भारतीय मसालों की दुनिया में अलग ही महक है और कई देशों को मसालों का निर्यात किया जाता है. अमेरिका भी भारतीय मसालों का बड़ा बाजार है लेकिन पिछले दिनों जो घटनाक्रम हुए हैं उसके बाद से निर्याताकों की टेंशन बढ़ गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 25 प्रतिशत वाले टैरिफ का बम फोड़ा है और यही निर्यातकों को मुश्किल में डाल रहा है. उन्हें अब चिंता सताने लगी है कि कहीं उनके प्रतिद्वंदी इस स्थिति का फायदा न उठा न ले जाएं. टैरिफ अमेरिका के अनुसार एक अगस्त से लागू हो चुका है. हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो अगले कुछ दिनों में अगर द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) होता है तो राहत मिल सकती है.
इंडियास्टैट के आंकड़ों के अनुसार साल 2024-25 में अमेरिका ने भारत से जो मसाले खरीदता है उनमें आंध्र प्रदेश के गुंटूर की मशहूर लाल मिर्च सबसे ऊपर है. उसके बाद हींग, अदरक, हल्दी, धनिया, जीरा काली मिर्च, सौंफ जैसे मसालें शामिल हैं. इसके अलावा इलायची, मेथी, सरसों के बीज, लहसुन, जायफल-मास, करी पाउडर, स्पाइस ऑयल और ओलियोरिसिन का भी निर्यात किया गया. अमेरिका भारतीय मसालों का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. मसाला बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के लिहाज से अमेरिका को मसालों और मसाला उत्पादों का निर्यात 2024-25 के दौरान 71.1 करोड़ डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष के 61.92 करोड़ डॉलर से 15 प्रतिशत अधिक है. मात्रा के लिहाज से, निर्यात पिछले वर्ष के 1.114 लाख टन से 13 प्रतिशत बढ़कर 1.256 लाख टन हो गया.
स्वाद और गुणवत्ता ये दो वजहें हैं जो हर साल अमेरिका को भारत से मसाले खरीदने के लिए मजबूर कर देती हैं. भारत को पिछली कई सदियों से क्वालिटी वाले मसालों के लिए जाना जाता है. निर्यातकों की मानें तो ट्रंप प्रशासन के 25 प्रतिशत टैरिफ के कारण काली मिर्च, हल्दी और अदरक जैसे भारतीय मसाले जो अभी तक अमेरिकी बाजार में दबदबा बनाए हुए हैं, अपनी चमक खो सकते हैं. उन्हें डर सता रहा है कि कहीं वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे बाकी देश, भारत की हिस्सेदार न छीन लें.
ऑल इंडिया स्पाइसेस एक्सपोर्टर्स फोरम के अध्यक्ष इमैनुएल नम्बुस्सेरिल के हवाले से अखबार बिजनेसलाइन ने लिखा कि मसाला उद्योग की नजरें अब इस तरफ हैं कि रूस से पेट्रोलियम आयात पर अंतिम टैरिफ और जुर्माना क्या होगा. फिलहाल, काली मिर्च (काली/सफेद) के लिए मुकाबला वियतनाम और इंडोनेशिया से है. वियतनाम पर 20 प्रतिशत टैरिफ तो इंडोनेशिया पर 19 प्रतिशत टैरिफ लगता है. उन्होंने कहा कि अगर भारत के लिए टैरिफ 25 प्रतिशत (जुर्माना सहित) हो, तो उन्हें फायदा रहेगा.
विशेषज्ञों की मानें तो वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे देश, जिन पर कम टैरिफ लागू हैं, भारत का बाजार हिस्सा हथिया सकते हैं, खासकर काली मिर्च, हल्दी, अदरक आदि जैसे प्रतिस्पर्धी उत्पादों के मामले में. इसका नतीजा यह हो सकता है कि अमेरिकी किराना स्टोरों में मसाला ब्रांड या तो कीमतें बढ़ा दें या उत्पादों की विविधता कम कर दें, जिससे उपभोक्ता मांग प्रभावित होगी. इसके परिणामस्वरूप खपत कम होगी और निर्यात भी कम होगा.
बाकी मसालों के लिए, अमेरिकी ग्राहकों को भारत पर निर्भर रहना पड़ता है जो अतिरिक्त टैरिफ और जुर्माने का बोझ उठाकर सबसे बड़ा उत्पादक (और उपभोक्ता भी) है. विशेषज्ञों को चिंता है कि आने वाले समय में निर्यात में कमी आ सकती है. हालांकि उन्हें उम्मीद भी है कि 3-4 महीनों में स्थिति सामान्य हो जाएगी. वर्तमान में, भारतीय मसाला उत्पादों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगता है और लगभग सभी निर्यातक इसका बोझ ग्राहकों पर डाल रहे हैं.
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