खरीफ फसलों की कुल बुआई 1092 लाख हेक्टेयर से ज्यादा में की गई है, जो बीते साल की तुलना में अधिक है. धान की बुवाई में बंपर उछाल दर्ज किया गया है. पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 393.57 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष 409.50 लाख हेक्टेयर में चावल की खेती की गई है.
डॉ. अवस्थी ने कहा कि अभी इफको किसानों को यह सलाह दे रहा है कि वो पारंपरिक डीएपी और यूरिया से इसे करीब 50 फीसदी तक रिप्लेस करें. अभी इसका बेसल डोज न दें, सिर्फ टॉप ड्रेसिंग करें. नैनो फर्टिलाइजर के बेसल डोज को लेकर इफको रिसर्च कर रहा है. आज नहीं तो कल हम इसका बेसल डोज भी लाएंगे. जिस दिन यह सफलता मिल गई उस दिन हम किसानों से कहेंगे कि पारंपरिक यूरिया और डीएपी को छोड़ दीजिए.
एनपीके और डीएपी को अक्सर पूरी खेती के लिए ही विशेषज्ञ बेस्ट करार देते हैं. एनपीके यानी नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम के अलग-अलग अनुपातों वाले उर्वरक. वहीं डीएपी यानी डायमोनियम फॉस्फेट और इसमें एनपीके का भी कुछ हिस्सा होता है. जिन क्षेत्रों की मिट्टी में फॉस्फोरस की कमी होती है तो वहां पर इस उर्वरक का प्रयोग होता है. गुलाब के लिए डीएपी को सबसे अच्छा उर्वरक माना जाता है.
महिला किसान सुनीता पूर्विया ने बताया कि ढैंचा की फसल न तो बरसात में खराब होती है और न ही गर्मी का इस पर कोई फर्क पड़ता है. खास बात ये है कि इसमें किसी भी तरह का कीट भी नहीं लगता है. उन्होंने कहा कि जब खेत में ढैंचा का पौधा 4-5 फीट ऊंचाई का हो जाए तो उसमें ट्रैक्टर से हैरो लगाकर जुताई कर देनी चाहिए. यह ढैंचा का पौधा मिट्टी में मिलकर खाद बन जाता है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना समेत कई राज्यों में बारिश और बाढ़ की स्थितियों से कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा है. आंध्र प्रदेश में 2 लाख हेक्टेयर से अधिक और तेलंगाना में भी बड़े पैमाने पर सोयाबीन, कपास, धान, केला और हल्दी की फसलों को नुकसान हुआ है.
कृषि मंत्रालय के अनुसार NAFED और NCCF एजेंसियां के माध्यम से मूल्य समर्थन योजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी है, ताकि किसानों की उपज को एमएसपी पर खरीदा जा सके. इससे सोयाबीन की निचले स्तर पर कीमतों के पहुंचने से परेशान महाराष्ट्र के किसानों को राहत मिलेगी.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए फसल का डायवर्सिफिकेशन यानी विविधीकरण ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि सब्जियों की खेती हमें बड़ा लाभ पहुंचाती है. फसल विविधीकरण के तहत खेत में बदल-बदलकर फसलें बोई जानी चाहिए. एक ही तरह की फसलें बार बार करने से खेती की उत्पादकता घटती है.
कृषि विशेषज्ञों की तरफ से सोयाबीन की फसल के लिए कुछ खास टिप्स बताए गए हैं. कई ऐसे टिप्स हैं जिनकी जानकारी होना जरूरी है और ये सोयाबीन की अच्छी फसल में काफी कारगर हैं. लगातार बारिश की वजह से सोयाबीन के खेतों में बहुत ज्यादा पानी होगा. अगर खेत में पानी जमा हो जाए तो तुरंत ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे पानी निकल सके.
बारिश की वजह से सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक का खतरा मंडराने लगता है. खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल पीली पड़ने लगती है. उसके पत्तों में छेद होने लगते हैं. इससे किसानों की चिंता बढ़ जाती है. बारिश के बाद मौसम साफ होता है तो खेतों में नमी की मात्रा संतुलित हो जाती है, लेकिन खेतों में खड़ी सोयाबीन पर पीला मोजेक रोग का प्रकोप शुरू हो जाता है.
सोयाबीन की फसल में उगने वाले खरपतवार फसल के पोषक तत्वों और पानी का उपयोग कर उसकी वृद्धि को प्रभावित करते हैं, जिससे प्रति एकड़ उत्पादन कम हो जाता है. सोयाबीन में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए आपके लिए कारगर दवाइयों का उपयोग और उनकी उचित मात्रा जानना जरूरी है.
