झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत गोमिया प्रखंड के कोदवाटांड़ पंचायत के युवा मछली पालन के जरिए सफलता की नई कहानी लिख रहे हैं. गोमिया प्रखंड का यह इलाका पहले कभी उग्रवाद प्रभावित था और यहां पर खेती भी अच्छे से नहीं हो पाती थी. क्षेत्र के अधिकांश युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर जाते थे.
बीड जिले के केलसंगवी की प्रगतिशील महिला किसान विजया गंगाधर घुले ने सूखे की स्थिति से उबरते हुए राज्य में तीन फलों की फसल खजूर, ड्रैगन फ्रूट और सेब को मिश्रित तरीके से उगाने का पहला अनूठा प्रयोग किया है. उनके पास तीन एकड़ जमीन है और उन्हें इन तीनों फलों की फसलों से अच्छी खासी आमदनी होने लगी है.
केला फाइबर के बारे में महिमा कहती हैं, “यहां के किसानों द्वारा केले की कटाई के बाद, जिन केले के पेड़ों को कचरा समझ कर फेंक दिया जाता था, अब हम उन्हीं का सही तरीके से उपयोग कर रहे हैं.”
गढ़वा जैसे जिले के एक छोटे से गांव के निकलकर ड्रोन दीदी बनना रीता कुमारी के लिए आसान नहीं था. पर उन्होंने अपनी मेहनत से इसे कर दिखाया है. रीता बताती हैं कि ड्रोन देखने के बाद पहली बार तो उन्हें यही लगा था कि वो इसे कैसे उड़ा पाएंगी क्योंकि उन्होंने आज तक साइकिल के अलावा और कुछ नहीं चलाया था.
बिहार के मुजफ्फरपुर के अमरनाथ दुकान की छत पर खेती कर उपजा रहे ड्रैगन फ्रूट साथ ही लौकी बैगन, मिर्च समेत हर प्रकार की सब्जी जिससे अपने घर के सब्जी की बजट को बचाते हैं. साथ ही वो ड्रैगन फ्रूट के पौधा तैयार करके दो से ढाई सौ में बिक्री कर उससे अच्छी आमदनी भी कर रहे है.
सरकार ने झींगा पालन पर इसलिए जोर दिया है क्योंकि पूरी दुनिया में इसकी बहुत अधिक मांग है. भारत का झींगा कई देशों में पसंद किया जाता है. इससे झींगा पालने वाले किसानों की कमाई बढ़ती है. साथ ही इससे जुड़ा उद्योग भी फलता-फूलता है. वहीं, सरकार न्यूक्लियस प्रजनन केंद्र खोलने जा रही है.
गुजरात के एक साधारण किसान रमेश भाई की कहानी प्रेरणादायक है. एक समय था जब रमेश भाई सामान्य खेती से संघर्ष कर रहे थे, लेकिन आज वे देशी गाय और प्राकृतिक खेती के तरीकों से 123 देशों में अपना व्यवसाय फैलाकर करोड़पति बन गए हैं. उनका कहना है कि प्रैक्टिस ऐसे करें जैसे आपने कभी जीता नहीं, और परफॉर्म ऐसे करें जैसे आपने कभी हारा नहीं. आइए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी.
पंजाब के फाजिल्का और मुक्तसर जिलों के करीब पांच गांवों के किसान इन दिनों जामुन की खेती की वजह से चर्चा में है. यहां पर किसानों के एक समूह ने जामुन की खेती से एक्स्ट्रा इनकम कमाई है और अब यह बागवानी मॉडल के तौर पर उभरे हैं. कृषि विशेषज्ञ जामुन को एक ऐसा फल मानते हैं जिसके लिए शायद ही किसी निवेश की जरूरत होती है.
उन्होंने बताया कि उनके यह बने किसी भी सामान में मैदा या कोई भी नुकसानदायक वस्तु नहीं होती है. यहां तैयार किया गया सामान हेल्थी और टेस्टी दोनों है. वहीं शुगर से पीड़ित मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है.
देश में भूजल की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. जिसके कारण धान की खेती न केवल किसानों के लिए बल्कि सरकार के लिए भी चिंता का विषय है. धान की खेती में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है. जिसके कारण यह अब समस्या का कारण बन गया है. ऐसे में धान की खेती के बजाय अन्य फसलों की खेती की ओर रुख करना बहुत जरूरी है.
कांति देवी ने बताया कि कीटनाशक दवाइयों के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरक क्षमता प्रभावित होती है. इससे कीट मित्र जमीन से खत्म होते जा रहे हैं. इसी का परिणाम है कि देश और प्रदेश में आपदाएं बढ़ती जा रही हैं.
