प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के सात साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन किसानों की परेशानियां कम नहीं हुई हैं. आए दिन किसानों की परेशानी वाली खबरें आती रहती हैं. खासतौर पर क्लेम मिलने को लेकर. किसी प्राकृतिक आपदा के बाद खराब हो चुकी फसल की जानकारी देने के लिए किसान के पास मात्र 72 घंटे होते हैं. इस बीच वो अगर सूचना नहीं दे पाया फसल चौपट होने के बावजूद उसे बीमा क्लेम नहीं मिलता. जिस बीमा कंपनी को काम करने के लिए जो क्षेत्र दिया गया होता है उसमें उसी के जारी किए गए मोबाइल नंबर पर सूचना देनी होती है. लेकिन, अब सरकार राष्ट्रीय स्तर पर एक हेल्पलाइन बनाने के लिए काम कर रही है.
सिर्फ हेल्पलाइन ही नहीं बल्कि एक शिकायत पोर्टल भी होगा, जिस पर इसके लिए बनाए गए विशेष कॉल सेंटर के जरिए किसानों की समस्या दर्ज की जाएगी. इसका नाम कृषि रक्षक हेल्पलाइन और पोर्टल रखा गया है. देश में फसल बीमा करने वाली 18 कंपनियां हैं, यानी 18 हेल्पलाइन होती हैं. हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग. उसमें भी कई बार नंबर बंद रहते हैं और गलती दी जाती है कि किसानों ने सूचना नहीं दी. देश भर में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की एक हेल्पलाइन (PMFBY Helpline) बनने के बाद ऐसा नहीं होगा कि बीमा कंपनियों के नंबर बंद करवा दिए जाएं. उनके पहले से चल रहे हेल्पलाइन नंबर चलते रहेंगे.
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हेल्पलाइन के जरिए न सिर्फ फसल खराब होने की जानकारी दर्ज की जाएगी बल्कि इससे संबंधित दूसरी समस्याओं को भी शामिल किया जाएगा. जो समस्या कृषि मंत्रालय के इस पोर्टल पर आएगी वो ऑटोमेटिक कंपनी के पास भी चली जाएगी. उसकी मॉनिटरिंग स्टेट और जिला स्तर पर भी होगी. करीब 500 लोगों का एक कॉल सेंटर बनाया जाएगा. जिसमें कॉल बैक की भी सुविधा होगी. इसमें व्हट्सअप चैट की भी सुविधा देने की योजना है. छत्तीसगढ़ में इसकी टेस्टिंग हो चुकी है. अगले खरीफ सीजन तक इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा. तब कृषि मंत्रालय खुद भी फसल बीमा से संबंधित किसानों की समस्याओं को दर्ज करके उसका समाधान करवा पाएगा.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana) के सीईओ रितेश चौहान ने 'किसान तक' से कहा, "हम यह ट्रैक करना चाहते हैं कि किसानों ने क्या समस्या उठाई और उसका क्या समाधान हुआ. हुआ या नहीं, नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ. जब कंपनी दावा करेगी कि समस्या का समाधान हो गया तो कॉल सेंटर से किसान के पास फिर से कॉल जाएगी और पूछा जाएगा कि आपकी समस्या का समाधान हुआ या नहीं. अगर किसान असंतुष्ट है तो दोबारा उस समस्या को ओपन किया जाएगा और बीमा कंपनी को उसका समाधान करना पड़ेगा."
किसान फसल बीमा करवा लेते हैं लेकिन जब नुकसान होने पर क्लेम करने की बारी आती है तो उन्हें बीमा कंपनी का कोई प्रतिनिधि नहीं मिलता. इसलिए किसानों की ओर से यह मांग हो रही है कि हर ब्लॉक में फसल बीमा का एक कर्मचारी हो, ताकि कोई समस्या आने पर उससे संपर्क किया जा सके. इससे काफी युवाओं को रोजगार भी मिलेगा. यह मांग तो पूरी नहीं हुई है लेकिन सरकार अब इस योजना की एक हेल्पलाइन और शिकायत पोर्टल बनाकर किसानों को राहत देने की तैयारी में जुट गई है.
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छह साल पहले 18 फरवरी 2016 को जब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत हुई थी तब से अब तक किसानों, राज्यों और केंद्र सरकार ने मिलकर बीमा कंपनियों को कुल 170127.6 करोड़ रुपये का प्रीमियम दिया है. जबकि, इसके बदले किसानों को सिर्फ 130015.2 करोड़ रुपये का क्लेम मिला है. यानी बीमा कंपनियों को 40112 करोड़ रुपये का मोटा फायदा हुआ है. यानी सालाना 6685 करोड़ रुपये. जबकि फसल नुकसान होने पर सर्वे का काम राजस्व विभाग के लोग करते हैं.
फसल बीमा योजना को सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक बना दिया गया है. किसान संगठन लगातार इसकी मांग कर रहे थे. वरना जो किसान बैंकों से कर्ज लेते थे उनकी इच्छा के विपरीत सरकार फसल बीमा का प्रीमियम काट लेती थी. लेकिन, अब ऐसा नहीं होता. अगर कोई कर्जदार या केसीसी धारक अपने बैंक में लिखकर यह दे दे कि उसे बीमा नहीं चाहिए तो पैसा नहीं कटेगा.
प्रीमियम में किसानों के अंशदान में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. उन्हें खरीफ फसलों पर 2 फीसदी, रबी फसलों पर 1.5 और बागवानी नकदी फसलों पर अधिकतम 5 फीसदी प्रीमियम देना होता है.
फसल की बुआई के 10 दिन के अंदर किसान को योजना का फॉर्म भरना होता है. फसल काटने से 14 दिनों के बीच अगर आपकी फसल को प्राकृतिक आपदा के कारण नुकसान होता है तो भी बीमा का लाभ उठा सकते हैं. बीमा की रकम का लाभ तभी मिलेगा जब आपकी फसल किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से खराब हुई हो.
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