अप्रैल से जुलाई तक जायद और खरीफ फसलों की जमकर बुवाई के चलते इस दौरान खाद सब्सिडी खर्च रकम 45 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गई है. इस दौरान खाद की खपत में 6 फीसदी उछाल भी दर्ज किया गया है.
डीएपी की तुलना में एसएसपी खाद बाजार में आसानी से उपलब्ध है. डीएपी के हर बैग में 23 किलो फास्फोरस और 9 किलो नाइट्रोजन पाया जाता है. यदि डीएपी के विकल्प के रूप में एसएसपी के 3 बैग और यूरिया के 1 बैग का प्रयोग किया जाए तो पौधों को 16 किलोग्राम कैल्शियम, 24 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 16 किलोग्राम सल्फर मिलेगा.
गेंदे की किस्म हिसार ब्यूटी किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है. यह एक बौने आकार की किस्म है जो रोपाई के 40-45 दिनों में ही फूल देना शुरू कर देती है. इस किस्म का प्रयोग सजावट के लिए तो किया ही जाता है साथ ही साथ यह कई और कामों में भी प्रयोग में आती है. यह फूल देने में काफी आगे है और काफी लंबे समय तक इस पर फूल आते रहते हैं.
कभी-कभी कटाई-छंटाईं के बाद गुलाब की कुछ टहनियां सूखने लगती हैं. ऐसे में आपको किस तरह की खाद की जरूरत पड़ेगी, यह जानना भी बहुत जरूरी है. सभी पौधों की ही तरह गुलाब को भी जिन मैक्रोन्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती हैं उनमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम सबसे अहम हैं. लेकिन इसका प्रयोग कैसे करना है, यह जानना भी बहुत जरूरी है.
जैव उर्वरक यानी जीवाणु खाद एक प्रकार का प्राकृतिक उर्वरक है जो सूक्ष्मजीवों से बनाया जाता है. यह उर्वरक पर्यावरण के लिए अच्छा है और इसका उपयोग कृषि, बागवानी, बागवानी और पौधों के पालन में किया जाता है.
Natural Farming: अब तक भारत में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र प्राकृतिक खेती के तहत कवर किया जा चुका है. इस तरह की खेती में कोई बाहरी इनपुट इस्तेमाल नहीं किया जाता. साथ ही बीजों की स्थानीय किस्मों का उपयोग किया जाता है. इसलिए इसमें लागत कम आती है.
खैरा रोग फसल में जिंक की कमी के कारण उत्पन्न होता है, जिससे न केवल फसल की क्वालिटी खराब होती है, बल्कि फसल का उत्पादन भी 40 फीसद तक कम हो जाता है. खैरा रोग से बचने के लिए धान की रोपाई के 25 दिन के अंदर ही खेत की निराई-गुड़ाई और निगरानी शुरू कर देनी चाहिए.
देशभर में खरीफ सीजन के दौरान किसानों ने दालों की बंपर बुवाई की है. इस बार किसानों ने अरहर और मूंग दाल की बुवाई पर खास रुचि दिखाई है. यही वजह है कि दोनों दालों का मिलाकर रकबा करीब 9 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है.
रसायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल और फसल अवशेष खेत में जलाने के चलते मिट्टी की पोषकता का ग्रेड लगातार गिर रहा है. कृषि एक्सपर्ट ने कहा कि एनपीके खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की क्षमता 20 फीसदी तक कम हो गई है. उपज मात्रा और क्वालिटी सुधार के लिए मिट्टी की सेहत सुधारने पर जोर दिया है.
एनएससी की इस पहल से देश भर में किसान घर बैठे ही ऑनलाइन बेहतर क्वालिटी के बीज खरीद सकेंगे. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि एनएससी के देशभर में 48 क्षेत्रीय कार्यालय, 11 क्षेत्रीय कार्यालय और पांच फार्म हैं.
खेती में खड़ी फसलों को कई तरह के नुकसान का डर बना रहता है. कभी बारिश तो कभी कीट और फफूंदनाशक फसल को नष्ट कर देते हैं. इससे फसलों को काफी नुकसान होता है. किसानों की इसी समस्या का समाधान करते हुए एफएमसी कॉरपोरेशन ने किसानों के लिए तीन अत्याधुनिक दवाएं लॉन्च करने की घोषणा की.
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