मध्य भारत का अर्ध-शुष्क क्षेत्र बुंदेलखंड अक्सर सूखे और कठोर जलवायु का सामना करता है. यहां की 90% आबादी कृषि पर निर्भर है और 75% लोग वर्षा आधारित खेती करते हैं. लेकिन इसी क्षेत्र के हमीरपुर जिले में एक नई पहल ने किसानों के जीवन में बदलाव लाना शुरू कर दिया है, वह भी मधुमक्खी पालन की शुरुआत करके. जी हां, खेती और अन्य कार्यों में किसानों को पहले बारिश और अन्य चीजों पर निर्भर रहना पड़ता था. अब उस निर्भरता को खत्म करते हुए यहां के लोगों ने मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया है.
हमीरपुर जिला उत्तर प्रदेश के चित्रकूट धाम डिवीजन में आता है. यहां गर्मियों में तापमान 43°C तक चला जाता है जबकि सर्दियों में यह 20°C तक गिर जाता है. क्षेत्र में खेती की मुख्य फसलें हैं तिल, ज्वार, बाजरा, सरसों, सूरजमुखी, अमरूद, नींबू, आंवला, आदि. लेकिन बार-बार सूखा और सीमित संसाधनों के चलते किसानो को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
हमीरपुर की जलवायु, वहां उगाई जाने वाली फसलों और आसपास के पेड़ों की विविधता मधुमक्खी पालन के लिए बिल्कुल सही मानी जाती है. मधुमक्खियां न केवल शहद देती हैं, बल्कि फसलों की परागण में मदद करके उपज को भी बढ़ाती हैं.
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र, हमीरपुर ने मिलकर “मधुमक्खी पालन की उद्यमिता” नाम से एक परियोजना शुरू की. इस परियोजना को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY-RAFTAAR) के तहत लागू किया गया.
मात्र ऑपरेशनल खर्च के हिसाब से देखा जाए तो मधुमक्खी पालन का लाभ: लागत अनुपात 2.0 से 2.5 रहा. यानी हर 1 रुपये के खर्च पर 2 रुपये या उससे ज्यादा की कमाई.
हमीरपुर में मधुमक्खी पालन सिर्फ शहद की मिठास तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह किसानों के जीवन में आर्थिक सुधार और नई उम्मीद लेकर आया है. अगर इस मॉडल को बुंदेलखंड के अन्य जिलों में भी अपनाया जाए, तो यह क्षेत्र कृषि के साथ-साथ मधुमक्खी पालन में भी अग्रणी बन सकता है.
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