दूध-दही, खेती-किसानी और खेलकूद के लिए मशहूर हरियाणा में जल संकट (Water Crisis) गहराता जा रहा है. यहां के कुल 7287 गांवों में से 3041 पानी की कमी से जूझ रहे हैं. यानी करीब 42 फीसदी गांवों के लोगों ने पानी के संकट का सामना करना शुरू कर दिया है. सूबे के 1948 गांव तो ऐसे हैं जो गंभीर जल संकट को झेल रहे हैं. इसकी वजह से सबसे बड़ी चुनौती खेती में आने वाली है. क्योंकि भारत में करीब 90 परसेंट भू-जल का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में होता है. इसलिए इस समस्या का समाधान भी किसानों के जरिए ही करने का प्रयास किया जा रहा है. उनसे धान की खेती छोड़ने को कहा जा रहा है, क्योंकि एक किलो चावल तैयार होने में करीब 3000 लीटर पानी खर्च होता है.
गेहूं की फसल तैयार है. इसके बाद धान की रोपाई का वक्त आ जाएगा. ऐसे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने खुद मोर्चा संभाल लिया है और वो इस बारे में किसानों से बातचीत कर रहे हैं. धान की खेती छोड़कर पानी बचाने वाले किसानों को उन्होंने "अमृत क्रांतिकारी मित्र" की उपाधि देते हुए एक अप्रैल को उनसे बातचीत की और हौसला बढ़ाया. केंद्रीय जल आयोग ने भी हरियाणा के 36 ब्लॉकों को पानी के लिहाज से डार्क जोन घोषित कर दिया है. ऐसे में अगर भू-जल को बचाया नहीं गया तो आने वाली पीढ़ियां कैसे खेती-किसानी करेंगी. उनका जीवन कैसे चलेगा?
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पानी का कम और ज्यादा होना दोनों खतरनाक है. फिलहाल, हरियाणा कम पानी के संकट को झेल रहा है. ऐसे में सरकार अब हर गांव में पानी का मूल्यांकन करवाएगी. ताकि पता चले कि एक साल पहले पानी का स्तर कितना था और अब कितना ऊपर आया है या कम हुआ है. इसके लिए हर गांव में पीजोमीटर (Piezometer) लगाए जाएंगे. लगभग डेढ़ हजार गांवों में लगा दिए गए हैं. इसे लगाने में खासतौर पर उन गांवों को प्राथमिकता दी जाएगी जहां पानी का स्तर 100 फुट से नीचे चला गया है. पीजोमीटर के जरिए भू-जल स्तर को मापा जाता है.
सीएम मनोहरलाल के मुताबिक पिछले दस साल से हर साल सूबे में पानी एक मीटर नीचे जा रहा है. इस ट्रेंड को रोकना होगा वरना स्थिति बहुत गंभीर हो जाएगी. बताया गया है कि 957 गांवों में भू-जल स्तर की गिरावट दर 0.00-1.00 मीटर प्रति वर्ष के बीच है. जबकि 707 गांवों में गिरावट दर 1.01-2.00 मीटर प्रति वर्ष के बीच है. इसी तरह 79 गांवों में गिरावट दर 2.0 मीटर प्रति वर्ष से अधिक है. यह चिंंताजनक स्थिति है.
इस संकट को समझने के बाद सवाल यह उठता है कि आखिर इसका समाधान क्या है? दरअसल, इसका समाधान खेती के जरिए ही खोजा जा रहा है और किसान इसमें मदद के लिए आगे भी आ रहे हैं. सरकार पानी बचाने पर किसानों को मदद दे रही है. पारंपरिक तौर-तरीकों के मुकाबले धान की सीधी बुवाई (DSR-Direct Seeding of Rice) से करीब 25 फीसदी पानी की बचत हो सकती है. इसलिए इस विधि को अपनाने वाले किसानों को 4000 रुपये प्रति एकड़ की मदद मिलेगी. जबकि धान की खेती छोड़ने पर 7000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा पहले से ही दिया जा रहा है. माइक्रो इरीगेशन का सिस्टम लगाने पर 85 फीसदी तक की छूट भी पानी बचाने के लिए ही दी जा रही है.
हरियाणा सरकार ने जल संकट को भांपते हुए मई 2020 में मेरा पानी मेरी विरासत (Mera Pani Meri Virasat) नामक एक योजना शुरू की थी. जिसके जरिए धान की खेती छोड़कर दूसरी फसलों को अपनाने पर 7000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा देने का एलान किया गया था. सीएम मनोहरलाल का कहना है कि तब से अब तक 1,74,464 एकड़ में किसानों ने धान की खेती बंद कर दी है. उसकी जगह मक्का, कपास, तिलहन, सब्जियों और दलहन फसलों की खेती हो रही है. ऐसा करने वाले किसान अब "अमृत क्रांतिकारी मित्र" कहलाएंगे. अब अगर कोई किसान धान वाले खेत को खाली भी छोड़ देगा तो भी सरकार उसे 7000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा देगी.
जल संकट से निपटने की जिम्मेदारी पूरे समाज की है. लेकिन, सरकार की भूमिका सबसे बड़ी है. हरियाणा सरकार ने इस चुनौती से पार पाने के लिए जल संसाधन प्राधिकरण बनाया है. इसके जरिए पानी के प्रबंधन पर काम किया जा रहा है. पानी का रियूज करने का बड़ा प्लान है. प्रदेश में 200 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए गए हैं. दावा है कि इनसे लगभग 700 क्यूसेक पानी का दोबारा उपयोग हो रहा है.
सीएम का खुद ऐसा मानना है कि रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन की ऊपरी परत ठोस हो रही है. जिससे बारिश का पानी जमीन के अंदर पहले की तरह नहीं जा पा रहा है. इसलिए बारिश के दिनों में पानी जमीन के अंदर जाए इसके लिए 1000 रिचार्ज वेल बनाए हैं. पुरानी झीलों को साफ करने और नई झीलों को बनाने का काम हो रहा है. तालाब प्राधिकरण बनाया गया है ताकि सूबे के लगभग आठ हजार तालाबों का सदुपयोग हो.
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