बीते चार साल से लौकी की खेती करने वाले फर्रुखाबाद के किसान संजू बताते हैं कि लौकी का इस्तेमाल सब्जी के अलावा रायता और हलवा जैसी चीजों को बनाने में भी किया जाता हैं. इसलिए इस सब्जी की डिमांड 12 महीने रहती है.
अनमोल राय बताते हैं कि उन्होंने अपने बगीचे में आम की कई विदेशी किस्में लगाई हैं. जिनमें टॉमी एटकिंस जो फ्लोरिडा के आम की वेरायटी है. समर बहिश्त जो पाकिस्तानी आम की वैरायटी है.
युवराज सिंह ने अपने पुश्तैनी बगीचे को बढ़ाते हुए आम का बगीचा तैयार किया है. उनके बगीचे की खास बात यह है कि उनके बगीचे में लंगड़ा, केसर, चौसा, सिंदूरी, राजापुरी, हापुस आदि 26 वैरायटी के आम के पेड़ लगे हैं. जिले के छोटा उंडवा गांव के किसान युवराज सिंह की सफलता की यह कहानी है. युवराज ने बताया, अलीराजपुर जिले की मिट्टी में नमी होने से यह आम की खेती के लिए उपयुक्त है.
बांका जिले के फुल्लीडुमर प्रखण्ड के तेतरिया गांव के किसान संतोष कुमार सिंह पहले धान, गेहूं और दूसरी फसलों की खेती करते थे. जिसमें उन्हें लाभ नहीं मिल रहा था. जिसके बाद उन्होंने कृषि विभाग से संपर्क करते हुए उन्होंने खेती में कुछ नए प्रयास करने की चर्चा की, जिसके बाद प्रखंड तकनीकी प्रबंधक और सहायक तकनीकी प्रबंधक की सलाह पर उन्होंने केले की खेती करना शुरू किया.
किसान गया प्रसाद ने आगे बताया कि हमने ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में सोचा, फिर उसके बाद एक हजार पौधे गुजरात से मंगवाकर तीन बीघे में खेती शुरू की. जिसमें हमें अच्छा फायदा देखने को मिला.
सेब के इन पौधौं की खासियत यह है कि ये 45 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी विकसित हो सकते हैं. इसलिए इनकी खेती गोवा या भारत में कहीं भी की जा सकती है. यहां के किसान मेंडेस ने 10 जनवरी, 2022 को सेब का टिश्यू कल्चर लगाया और एक साल में पौधे तैयार हो गए.
करीमनगर के किसान कुंता अंजनैया अपनी 4.2 एकड़ भूमि में धान की खेती कर रहे थे. वह इससे अच्छा पैसा भी कमा रहे थे. लेकिन अधिकारियों की तरफ से लगातार किसानों को बाकी फसलें उगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा था. इस वजह से उन्होंने 'ताइवान रेड लेडी पपीता' को अपनी दूसरी फसल के रूप में चुना. इसे उगाने के लिए खेत में 1.2 एकड़ जगह अलॉट कर दी और अब उन्हें इससे जबरदस्त फायदा हो रहा है.
किसान दिलीप कुमार ने बताया कि इसकी खेती करना बहुत ही आसान है. खीरे की खेती हम ड्रिप विधि से करते हैं. पहले हम खेत की जुताई करते हैं. उसके बाद पूरे खेत में बेड बनाते हैं.
राम मंदिर के निर्माण के बाद ऐतिहासिक स्थल का चेहरा परिवर्तित हो गया है. यहां के क्षेत्र में पर्यटन और व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे यहां के किसानों को अधिक बाजार और विकल्पों का सुनहरा मौका प्राप्त हुआ है. राम मंदिर के निर्माण से अयोध्या के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की धारा में नया उतार-चढ़ाव आया है, जिसने यहां के किसानों को नए और अधिक विकसित रास्तों की ओर मोड़ दिया है.
त्रिपुरा के कई हिस्सों, खासतौर पर गोलाघाटी गांव में बसे किसान एक ऐसी सक्सेस स्टोरी लिख रहे हैं जिसके बारे में कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. यहां के सिपाहीजला जिले के तहत आने वाले बिशालगढ़ सब-डिविजन में स्थित गोलाघाटी गांव के किसान, ऑफ-सीजन में पीले तरबूज की खेती करके मालामाल हो रहे हैं. इस खेती के जरिये उन्हें काफी फायदा मिल रहा है.
