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केरल में बत्तखों में फैली फ्लू की बीमारी, राहत के लिए किसानों ने उठाई ये बड़ी मांग 

केरल में बत्तखों में फैली फ्लू की बीमारी, राहत के लिए किसानों ने उठाई ये बड़ी मांग 

केरल के कुट्टनाड को 'राइस बाउल' यानी चावल के कटोरे के तौर पर जाना जाता है. तालाबों से घिरे इस क्षेत्र में बत्तख पालन से किसानों को अच्छी इनकम होती है. कई किसान धान के बड़े-बड़े खेतों में बड़ी संख्या में बत्तख पालते हैं इससे उन्हें अच्छा मुनाफा भी होता है. लेकिन एवियन इन्फ्लूएंजा यानी बर्ड फ्लू की वजह से क्षेत्र में बत्तख पालन पर असर पड़ने लगा है.  

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केरल के अलपुझा में बर्ड फ्लू से परेशान किसान केरल के अलपुझा में बर्ड फ्लू से परेशान किसान

केरल के कुट्टनाड को 'राइस बाउल' यानी चावल के कटोरे के तौर पर जाना जाता है. यह‍ हिस्‍सा कई भौगोलिक विशेषताओं वाला क्षेत्र भी है. कुट्टनाड चारों तरफ से वॉटर बॉडीज यानी जल निकायों और विशाल धान के खेतों से घिरा हुआ है. कुट्टनाड में धान की खेती की जिस भूमि पर की जाती है, वह 80 प्रतिशत समुद्र तल से नीचे है. इस वजह से इस क्षेत्र में खेती करना एक कठिन काम बन जाता है. इस क्षेत्र में करीब 1.8 लाख परिवार अपनी आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर हैं. लेकिन इन दिनों यहां के किसान कई चुनौतियों से अलग एक नई परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. 

किसान हुए परेशान 

बत्तखों में फैली फ्लू की बीमारी ने किसानों की टेंशन बढ़ा दी है. कुट्टनाड के किसानों को अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता है. इससे उनकी पूरी फसल नष्‍ट हो जाती है और वे कंगाल हो जाते हैं. दरअसल धान की खेती के साथ-साथ बत्तख पालन भी इस क्षेत्र के अधिकांश किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है. कई किसान अपनी रोजाना की जरूरतों को पूरा करने के लिए बत्तखों को पालते हैं. तालाबों से घिरे इस क्षेत्र में बत्तख पालन से किसानों को अच्छी इनकम होती है. कई किसान धान के बड़े-बड़े खेतों में बड़ी संख्या में बत्तख पालते हैं इससे उन्हें अच्छा मुनाफा भी होता है. लेकिन एवियन इन्फ्लूएंजा यानी बर्ड फ्लू की वजह से क्षेत्र में बत्तख पालन पर असर पड़ने लगा है.  

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राजस्‍व में करोड़ों का घाटा 

यह बीमारी पहली बार साल 2014 में सामने आई थी. पिछले एक दशक में फ्लू के बार-बार होने वाले प्रकोप ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. बर्ड फ्लू के खेतों में फैलते ही बहुत  सी बत्तखें कुछ ही समय में मर जाती हैं. बीमारी को फैलने से रोकने के लिए सरकारी एजेंसियां ​​आगे आती हैं. ये एजेंसियां प्रभावित खेतों में मौजूद सभी पक्षियों को मार देती हैं, ताकि बीमारी को दूसरे इलाकों में फैलने से रोका जा सके. पक्षियों की मृत्यु और उसके बाद उनकी हत्या ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है. साथ ही पिछले एक दशक में बत्तख पालन से हर साल होने वाला राजस्‍व भी 100 करोड़ रुपये से घटकर 10 करोड़ रुपये से भी कम हो गया है. 

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10 साल बाद भयानक रूप 

एवियन फ्लू यानी बर्ड फ्लू प्रवासी पक्षियों से यहां पर फैलता है जो कुट्टनाड में झुंड में आते हैं. साल 2014 में इस बीमारी ने कुट्टनाड के एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित किया था. साल 2016, 2020 और 2024 में फिर से इस बीमारी ने अपना भयानक रूप दिखाया और इसे रोकने के लिए लाखों पक्षियों को मारना पड़ा. यहां के एक किसान ने बताया कि पिछले 40 सालों से वह कुट्टनाड में बत्तख पालन में लगे हुए हैं. प्रकृति की अनिश्चितताओं ने उनके लिए जीवन को कठिन बना दिया है. कभी-कभी, यह बाढ़ के रूप में सामने आता है तो कभी यह महामारी का रूप ले लेता है. वायरस इनफेक्‍शन अब एक सामान्‍य घटना बन गई है. हर मौसम में सैकड़ों बत्तखें मर जाती हैं. किसानों की मानें तो  हाल के कुछ सालों में बर्ड फ्लू एक बड़ा खतरा बन गया है. 

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बीमा योजना की मांग 

एक किसान ने बताया कि साल 2014 में बर्ड फ्लू के प्रकोप के कारण उन्‍हें सात लाख रुपये का नुकसान हुआ. उनकी खेत में आठ हजार बत्तखें मर गईं और करीब 4000 को मार दिया गया.  सरकार ने सिर्फ मारी गई गए बत्तखों के लिए मुआवजा दिया.  कुट्टनाड के किसान लगातार सरकारों से बीमा योजना लागू करने की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी दलीलें अनसुनी कर दी गई हैं. किसान खुद ही नुकसान की भरपाई करने के लिए मजबूर हैं. 

कर्ज के जाल में फंसते किसान 

किसान धान के खेतों में करीब 12000 बत्तखों का पालन करते हैं. उन्‍हें खेती के लिए बैंकों और निजी साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है. बत्तखों को बेचकर किसान कर्ज चुकाते हैं और नई  बत्तखों को खरीदने के लिए फिर से कर्ज लेते हैं. कुछ किसानों पर इस वजह से बैंकों का करीब 20 लाख रुपये का कर्ज हो गया है.  कई मुश्किलों के चलते साल 2014 से अधिकांश किसानों ने खेती करना बंद कर दिया है. साल 2014 में कुट्टनाड में बत्तख पालने वाले किसानों की रजिस्‍टर्ड संख्या 1620 थी. 2024 में यह संख्या घटकर 200 से भी कम रह गई है. 

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लैब न होना बड़ी समस्‍या 

बर्ड फ्लू की पहचान के लिए यहां पर लैब की सुविधा नहीं है और यह चिंता का एक और बड़ी वजह है. जब बत्तखें पानी में डूबने लगती हैं तो किसान उन्हें तिरुवल्ला के पास मंजादी में एवियन डिजीज डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी में ले जाते हैं. प्रयोगशाला को बीमारी की पहचान करने में दो से तीन दिन लग जाते हैं. लेकिन मंजादी लैब को बीमारी के प्रकोप की घोषणा करने की अनुमति नहीं है. इसलिए नमूनों को पुष्टि के लिए फिर से राष्‍ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (NISHAD) भोपाल भेजा जाता है. इसमें एक हफ्ते से ज्‍यादा का समय लग जाता है.  विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अलपुझा में एक जैव-सुरक्षा स्तर-3 प्रयोगशाला का निर्माण करना चाहिए ताकि संदिग्ध प्रकोप की सूचना मिलने के तुरंत बाद बीमारी की पहचान की जा सके.