बलदेव सिंह बताते हैं कि भूसल में उनकी एक एकड़ जमीन मार्कंडा नदी के पास थी और अधिक समय तक बाढ़ में डूबी रहती थी. हर बार खेती में उन्हें नुकसान होता था. इसलिए उन्होंने इस जगह को छोड़कर दूसरी जगह जाने का फैसला किया. अब उन्हें लगता है कि उनका फैसला सही था.
अभी हंस राज शर्मा के पॉलीहाउस में खीरे के करीब 1,410 पौधे लगे हुए हैं. उनका कहना है कि पारंपरिक विधि के मुकाबले पॉलीहाउस में खेती करने पर प्रति पौधा 2 से 3 किलो ज्यादा खीरे का उत्पादन हुआ. इसका मतलब है कि पारंपरिक खुले खेत की खेती की तुलना में उनकी फसलों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में रहने वाले किसान इन दिनों सुर्खियों में हैं. यहां के किसान पिछले कुछ समय से ब्रोकली की खेती कर रहे हैं जोकि इस इलाके में काफी लोकप्रिय है. लेकिन अब इसकी खेती उनके लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है. यहां के किसान इस सब्जी को उउगाने से लेकर, ब्रोकली के पौधे के लिए सैपलिंग खरीदने से लेकर उन्हें अपने खेत में बोने तक का काम कर रहे हैं.
16 वर्ष की आयु में रविन्द्र ने एक केमिस्ट की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया, जहां उन्हें हर दिन का मात्र 5 रुपये मिलता था. कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी, अक्सर कॉलेज पैदल ही जाते थे क्योंकि उनके पास साइकिल खरीदने का पैसा नहीं था. पोल्ट्री फार्मिंग में एक पड़ोसी की सफलता से प्रेरित होकर रविन्द्र ने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया.
किसान अजय कुमार पटेल, रीवा जिले के मनगवां तहसील के तहत आने वाले गांव मनगंवा के रहने वाले हैं. आज उन्हें प्याज की खेती से अच्छी-खासी इनकम हो रही है. अजय ने लीज पर ली हुई छह एकड़ की जमीन पर न्याज की खेती की है. इस पर करीब 700 क्विंटल प्याज की फसल पैदा हो रही है. अजय इस प्याज को इलाहाबाद भेज देते हैं जिससे उन्हें हर साल लाखों का फायदा होता है.
तमिलनाडु के त्रिची जिले के एक छोटे से गांव मंगलम के रहने वाले किसान सलाई अरुण ने अपने जीवन की सारी जमा पूंजी लगाकर 300 से अधिक दुर्लभ सब्जियों का बीज बैंक बनाया है. बीजों की दुर्लभ किस्मों को इकट्ठा करने के अपने अनूठे मिशन के लिए वह भारत भर के किसानों से मिल चुके हैं और करीबन 80,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा भी कर चुके हैं.
श्रवण कुमार, श्यानंद और अजवलाला बेरोजगार थे और इन्होंने फिशरीज में अपना भविष्य बेहतर बनाया. तीनों पढ़ाई पूरी करने के बाद काफी समय तक सरकारी नौकरी की तलाश करते रहे. एक दिन तीनों ही दोस्त बैठकर अपने करियर की प्लानिंग कर रहे थे और इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि कौन सा काम शुरू किया जाए, जो इनके लिए फायदेमंद हो सके. इसी चर्चा में इन्हें मछली पालन यानी फिशरीज का आइडिया आया.
आज के दौर में खेती को भले ही घाटे का सौदा मान लिया गया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में दुर्ग जैसे दूरदराज के इलाकों की जागृति साहू की तरह तमाम महिला किसान कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं. जागृति न केवल Drone Didi के रूप में इलाके के किसानों की मददगार बन रही हैं बल्कि Self Help Group से जुड़ कर वह मशरूम की खेती से सफल किसान भी बन गई है.
क्लेश नायक ने मछली पालन की शुरुआत साल 2013 में की थी. उन्होंने बताया कि उनका परिवार गेतलसूद डैम बनने के दौरान विस्थापित हुआ था. डैम के निर्माण में उनकी पूरी जमीन चली गई. उसके बाद से उनका पुश्तैनी काम मछली पालन करना ही रहा है.
किसान हनुमंत प्रति एकड़ 7.5 किलोग्राम मक्का के बीज बोते हैं और दावा करते हैं कि इसके लिए मध्यम वर्षा भी पर्याप्त है. वे बिना सिंचाई के प्रति एकड़ 40 क्विंटल मक्का की फसल काटने में सफल रहे. इसके अलावा, उनके मवेशियों को चार से पांच ट्रैक्टर चारा मिला है.
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