केंचुआ खाद पूरी तरह जैविक खाद है. इसका उपयोग फसल की पैदावार को बढ़ाने के साथ-साथ रोग और कीट प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने के लिए की जाती है. अलग-अलग फसलों में अलग मात्रा में इसका इस्तेमाल किया जाता है. ताकि फसलों को सही मात्रा में पोषण मिल सके.
नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में यूरिया की कुल खपत एक साल पहले के 31.2 लीटर से 2 प्रतिशत बढ़कर 31.8 लीटर हो गई. इसी तरह, म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) 1.11 लीटर से 53.2 प्रतिशत बढ़कर 1.7 लीटर हो गया और उर्वरक 6.94 लीटर से 21 प्रतिशत बढ़कर 8.4 लीटर हो गया.
जीवामृत की मदद से जमीन को पोषक तत्व मिलते हैं और ये एक बेहतर खाद के तौर पर काम करती है. इसकी वजह से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिविधि बढ़ जाती है.
ओडिशा के कोरापुट जिले में आलू की खेती करने वाले किसान इन दिनों खासे परेशान हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार यहां पर सीमांत किसानों को इन दिनों आलू के बीज के लिए परेशान होना पड़ रहा है. यहां पर आलू के बीज के लिए किसान दर-दर भटकने को मजबूर हैं. कोरापुट जिले के 7500 से अधिक सीमांत किसानों को आलू के बीज हासिल करने में मुश्किलें हो रही हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बारिश खत्म होने के बाद जैसे ही मौसम साफ होगा, धान पर बैक्टीरियल ब्लाइट या शीथ ब्लाइट का प्रकोप हो सकता है. ब्लाइट या रॉट रोग सब्जी की फसलों को भी नष्ट कर सकता है. ऐसे में किसानों को लक्षण दिखते ही दवाओं का छिड़काव करना चाहिए.
कम्पोस्ट स्प्रेडर मशीन खेत में कम्पोस्ट खाद फैलाने वाला एक कृषि यंत्र है, जिसे ट्रैक्टर के साथ जोड़कर चलाया जाता है. यह मशीन खेत में बराबर मात्रा में खाद फैलाती है. इससे खाद की बर्बादी भी रुकती है और किसान की मजदूरी और मेहनत भी बचती है. ये कम्पोस्ट स्प्रेडर मशीन कई तरह की होती हैं, जिसमें एक पंखे वाली कम्पोस्ट स्प्रेडर मशीन होती है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतरमण बजट पेश करते हुए कृषि सेक्टर के लिए बजट बढ़ाने की घोषणा कर दी है. उन्होंने कहा कि बजट में कृषि क्षेत्र का बजट बढ़ाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि खेती-किसानी से जुड़ी योजनाओं और कार्यों के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे.
लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष (मृदा) डॉ. धनविंदर सिंह ने दो साल का फील्ड प्रयोग किया और निष्कर्ष निकाला कि नैनो यूरिया की 500 मिली लीटर की स्प्रे बोतल मिट्टी में नाइट्रोजन के 50 प्रतिशत उपयोग का विकल्प नहीं हो सकती.
वर्मी कंपोस्ट को केंचुआ खाद भी कहा जाता है. इस खाद को केंचुआ और गोबर की मदद से बनाया जाता है. वर्मी कंपोस्ट खाद को बनाने में लगभग डेढ़ महीने लगते हैं. इस खाद से वातावरण प्रदूषित नहीं होता और मिट्टी की उपजाउता भी बरकरार रहती है.
बिहार में अरहर की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार अरहर प्रोत्साहन योजना के तहत अरहर के बीज पर सब्सिडी दे रही है. इसके लिए बिहार के 11 ऐसे जिलों का चयन किया गया है जहां कम बारिश होती है. ऐसे में किसान इस योजना का लाभ लेकर किसान अरहर की खेती करके कमाई कर सकते हैं.
