पंजाब के संगरूर ज़िले के देह कलां गांव के 65 वर्षीय किसान बचित्र सिंह गरचा आज क्षेत्र में एक मिसाल बने हुए हैं. कभी आलू की खेती में आई मंदी के चलते उन्हें अपनी जमीन तक गंवानी पड़ी थी, लेकिन आज वही किसान सोयाबीन प्रोसेसिंग से न केवल आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि अपने गांव और आसपास के लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गए हैं. बचित्र सिंह ने 1986 में आलू की खेती शुरू की थी और शुरुआती वर्षों में उन्हें अच्छी सफलता भी मिली. उन्होंने आलू की खेती के साथ-साथ आलू का व्यापार भी किया, लेकिन साल 1998 में आई आलू की मंदी ने उनकी ज़िंदगी बदल दी. चार साल तक लगातार आलू का दाम न मिलने से उन्हें भारी घाटा हुआ. हालात इतने बिगड़ गए थे कि उन्हें अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी.
साल 2002 में दिल्ली में लगे व्यापार मेले ने उनके जीवन को नई दिशा दी. वहां उन्होंने सोयाबीन प्रोसेसिंग तकनीक का एक स्टॉल देखा, जिसने उनका ध्यान खींचा. इस दौरान उनकी मुलाकात डॉ. नवाब अली से हुई, जो उस समय भारत में सोया उत्पादों को बढ़ावा दे रहे थे.
इसके बाद बचित्र सिंह ने मध्य प्रदेश और भोपाल कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लिया और 35,000 रुपये की मशीन से अपनी यूनिट की नींव रखी. शुरुआती दिनों में बहुत मुश्किलें आईं, क्योंकि न तकनीक की पूरी जानकारी थी और न ही बाजार की. लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत जारी रखी.
शुरुआत में उन्होंने अपने उत्पाद जैसे- सोया दूध, सोया पनीर, कुल्फी आदि अपनी छोटी किराना दुकान से बेचना शुरू किया. लोगों में जागरूकता कम थी, इसलिए वे अपने उत्पाद उपहार के रूप में बांटते भी रहे. धीरे-धीरे उनके उत्पादों की पहचान बनी और उपभोक्ताओं ने इन्हें अपनाना शुरू किया.
साल 2004 में जब तेज बारिश और तूफान के कारण मंडियों में पड़ा धान खराब हो गया तो केंद्र सरकार ने डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अगुवाई में विशेषज्ञों की एक टीम पंजाब भेजी. इसी दौरान डॉ. स्वामीनाथन संगरूर पहुंचे और बचित्र सिंह के घर भी गए. वहां उनकी सोया यूनिट देखकर वे प्रभावित हुए और पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, लुधियाना के वाइस चांसलर को निर्देश दिए कि बचित्र सिंह को यूनिवर्सिटी में दुकान दी जाए. यह उनके लिए एक बड़ा अवसर साबित हुआ.
बचित्र सिंह का ब्रांड “Vigour” अब क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम है. उनके यूनिट से प्रतिदिन 1-1.5 क्विंटल सोया पनीर और लगभग 1 क्विंटल सोया मिल्क और इससे बने उत्पाद तैयार होते हैं. गर्मियों के मौसम में कामकाज बढ़ने पर 10 से 15 मज़दूर यूनिट में काम करते हैं. उनके उत्पाद संगरूर, बरनाला, पातरां, रायकोट और लुधियाना जैसे शहरों तक बिकते हैं.
बचित्र सिंह सोयाबीन से नमकीन, मठरी, पकौड़े और बिस्कुट जैसे सूखे उत्पाद भी बनाते हैं. वे दावा करते हैं कि उनके किसी भी उत्पाद में न तो मिलावट होती है और न ही रसायन का इस्तेमाल. इस यूनिट से उन्हें हर महीने 1 से 1.5 लाख रुपये की आमदनी होती है. इसी आमदनी से उन्होंने दोबारा जमीन खरीदी, बच्चों की पढ़ाई और उनके विवाह का खर्च उठाया. साथ ही अपनी यूनिट का विस्तार किया. पिछले साल उन्होंने 70 लाख रुपये की लागत से एक नई मशीन खरीदी, जो 180 एमएल की बोतलों में अलग-अलग स्वाद का दूध पैक करती है.
उनके बेटे पवनदीप सिंह ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है. पढ़ाई के दौरान उन्होंने अमेरिका जाकर सोया प्रसंस्करण की ट्रेनिंग भी ली. पिछले दो साल से वे अपने पिता के साथ यूनिट में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं और नए उत्पाद लाने की योजना बना रहे हैं.
कृषि विज्ञान केंद्र खेड़ी के डॉ. मनदीप सिंह के अनुसार, बचित्र सिंह पिछले 20 सालों से सोया प्रोसेसिंग का काम कर रहे हैं. केंद्र द्वारा समय-समय पर उन्हें तकनीकी मदद भी दी जाती रही है. उनका कहना है कि बचित्र सिंह इस बात का उदाहरण हैं कि किसान प्रसंस्करण और वैल्यू एडिशन से खेती को लाभकारी बना सकते हैं. (कुलवीर सिंह की रिपोर्ट)
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