल क्लाइमेट-रेजिलिएंट बीज, हाई-यील्ड हाइब्रिड वैरायटीज, कम पानी में बेहतर उत्पादन देने वाले बीज और ड्रिप सिंचाई से जुड़े सीड सॉल्यूशंस पर काम कर रहा है. वहां बीजों को खास तौर पर सूखा, गर्मी और मिट्टी की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप विकसित किया जाता है.
परंपरागत तरीके से ज्वार की कटाई पूरी तरह मजदूरों पर निर्भर रहती है. फसल पकने के बाद अगर समय पर कटाई न हो, तो दाने झड़ने लगते हैं और नुकसान बढ़ जाता है. कई क्षेत्रों में किसान मजबूरी में फसल खड़ी ही छोड़ देते हैं या कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं. यही वजह है कि अब किसान मशीनीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं.
मुंबई का एग्रीटेक स्टार्टअप भारत इंटेलिजेंस खेती के सेक्टर में एक नई क्रांति ला रहा है. यह किसानों को WhatsApp और AI टेक्नोलॉजी के ज़रिए कुशल मज़दूर मुहैया कराता है. अंगूर और केले की खेती से शुरुआत करके, कंपनी किसानों की इनकम बढ़ाने और मज़दूरों को बेहतर रोज़गार के मौके देने पर काम कर रही है.
सेब की खेती करने वाले किसानों के लिए अब बरसों का इंतज़ार बीते ज़माने की बात हो गई है. एक नए और क्रांतिकारी शॉर्टकट आइडिया ने खेती का अंदाज़ ही बदल दिया है. जहां पहले सेब के बाग तैयार होने और भरपूर फसल देने में 10 साल लग जाते थे, वहीं अब इनोवेटिव आइडिया की मदद से एक किसान मात्र 1 साल में ही 3 गुना ज़्यादा पैदावार ले रहा हैं. यह 'फार्मर सीक्रेट' न केवल समय बचा रहा है, बल्कि लागत कम करके मुनाफे को आसमान पर पहुंचा रहा है.
देश के किसान ऐप के माध्यम से खेती के लिए कृषि यंत्र, मौसम की जानकारी, फसल से जुड़ी अपडेट्स, कृषि से संबंधित नई तकनीक, पशुपालन, सरकारी योजना और सरकारी सब्सिडी आदि की जानकारी घर बैठे मोबाइल फोन के जरिए ले पा रहे हैं.
भारत में खेती अब सिर्फ़ ज़मीन तक ही सीमित नहीं रही है. एग्रीटेक स्टार्टअप और नई टेक्नोलॉजी की मदद से किसान ज़्यादा स्मार्ट और फ़ायदेमंद तरीकों से फ़सल उगा रहे हैं. जानें कि कैसे डिजिटल एग्रीकल्चर, AI और स्टार्टअप भारतीय किसानों की दुनिया को बदल रहे हैं.
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड की टीम ने मिट्टी की नमी मापने वाला IoT आधारित स्मार्ट डिवाइस तैयार किया है, जिसे पेटेंट मिल चुका है. यह तकनीक रियल टाइम डेटा के आधार पर सिंचाई को ऑटोमैटिक बनाती है, जिससे पानी की बचत और फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने नई तकनीक को तेजी से विस्तार दिया है. इस मामले पर केंद्र सरकार की ओर से संसद में बताया कि देश में अब 24 अनाज वाली फसलों और 17 बागवानी फसलों पर शोध शुरू हो चुका है.
बिहार के नवादा की रहने वाली डॉली कुमारी ने खेती को सस्ता और आसान बनाने का एक बेहतरीन रास्ता खोजा है. उन्होंने मात्र ₹15 प्रति लीटर की लागत में एक ऐसा जैविक 'प्लांट ग्रोथ प्रमोटर' तैयार किया है, जो पूरी तरह से केमिकल-मुक्त है और खेती की लागत को भारी मात्रा में कम करता है. इससे गोभी, टमाटर और बैंगन जैसी फसलों में लगने वाले 'सड़न रोग' और 'मिट्टी जनित रोगों' का खतरा लगभग खत्म हो जाता है.
खेती-किसानी के अलावा पशुपालन में भी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा है. ऐसे में किसान पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन, आहार प्रबंधन, रिकॉर्ड रखने और सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए कुछ खास मोबाइल ऐप्स की मदद ले सकते हैं.
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के किसान महावीर कुमावत ने खेती में होने वाले भारी खर्चे को कम करने के लिए देसी कमाल और जुगाड़ के जरिये कबाड़ और पुराने लोहे से एक पावर वीडर बना डाला है. यह मशीन कई फसलों में खरपतवार निकालने के लिए बहुत कारगर है. सबसे खास बात है कि यह मशीन 10 गुना से कम पैसे में काम कर देती है.
O&M का पूरा नाम ऑपरेशंस और मेनटेंनेंस है. हिंदी में इसे संचालन और रखरखाव कहा जाता है. इसका मतलब है सोलर पंप या सोलर प्लांट को सही तरीके से चलाना और समय-समय पर उसकी देखभाल करना. पीएम कुसुम योजना के तहत लगाए गए सोलर पंप और सोलर सिस्टम लंबे समय तक काम करें, इसके लिए O&M बेहद जरूरी होता है.
सरकार ने संसद में बताया कि AI तकनीक खेती को अधिक वैज्ञानिक और सुरक्षित बना रही है. खरीफ 2025 के लिए 13 राज्यों में AI आधारित मानसून पूर्वानुमान भेजे गए जिससे 31-52 फीसदी किसानों ने बुआई फैसले बदले. किसान ई-मित्र, कीट निगरानी और क्रॉप मैपिंग जैसे डिजिटल टूल भी तेजी से मदद कर रहे हैं.
NHAI ने सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को निर्देश दिया कि ट्रैक्टर और कंबाइन हार्वेस्टर से राष्ट्रीय राजमार्ग, पुल, बाईपास और टनल के उपयोग पर किसी तरह का यूजर शुल्क नहीं लिया जाए.
आंध्र प्रदेश विशाखापत्तनम के किसान वी. गणेश ने धान की खेती को आसान और सस्ता बनाने के लिए एक शानदार 'जुगाड़' किया है. इससे धान में नर्सरी तैयार करने और रोपाई का झंझट पूरी तरह खत्म हो गया है. नतीजा यह है कि किसान को प्रति एकड़ कई हजार रुपये की बचत हो रही है और मजदूरों के पीछे भागने की भी जरूरत नहीं.
ICAR–IIVR वाराणसी द्वारा विकसित स्मार्ट IPDM पैकेज से बैंगन की फसल में कीट-रोग नियंत्रण अब होगा ज्यादा प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल. फेरोमोन ट्रैप, जैविक उपाय और जरूरत-आधारित स्प्रे से किसानों को मिलेगा अधिक लाभ और सुरक्षित उत्पादन.
इंदौर में नेशनल सोयाबीन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) वाला मोबाइल ऐप बनाया है, जो किसानों को सोयाबीन की फसल की पैदावार बढ़ाने में मदद करेगा. इस ऐप का नाम ‘सोयाबीन ज्ञान’ रखा गया है.
31 दिसंबर की डेडलाइन से पहले कपास किसान ऐप पर तेजी से रजिस्ट्रेशन बढ़ा. देशभर में 41 लाख से ज्यादा किसान जुड़े. CCI की खरीद बढ़ने से ओपन मार्केट रेट में सुधार, वहीं ऐप-आधारित रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेशन को लेकर किसानों में अभी भी कई सवाल.
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