देवघर के मोहनपुर प्रखंड में एक छोटा सा गांव है मलहरा. इस गांव को लोग "फूलों का गांव" कहकर पुकारते हैं. यह गांव देवघर जिला मुख्यालय से सिर्फ 7 किलोमीटर दूर है और करीब 3,000 की आबादी वाला यह गांव पूरी तरह गेंदे की खेती पर निर्भर है. यहां के खेतों में आपको दूर-दूर तक सिर्फ गेंदे के फूल नजर आएंगे. गांव के हर घर में कोई न कोई किसान है, और हर किसान की कमाई का जरिया सिर्फ और सिर्फ फूल हैं.
बाबा बैद्यनाथ की पूजा से जुड़ी है परंपरा
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है. बाबा बैद्यनाथ धाम में पूजा के लिए फूलों की हमेशा जरूरत होती है. इसी जरूरत को देखते हुए पीढ़ियों से इस गांव के लोग फूलों की खेती करते आ रहे हैं. गांव के किसान बताते हैं कि उन्हें फूलों को बेचने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता. उनकी फसल देवघर के बाजारों, मंदिरों और विशेष रूप से बाबा मंदिर और बासुकीनाथ धाम में बिक जाती है.
सावन में होती है सबसे ज्यादा कमाई
गांव वालों के लिए सावन का महीना सबसे मुनाफे वाला समय होता है. इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ की पूजा करने आते हैं. मंदिरों में फूलों की डिमांड इतनी बढ़ जाती है कि कई बार सप्लाई कम पड़ जाती है. इस मौसम में मलहरा गांव के फूलों की जबरदस्त बिक्री होती है और यह गांव पूरे सावन भर बाबा की नगरी को महकाता है.
किसानों को चाहिए सरकारी मदद
गांव के किसान बताते हैं कि बीज उन्हें कोलकाता से मंगवाने पड़ते हैं, जो महंगे होते हैं. अगर सरकार से बीज और खेती के लिए थोड़ी मदद मिल जाए, तो वे अपनी फूलों की खेती को और आगे बढ़ा सकते हैं. किसानों की मांग है कि सरकार उन्हें उन्नत किस्म के फूलों के बीज, तकनीकी मदद और मार्केटिंग की सुविधा दे ताकि वे गेंदा के अलावा अन्य किस्मों के फूल भी उगा सकें और देवघर से बाहर भी अपने फूल बेच सकें.
सिर्फ मंदिरों पर नहीं रहे निर्भर
गांव के लोग अब चाहते हैं कि वे सिर्फ बाबा मंदिर तक सीमित न रहें, बल्कि आत्मनिर्भर बनें और अपने फूलों को देशभर में बेच सकें. इस दिशा में अगर सही कदम उठाए जाएं, तो यह छोटा सा गांव पूरे राज्य का फूलों का हब बन सकता है. गांव के एक किसान ने कहा, "सरकार साथ दे तो यह गांव भी खुशबू से भरा भविष्य देख सकता है. हमारी खेती सिर्फ धर्म से नहीं, हमारी रोजी-रोटी से भी जुड़ी है."
-शैलेंद्र मिश्रा की रिपोर्ट
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