दलहनी फसलों में पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए किसान कई उपाय करते हैं. वहीं किसान बीज उपचार और फसलों पर छिड़काव के लिए अलग-अलग दवाई का प्रयोग करते हैं, लेकिन अब किसानों को डबल खर्च करने की जरूरत नहीं है. अब मार्केट में एक ऐसी दवा आ गई है जो बीज उपचार और फसल पर छिड़काव दोनों में कारगर है.
मक्का की खेती के लिए उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. सिंचित क्षेत्रों में मक्का की बुवाई मॉनसून आने के 10-15 दिनों पहले कर देनी चाहिए. वहीं, वर्षा आधारित क्षेत्रों में बारिश के आने पर ही मक्का की बुवाई की जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं बलुई मिट्टी में मक्के की बुवाई से पहले कौन सी खाद डालना चाहिए.
किसान नरमा फसल में गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए दो फेरोमॉन ट्रैप प्रति एकड़ लगाएं या साप्ताहिक अंतराल पर कम से कम 150-200 फूलों का निरीक्षण करें. टिंडे बनने की अवस्था में 20 टिंडे प्रति एकड़ के हिसाब से तोड़कर, उन्हें फाड़कर गुलाबी सुंडी का निरीक्षण करें.
बिहार सरकार संकर बीज उत्पादन को देगी बढ़ावा. इसके साथ ही दक्षिण बिहार के सूखे क्षेत्र में मड़ुआ और मिलेट्स के बीज उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. बिहार सरकार ने इसकी तैयारियां तेज कर दी हैं किसानों को इसकी खेती के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है.
जैव उर्वरकों के साथ बीज उपचार में राइजोबिया, एज़ोस्पिरिलम और फॉस्फोरस-घुलनशील बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों के मिश्रण की मदद से बीजोपचार करना चाहिए. ये लाभकारी सूक्ष्मजीव बीज के अंकुरण, जड़ विकास और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे पौधे स्वस्थ होते हैं और पैदावार बढ़ती है.
कगुया का इस्तेमाल अलग-अलग तरीकों से किया जाता है. जिसमें बीज उपचार, मिट्टी का अनुप्रयोग और पत्तियों पर छिड़काव शामिल है. इसके निवारक और उपचारात्मक गुण इसे किसानों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाते हैं जो अपनी फसलों को फंगल रोगों से बचाना चाहते हैं.
भारत की बात करें तो खरीफ सीजन में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और झारखंड में बड़े पैमाने पर चावल की खेती की जाती है. इन राज्यों में किसानों को 15 मई से 15 जून के बीच चावल की नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए.
मिट्टी की पोषकता में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत हरी खाद के रूप में पहचानी जाने वाली ढैंचा की फसल को किसानों से खरीदने का निर्णय लिया है. ढेंचा के बीज के लिए सरकारी कीमत भी घोषित कर दी गई है. बिक्री के लिए किसानों को राज्य बीज निगम में रजिस्ट्रेशन कराने को कहा गया है.
कृषि एवं किसान कल्याण निदेशक जसवंत सिंह ने बताया कि गुणवत्ता नियंत्रण अभियान के तहत अब तक उर्वरकों के 1,004 नमूने एकत्रित कर जांच के लिए विभिन्न प्रयोगशालाओं में भेजे गए हैं. कृषि मंत्री ने कृषि निदेशक को निर्देश दिए कि वे किसानों को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध करवाने के लिए कृषि आदानों की आपूर्ति की समीक्षा करें.
गन्ने के पौधे की अधिक लंबाई की वजह से भी कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं. बीमारियों से बचाव के लिए किसानों को फसल पर खास ध्यान देना होता है. गन्ने में लगने कुछ बीमारियों और उनसे बचाव के तरीके बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर सकते हैं.
दुनिया का 60 प्रतिशत सोयाबीन अमेरिका में पैदा होता है. भारत में सोयाबीन मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक प्रमुख फसल के रूप में उगाया जाता है. ऐसे में सोयाबीन की खेती कर रहे किसानों के लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि फल-फूल बढ़ाने के लिए कितना जस्ता और गंधक डालने की जरूरत है.
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