क्या टूट गया बीटी कॉटन का 'तिलिस्म'? गुलाबी सुंडी और रोग की जद में कपास, क्या करें किसान

क्या टूट गया बीटी कॉटन का 'तिलिस्म'? गुलाबी सुंडी और रोग की जद में कपास, क्या करें किसान

जीएम तकनीक से बीटी कॉटन को इसी फायदे के लिए बनाया गया था कि उस पर कीटों और रोगों का हमला नहीं होगा. लेकिन अब यह धारणा टूट रही है क्योंकि बीटी कॉटन पर गुलाबी सुंडी का प्रकोप देखा जा रहा है. राजस्थान के हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के 3 लाख से अधिक किसान कीटों के हमले से चिंतित हैं.

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क्या टूट गया बीटी कॉटन का 'तिलिस्म'? गुलाबी सुंडी और रोग की जद में कपास, क्या करें किसानबीटी कपास पर गुलाबी सुंडी का हमला

बीटी कॉटन को लेकर आम लोगों में जो सोच थी, अब वह सोच टूट रही है. ये सोच थी बीटी कॉटन के रोगमुक्त और कीटमुक्त होने की. ऐसी अवधारणा रही है कि बीटी कॉटन पर कीटों का हमला नहीं होता. न ही रोगों का प्रकोप होता है. मगर अब ऐसी बात नहीं है. अब बीटी कॉटन पर कीट भी लगते हैं और रोगों का प्रकोप भी हो रहा है. इससे किसानों में चिंता है. खासकर राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के किसानों में जहां 95 फीसद से अधिक बीटी कपास की खेती होती है. आइए जान लेते हैं कि बीटी कॉटन पर रोग क्यों लग रहे हैं.

दरअसल, बीटी कॉटन पर अभी सबसे अधिक प्रकोप गुलाबी सुंडी का देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि गुलाबी सुंडी ने बीटी कॉटन के प्रति प्रतिरोधकता विकसित कर ली है. बीटी कॉटन के क्षेत्र में बॉलगार्ड-2 यानी बीजी-2 का नाम बहुत मशहूर है. बीजी-2 बीटी कपास की ऐसी तकनीक है जो कीटों से बचाने के लिए तैयार की गई है, खासकर बॉलवर्म यानी गुलाबी सुंडी के लिए. बीजी-2 तकनीक में दो अलग-अलग जीन का उपयोग करके बीटी कपास को कीटों के प्रति प्रतिरोधक बनाया गया है. लेकिन अब यह अवधारणा टूट गई है क्योंकि बीटी कपास पर गुलाबी सुंडी का प्रकोप सबसे अधिक देखा जा रहा है.

बीटी कॉटन पर गुलाबी सुंडी का प्रकोप

अभी तक किसान बीटी कपास में कीटनाशकों का छिड़काव भी नहीं करते थे क्योंकि किसी भी तरह के कीट का प्रकोप नहीं होता था. मगर जब से गुलाबी सुंडी का प्रकोप शुरू हुआ है तब से किसानों का सबसे अधिक खर्च कीटनाशकों पर हो रहा है. पहले यह खर्च बच जाया करता था. खासकर पछेती फसल में सुंडी का प्रकोप ज्यादा रहता है. एक आंकड़े के मुताबिक, 2023 में पछेती फसल में गुलाबी सुंडी की वजह से 20-90 फीसद तक नुकसान हुआ था. राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में यह नुकसान देखा गया. यही वजह है कि इस साल यहां के 3 लाख किसान गुलाबी सुंडी और रोगों को लेकर चिंतित हैं.

अगर आप भी बीटी कपास की खेती करने वाले किसान हैं तो आपको गुलाबी सुंडी को लेकर सावधान रहने की जरूरत है. एक्सपर्ट के बताए रास्ते पर चलते हुए इस कीट के प्रकोप को पकड़ने और समय पर उसका इलाज करने की जरूरत है. राजस्थान की जहां तक बात है तो अभी यहां गुलाबी सुंडी का प्रकोप आर्थिक हानि के स्तर से नीचे है. अभी किसी बड़े नुकसान की खबरें नहीं है, मगर सावधानी हटते ही दुर्घटना हो सकती है. इसका सबसे अच्छा उपाय है कि खेतों में फेरोमोन ट्रैप जरूर लगाएं और कीटों की संख्या के आधार पर प्रकोप का पता करें.

गुलाबी सुंडी से कैसे बचाएं फसल

एक्सपर्ट के मुताबिक, कपास बुआई के 45-60 दिन में प्रति एकड़ 2 फेरोमोन ट्रैप लगाएं. अगर इनमें 5-8 पतंगे प्रति ट्रैप फंसते हैं या 100 फूलों में 10 गुलाबनुमा फूल दिखें या हरे टिंडे खोलने पर गुलाबी सुंडी के लार्वा दिखें तो समझें कि सुंडी का प्रकोप आर्थिक हानि के स्तर पर पहुंच चुका है. इस स्थिति में फसल की अवधि और कीटों के प्रकोप के अनुसार कीटनाशकों का छिड़काव करें. मौसम साफ होने पर नीम के तेल की 5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें. 

एक्सपर्ट के मुताबिक, बीटी कॉटन की फसल 60 दिनों की हो जाए और उसके फलीय भागों पर सुंडी का प्रकोप 5-10 परसेंट तक हो तो बचाव में ईमामेक्टिन बेंजोएट 5 प्रतिशत एसजी कीटनाशक की 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी या प्रोफेनोफॉस 50 परसेंट ईसी की 5 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इससे गुलाबी सुंडी के प्रकोप से फसल को बचाया जा सकता है.

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