Success Story: मिट्टी से मिली नई जिंदगी! कूच बिहार के किसानों की सफलता की अनोखी कहानी

Success Story: मिट्टी से मिली नई जिंदगी! कूच बिहार के किसानों की सफलता की अनोखी कहानी

पश्चिम बंगाल की तीन किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी) के 750 से ज्‍यादा किसानों ने मिट्टी को फिर से जीवन देने की दिशा में एकजुट होकर कदम बढ़ाए और अपनी आय को भी बढ़ाया. इस पहल की नींव तब रखी गई जब कूच बिहार सॉइल टेस्टिंग लैब की मदद से मिट्टी की जांच करवाई गई. वैज्ञानिक तरीके से हुए टेस्ट्स में यह बात साफ हुई कि परेशानी मेहनत की कमी नहीं, बल्कि मिट्टी की खराब सेहत भी है.

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Success Story: मिट्टी से मिली नई जिंदगी! कूच बिहार के किसानों की सफलता की अनोखी कहानीSucess story: कूच बिहार के किसानों ने बदली अपनी जिंदगी

पश्चिम बंगाल का कूच बिहार जिला कभी मिट्टी की खराब सेहत और किसानों की टूटी हुई उम्मीदों से जूझ रहा था. अम्लीय मिट्टी, कम कार्बनिक कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी ने यहां के किसानों को लगातार नुकसान पहुंचाया. बढ़ती लागत और घटती उपज ने उन्हें आर्थिक संकट में धकेल दिया था. लेकिन यही कहानी अब बदलाव और सफलता की मिसाल बन चुकी है. तीन किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी)— कायाखाता रवींद्र एफपीसी, बरोडोला एफपीसी और जंबारी एफपीसी—के 750 से अधिक किसानों ने मिट्टी को फिर से जीवन देने की दिशा में एकजुट होकर कदम बढ़ाए और अपनी आय को भी बढ़ाया. लेकिन किसानों ने ऐसा क्‍या किया जो उन्‍हें इतनी सफलता मिली. आइए जानते हैं. 

बदलाव की शुरुआत 

इस पहल की नींव तब रखी गई जब कूच बिहार सॉइल टेस्टिंग लैब की मदद से मिट्टी की जांच करवाई गई. वैज्ञानिक तरीके से हुए टेस्ट्स में यह बात साफ हुई कि परेशानी मेहनत की कमी नहीं, बल्कि मिट्टी की खराब सेहत भी है. इसके बाद इस आधार पर किसानों को खास सुझाव दिए गए जो इस तरह से थे- 

मिट्टी के पीएच को संतुलित करने के लिए चूने का प्रयोग 
जैविक पदार्थ बढ़ाने के लिए जैव उर्वरक का उपयोग
जिंक और बोरॉन जैसे माइक्रो न्‍यूट्रिएंट की भरपाई. 

जमीनी स्तर पर बदलाव 

इस वैज्ञानिक मार्गदर्शन का असर जल्द ही दिखने लगा. धान की पैदावार 20 से 40 फीसदी तक तक बढ़ गई. किसानों ने सिर्फ धान पर निर्भर रहने के बजाय दलहन और सरसों की खेती भी शुरू की. इससे मिट्टी की सेहत सुधरी और कीटों का दबाव कम हुआ. खेती की लागत में 15 फीसदी तक की कमी आई, जबकि किसानों की आय 25 से 30 फीसदी तक बढ़ गई. सामुदायिक प्रशिक्षण के बाद 30 प्रतिशत से ज्‍यादा किसानों ने स्थायी खेती पद्धतियों को अपनाया. 

किसानों को मिला आत्‍मविश्‍वास

इस पहल ने किसानों को केवल बेहतर पैदावार ही नहीं दी, बल्कि उन्हें ज्ञान और आत्मविश्वास भी दिया. अब यह एफपीसी न सिर्फ कृषि उत्पादन बढ़ाने का काम कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय किसानों को वैज्ञानिक खेती और सतत कृषि पद्धतियों की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. आज कूच बिहार के ये किसान बदलाव की एक जीती-जागती मिसाल हैं. सॉइल मैनेजमेंट और सहयोगात्मक प्रयासों ने साबित कर दिया कि सही मार्गदर्शन और सामूहिक इच्छाशक्ति से खेती की दुनिया बदल सकती है. इस पहल ने गांव वालों में खाद्य सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और आर्थिक समृद्धि की मजबूत नींव रख दी है. 

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