केंद्र सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana) में बड़े बदलाव की तैयारी में जुट गई है. ताकि, किसानों को बीमा क्लेम मिलना आसान हो और कंपनियों की मनमानी पर रोक लगे. इस योजना में किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें से एक है मौसम और फसल नुकसान का अनुमान. कई बार एक ब्लॉक में मूसलाधार बारिश होती है और दूसरे में नहीं. ऐसे में नुकसान का सर्वे करवाना और बीमा मिलना कठिन हो जाता है. लेकिन, अब ऐसी व्यवस्था बनाई जा रही है किस ग्राम पंचायत में बारिश हुई और किसमें नहीं, इसकी सटीक जानकारी मिल जाए. इसके लिए फसल बीमा में कवर राज्यों के हर ब्लॉक में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन (AWS) और हर इंश्योरेंस यूनिट यानी हर ग्राम पंचायत स्तर पर ऑटोमेटिक रेन गेज (ARG) लगाए जाएंगे. वेदर स्टेशन लगाने की मंजूरी मिल गई है.
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विंड्स की शुरुआत करने से पहले केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने यह देखा है कि किस-किस राज्य में मौसम जानने का कितना बड़ा और क्या-क्या इंफ्रास्ट्रक्चर है. इसमें पता चला है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, तमिलनाडु, केरल और असम आदि में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशनों का काफी अभाव है. राजस्थान में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन पर्याप्त हैं लेकिन ऑटोमेटिक रेन गेज कम हैं. ऐसे में अब केंद्रीय कृषि मंत्रालय अपने खर्च पर फसल बीमा योजना के तहत कवर्ड सूबों में 1,88,000 ऑटोमेटिक रेन गेज और करीब 1200 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन लगवाएगा.
इस समय देश में 10,600 जगहों पर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन और 9500 जगहों पर ऑटोमेटिक रेन गेज हैं. 'किसान तक' से बातचीत में पीएम फसल बीमा योजना (PMFBY) के सीईओ रितेश चौहान ने कहा कि एक ऐसा सिस्टम बनकर तैयार होगा जो न केवल पीएम फसल बीमा बल्कि दूसरे कार्यों में भी इस्तेमाल किया जाएगा. किसानों को स्थानीय स्तर पर मौसम की सटीक जानकारी मिलने का रास्ता भी साफ होगा. इससे डिजास्टर मैनेजमेंट में भी मदद मिलेगी. इसका डाटा हम मौसम विभाग को भी शेयर करेंगे. क्योंकि उनके पास भी सभी जगहों पर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन नहीं है.
बीमा कंपनियों की एक बड़ी मनमानी फसल नुकसान के आकलन करने के पैटर्न को लेकर है. बीमा इंडीविजुअल होता है और क्लेम समूह में आकलन के हिसाब से मिलता है. कुछ फसलों में पटवार मंडल तो कुछ में गांव पंचायत को यूनिट माना जाता है. जबकि किसानों का कहना है कि हर खेत में नुकसान का अलग-अलग आकलन होना चाहिए. जब हर किसान अपना प्रीमियम दे रहा है तो उसके खेत को ही यूनिट माना जाना चाहिए. इस पैटर्न को तो नहीं बदला गया है लेकिन मौसम खराब होने, आंधी आने, अतिवृष्टि और बेमौसम बारिश की सटीक जानकारी होने से किसान बीमा कंपनियों पर क्लेम को लेकर दबाव बना पाएंगे.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की अधिकांश योजनाओं से बटाईदार किसान गायब हैं. लेकिन, पीएम फसल बीमा योजना में उन्हें शामिल किया गया है. गैर-कर्जदार किसानों को डॉक्यूमेंट के रूप में लैंड रिकॉर्ड और फसल बटाईदारों को कॉन्ट्रैक्ट सबमिट करना होगा. यह स्कीम नॉन-लोनी किसानों के लिए वैकल्पिक है. राज्यों के लिए भी यह स्कीम वैकल्पिक है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में उन प्रमुख मौसम संबंधी खतरों को कवर किया जाएगा, जिनसे प्रतिकूल मौसम वाली घटना होती है, जो फसल हानि की वजह बनती हैं. इनमें कम बारिश, अधिक बारिश, बेमौसम बारिश, बारिश के दिन, शुष्क मौसम, शुष्क दिन, उच्च तापमान (गर्मी), कम तापमान, उमस, हवा की गति, ओला-वृष्टि और बादल फटने की घटना आदि को शामिल किया जाता है. जोखिम की अवधि आदर्श रूप से फसल बोए जाने से उसकी मेच्योरिटी तक होती है.
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