पंजाब से लेकर राजस्‍थान के खेतों में हरे फुदके का खतरा, कैसे करें पहचान और क्‍या हैं बचाव के उपाय  

पंजाब से लेकर राजस्‍थान के खेतों में हरे फुदके का खतरा, कैसे करें पहचान और क्‍या हैं बचाव के उपाय  

विशेषज्ञों के मुताबिक नियमित तौर पर खेतों की निगरानी जरूरी है. हफ्ते में कम से कम दो बार खेतों का निरीक्षण करें, खासकर पत्तियों के नीचे के हिस्से का जहां ये कीट छिपते हैं. छोटे, हरे, गतिशील कीटों और पत्तियों के किनारों का पीला पड़ना और मुड़ना जैसे लक्षणों पर ध्यान दें. अगर एक पत्ती पर दो से ज्‍यादा जैसिड दिखाई दें तो तुरंत उपाय करें.

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पंजाब से लेकर राजस्‍थान के खेतों में हरे फुदके का खतरा, कैसे करें पहचान और क्‍या हैं बचाव के उपाय  Green Leafhopper: इस जरा से कीट से ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं

पंजाब, हरियाणा और राजस्‍थान में कपास के खेतों में कई साल के बाद ग्रीन लीफहॉपर या इंडियन कॉटन जैसिड जिसे स्थानीय तौर पर हरे रंग का फुदका या कहीं-कहीं पर हरा तेला भी कहा जाता है, उसकी एंट्री हो गई है. इस मौसम में इस कीट की एंट्री ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं खासकर कपास के किसानों की. खेतों में इनकी भारी संख्या से किसान चिंतित हैं और उन्‍हें बड़े नुकसान की आशंका सता  रही है. एक्‍सपर्ट्स का कहना है कि हरे फुदके की आबादी में इजाफा अनुकूल मौसम की वजह से होता है. वहीं विशेषज्ञों ने इस कीट को पहचानने और इनसे फसलों को बचाने के लिए भी खास सलाह किसानों को दी हैं. 

क्‍यों बढ़ती है इनकी संख्‍या 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार औसत से ज्‍यादा बारिश, लगातार नमी, बारिश के दिनों में इजाफा होना और लगातार बादल छाए रहना, ये सभी वजहें इस कीट के लिए एक आदर्श प्रजनन वातावरण बनाती हैं. इसकी वजह से उपज में 30 प्रतिशत तक की संभावित हानि हो सकती है. हरा फुदका कपास का एक मौसमी चूषक कीट है. 3.5 मिमी का हल्के हरे रंग का यह कीट अपने दो काले धब्बों और पत्तियों पर तेज, तिरछी गति से पहचाना जाता है. नवजात और वयस्क दोनों ही तरह के कीट पत्ती के ऊतकों से रस चूस लेते हैं और जहरीले पदार्थों को शरीर में छोड़ते हैं. इसे  'हॉपर बर्न' कहा जाता है. इसकी वजह से फोटो सिंथेसिस यानी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया कम हो जाती है, पौधों का विकास रुक जाता है और कभी-कभी तो पत्तियां पूरी तरह से सुख जाती हैं. 

नीम का तेल करें प्रयोग 

विशेषज्ञों के मुताबिक नियमित तौर पर खेतों की निगरानी जरूरी है. हफ्ते में कम से कम दो बार खेतों का निरीक्षण करें, खासकर पत्तियों के नीचे के हिस्से का जहां ये कीट छिपते हैं. छोटे, हरे, गतिशील कीटों और पत्तियों के किनारों का पीला पड़ना और मुड़ना जैसे लक्षणों पर ध्यान दें. अगर एक पत्ती पर दो से ज्‍यादा जैसिड दिखाई दें तो तुरंत उपाय करें. शुरुआती चरण के संक्रमण के लिए, नीम के तेल या पर्यावरण-अनुकूल जैव-कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है. 

जब इनफेक्‍शन ज्यादा हो तब क्‍या करें 

गंभीर संक्रमण की स्थिति में, किसानों को नीचे बताए गए  कीटनाशकों में से किसी एक का उपयोग करना चाहिए- टॉल्फेनपाइराड 15 ईसी (300 मिली/एकड़), फेनपाइरॉक्सिमेट 5 ईसी (300 मिली/एकड़), फ्लोनिकैमिड 50 डब्ल्यूजी (80 ग्राम/एकड़), डाइनोटेफ्यूरान 20 एसजी (60 ग्राम/एकड़), या थियामेथोक्सम 25 डब्ल्यूजी (40 ग्राम/एकड़). 

विशेषज्ञ सुबह जल्दी या देर शाम छिड़काव करने की सलाह देते हैं, ताकि पत्तियों के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से कवर हो जाए. साथ ही खेतों के अंदर और आसपास खरपतवार साफ करते रहें ताकि जैसिड और बाकी दूसरे कीट न पनपने पाएं. 

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