ओडिशा के गंजम जिले में आने वाले राधामोहनपुर गांव के लोगों ने एक ऐसा कमाल किया है जिससे उनकी किस्मत ही बदल गई है. इन्होंने अपनी बदकिस्मती को अपना सौभाग्य बनाया है और आज यहां कई परिवार अमीर हो गए हैं. अब इन लोगों को मजदूरी करने के लिए दूसरी जगहों पर नहीं जाना पड़ता है बल्कि मशरूम की खेती से इन्होंने अपनी सफलता की नई कहानी लिख डाली है.
संरक्षित खेती का लक्ष्य टमाटर की खेती को व्यावसायिक तौर पर बढ़ाना है. संरक्षित खेती टमाटर की आपूर्ति को पूरा करने में मदद करती है. जिससे न सिर्फ बाजार में टमाटर की मांग पूरी होती है बल्कि किसानों को अच्छी आमदनी भी होती है. इस नई तकनीक से किसान खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं.
अयोध्या जनपद में एक ऐसा किसान है जिससे फसल तकनीक को सीखने के लिए वैज्ञानिक भी आते हैं. जनपद के सुहावल ब्लॉक के मकसुमपुर गांव के रहने वाले शोभाराम एक साथ खेत में पूरे साल भर की फसलों का मॉडल तैयार कर देते हैं जिससे कि उनके खेत से लगातार पूरे साल तक उत्पादन मिलता रहता है.
रामपुर के किसान अमित वर्मा की कहानी दिलचस्प है. उन्होंने एमबीए की डिग्री लेने के बाद ऑर्गेनिक खेती शुरू की. पूरी प्लानिंग के साथ अपना काम शुरू किया. इसमें उन्हें बड़ी सफलता मिली. कमाई बढ़ने के साथ ही कई किसानों और आम लोगों को रोजगार दे रहे हैं. खेती के साथ उन्होंने फूड प्रोसेसिंग के अपने व्यवसाय को बड़ा रूप दिया है.
प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र बताते हैं कि रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल करने के बजाय प्राकृतिक उत्पादों का सहारा लेकर फसलों की ऐसे किस्म तैयार की है जो उनकी कमाई का बड़ा जरिया बन रही है और लोगों के आकर्षण का केंद्र भी.
सोलंकी का कहना है कि राज्य सरकार से अब तक सहायता नहीं मिली है. इसके बावजूद भी अच्छी कमाई कर रहे हैं. उनका कहना है कि गधी का दूध औषधीय गुणों से युक्त होता है. गधी का दूध काफी हद तक मानव दूध जैसा माना जाता है, जो इसे गाय के दूध से एलर्जी वाले शिशुओं के लिए एक आदर्श विकल्प बनाता है. इसके अलावा गधी का दूध मधुमेह रोगियों के लिए भी फायदेमंद है.
किसान पंकज गंगवार ने बताया कि तोरई की डिमांड छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों के बाजारों में रहती है. कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन-ए के गुणों से भरपूर तोरई एक नकदी फसल भी है.
पाल ने आगे बताया कि एक बीघे खेत में 10 हजार रुपए कि लागत आ जाती है. अगर बाजार में इसके अच्छे रेट मिल जाते हैं तो एक से डेढ़ लाख रुपए की आमतौर पर मुनाफा हो जाता है.
एक ट्रेन यात्रा ने कश्मीर के अंनतनाग में फलों और सब्जियों की खेती करने वाले किसान अब्दुल अहद की सोच बदल दी. इस यात्रा में उन्हें वर्मीकंपोस्ट और उससे होने वाले फायदे के बारे में जानकारी मिली. इसके बाद वो वापस आकर इसे बनाने में जुट गए. शुरूआत में थोड़ी परेशानी जरूर हुई पर आज वो एक सफल उद्यमी हैं. पढ़ें उनकी सफलता की कहानी
नर्मदापुरम, नर्मदा नदी के किनारे बसा है और इसकी उपजाऊ काली मिट्टी को खेती के लिए वरदान माना जाता है. अब नर्मदा किनारे की यही मिट्टी यहां पर हल्दी के खेती के लिए सफलता की गारंटी बनकर उभरी है. हल्दी की इस सफल खेती का लीडर अगर कंचन वर्मा को कहा जाए तो गलत नहीं होगा. बेहतर रिटर्न की इच्छा और रोज नए प्रयोग करने की आदत से प्रेरणा लेकर कंचन वर्मा ने साल 2020 में हल्दी की खेती में कदम रखा.
कोइला देवी ने गेहूं की नई किस्म करण वंदना (DBW 187) की बुवाई की. यह किस्म पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल सहित उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों की सिंचित समय पर बुवाई की स्थिति के लिए जारी की गई नवीनतम गेहूं किस्म है.
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