तमाम राजनीतिक नाकों को नेस्तनाबूद करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मध्य प्रदेश के दिमनी विधानसभा से चुनाव जीत गए हैं. उलझे जातीय समीकरणों, पार्टी के भितरघातों और किसान संगठनों के विरोध के बावजूद तोमर ने जिस तरह से सियासी चक्रव्यूह तोड़ा है वो आसान नहीं था. तोमर के मध्य प्रदेश की राजनीति में जाने की चर्चा काफी वक्त से दिल्ली के सियासी गलियारों में चलती रही है. लेकिन इसकी पुष्टि उस वक्त हुई जब बीजेपी ने उन्हें एमपी में चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया. जब उन्हें मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया तो यह बात और पुख्ता हो गई. तभी से तोमर को उनके समर्थक मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के एक प्रबल दावेदार के तौर पर भी देखने लगे हैं. हालांकि, सीएम कौन होगा और किसे निराशा हाथ लगेगी यह तो पार्टी नेतृत्व तय करेगा.
तोमर को प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद पार्टी के अंदर के उनके विरोधियों ने उन्हें मानसिक तौर पर यह कहकर तंग करने की कोशिश की कि विधानसभा चुनाव के लिहाज से दिमनी बीजेपी के लिए एक कमजोर सीट है. इसके चलते नरेंद्र सिंह तोमर को यहां कुछ मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है. साल 2008 के बाद यहां पर बीजेपी नहीं जीत सकी थी. उधर, जब चुनाव प्रचार चरम पर था तब तोमर के बेटे की एक वीडियो वायरल करवाकर उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई. लेकिन इस 'बाधा दौड़' को आखिरकार जीत कर उन्होंने अपने विरोधियों के मुंह पर ताला लगा दिया. कांग्रेस ने यहां से रविंद्र सिंह तोमर को उम्मीदवार बनाया था. जबकि बीएसपी ने बलवीर सिंह दंडोतिया को टिकट दिया था. दिमनी में त्रिकोणीय मुकाबला था.
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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर संगठनात्मक क्षमता के धनी और कुशल रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं. वो बात करने की बजाय काम को तवज्जो देने में विश्वास रखते हैं. वो पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नजदीकी माने जाते हैं. उन्हें केंद्र की ओर से एक ऐसा टास्क दिया गया था कि जिसे पूरा करना उनके आगे के सियासी सफर के लिए बहुत जरूरी था. अपनी मेहनत और कार्यशैली की बदौलत तोमर ने चंबल क्षेत्र की इस सीट पर कमल खिलाकर अपना लोहा मनवा दिया है. अब देखना यह है कि क्या सीएम बनने वाली उनकी और उनके समर्थकों की ख्वाहिश पूरी होती है या नहीं.
तोमर ने दिमनी जैसी सीट से जीत दर्ज करके विरोधियों को हाशिए पर धकेल दिया है. दिमनी में लंबे समय से जो बीजेपी के खिलाफ चक्रव्यूह बनाया जा रहा था उसे तोड़कर जीत का सेहरा पहन लिया है. शतरंज की तरह सियासत के भी कोई तयशुदा नियम नहीं होते. जैसा मौका वैसी चाल चली जाती है. मध्य प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में से एक मानी जाने वाली दिमनी सीट पर जीत शायद इसी मंत्र से तय हुई है. तोमर ने अपने खिलाफ माहौल को अपने पक्ष में किया. नाराज लोगों को साधा. खेती-किसानी में किए गए अपने काम गिनवाए. हालांकि, वोटिंग के दौरान दिमनी विधानसभा क्षेत्र में कई जगह पर हिंसा की घटनाएं भी हुई थीं. जिससे यह सीट बहुत चर्चा में रही है.
उनकी जीत के बाद अब देखना यह है कि वो मध्य प्रदेश की राजनीति में ही रहते हैं या फिर शिवराज सिंह चौहान सीएम बन जाते हैं तो उन्हें वापस से केंद्र में कृषि मंत्रालय का ही काम आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मिलती है. तोमर अभी मुरैना लोकसभा सीट से सांसद हैं. मध्य प्रदेश में सीएम पद के सात प्रमुख दावेदार हैं. इन्हीं में एक तोमर भी हैं. लेकिन, शिवराज से अलग अगर किसी की बात होती है तो तोमर गंभीर दावेदार के तौर पर उभरते हैं. यह चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया है, इसलिए तोमर सहित कई नेता उम्मीद पाले हुए हैं.
नरेंद्र सिंह तोमर अपने कॉलेज में छात्र संघ अध्यक्ष रहे हैं. वहीं से राजनीति का ककहरा सीखा. शिक्षा पूरी करने के बाद वे ग्वालियर नगर निगम के पार्षद बने. तोमर पहली बार 1998 में ग्वालियर से विधायक निर्वाचित हुए. इसी क्षेत्र से वर्ष 2003 में दूसरी बार चुनाव जीता. वो उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रह चुके हैं. वो मध्य प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे चुके हैं. तोमर पहली बार प्रदेश के मुरैना संसदीय क्षेत्र से वर्ष 2009 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. वे इसके पहले प्रदेश से राज्यसभा सदस्य थे.
वो केंद्र में ग्रामीण विकास, पंचायती राज, इस्पात और श्रम सहित कई विभागों के कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. लेकिन उनका सबसे यादगार कार्यकाल कृषि मंत्रालय में रहा है. क्योंकि उन्हीं के वक्त तीन कृषि कानून आए थे. जिसके खिलाफ करीब 13 महीने लंबा किसान आंदोलन हुआ, जिससे सरकार बैकफुट पर आ गई और इन कानूनों को वापस लेना पड़ा.
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कृषि कानूनों की वजह से ही संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने दिमनी विधानसभा में जाकर तोमर के खिलाफ अभियान चलाया. किसानों को उनके खिलाफ एकजुट करने की कोशिश की. देश के 400 से अधिक किसान संगठनों के गठबंधन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा तोमर के खिलाफ चलाया गया अभियान काम नहीं आया. तोमर ने जीत का स्वाद चखकर एक साथ कई मोर्चों परअपने विरोधियों को चित कर दिया है. उनके खिलाफ किसान संगठन कोई समीकरण नहीं बना सके.
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