हर साल आम आदमी को रूलाने वाला प्याज इस बार किसानों को ही रूलाने में लगा है. लगातार गिरती कीमतों की वजह से किसान खासे परेशान हैं. बाजार में 6-7 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकने वाला प्याज से अब लागत भी नहीं निकल पा रही है, फायदा तो दूर की बात है. पिछले दिनों महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भरत दिघोले ने मांग की है कि सरकार खुले बाजार से प्याज खरीदे और खुले बाजार से खरीद के लिए कई योजनाओं को शुरू करना चाहिए. बड़ा सवाल यही है कि क्या प्याज की खुली खरीद से वाकई हालात बदल जाएंगे.
31 जुलाई को प्याज उत्पादकों की एक मीटिंग को संबोधित करते हुए कहा था कि इससे किसानों को मदद मिलेगी क्योंकि किसान उत्पादक कंपनियां (FPC)जिस तरह से खेत से प्याज खरीदती हैं, वह मौजूदा प्रैक्टिकल नहीं है. दिघोले अकेले नहीं हैं और कई दूसरे किसानों के साथ उनके नेताओं ने भी ऐसी ही मांग की है. अभी जो सिस्टम है उसके तहत किसानों को बेहतर दाम दिलाने और उपभोक्ताओं को प्याज की बढ़ती कीमतों से बचाने के लिए, राष्ट्रीय सहकारी कृषि विपणन संघ (नेफेड) और राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ (एनसीसीएफ) जैसी एजेंसियां केंद्र सरकार की ओर से खरीद करती हैं. एफपीसी यूनियन, नेफेड और एनसीसीएफ दोनों के सब-एजेंट के तौर पर काम करता है. साथ ही अपने सदस्य एफपीसी से प्याज खरीदता है.
किसान व्यक्तिगत तौर पर अपना प्याज खेत पर ही बेचते हैं जिससे उन्हें ट्रांसपोर्टेशन और बाकी लागतों की बचत होती है. हर दिन, नीलामी शुरू होने से पहले, एफपीसी कई व्यापारिक रुझानों को ध्यान में रखते हुए उस दिन के लिए अपनी कीमतें घोषित करती हैं. सिर्फ क्वालिटी स्टैंडर्ड पर खरी उतरने वाली उपज ही खरीदी जाती है. इसका भुगतान सीधे किसानों के खातों में जमा किया जाता है. एफपीसी किसानों से जमीन के दस्तावेज इकट्ठा करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सिर्फ असली उत्पादक ही खेत पर अपनी उपज बेचें. इस सीजन में, केंद्र सरकार की योजना, दोनों एजेंसियों के साथ मिलकर नासिक और महाराष्ट्र के बाकी प्याज उत्पादक जिलों में 3 लाख टन प्याज उत्पादन की है.
तकनीकी तौर पर फार्म गेट खरीद से किसानों को मदद मिलने की उम्मीद है. इससे उन्हें थोक मंडियों तक परिवहन लागत की बचत होती है और उन्हें मंडियों द्वारा लगाए जाने वाले अतिरिक्त शुल्कों और करों पर खर्च नहीं करना पड़ता. केंद्रीय एजेंसियों के लिए, इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसान अपनी उपज बेच पाएं और व्यापारी या एग्रीगेटर जैसे बाकी खिलाड़ी उनकी उपज को चोरी-छिपे न बेच पाएं.
लेकिन दिघोले ने उन मान्यताओं को ही चुनौती दी जिन पर डिसेंट्रलाइज्ड खरीद आधारित है. पिछले कुछ सालों में दिघोले और अन्य नेताओं ने कहा कि एफपीसी व्यवस्था भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई है. उन्होंने आरोप लगाया, 'पिछले सीजन के दौरान, हमने पूरे राज्य में संघों को उगते देखा. इन संघों का प्रबंधन अब राजनीतिक नेताओं के हाथों में है जो इन तरीकों का इस्तेमाल यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि उनके समर्थक सरकारी खरीद पर कब्जा कर सकें.' दिघोले ने कहा कि ये संघ कीमतों में हेराफेरी करते हैं और अधिकारियों की मिलीभगत से, घटिया गुणवत्ता वाले प्याज को दिखाने की कोशिश करते हैं. यहां तक कि ये सिर्फ कागजों पर व्यापार करके पैसा हड़पने की कोशिश करते हैं.
शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत ने भी पिछले सीजन में प्याज की खरीद में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था. घनवत के संगठन ने इस मामले को उठाया था और आरोप लगाया था कि लेन-देन कागजी तौर पर किया गया था. नेफेड और एनसीसीएफ ने पिछले सीजन में प्याज़ की खरीद में भ्रष्टाचार के लिए कई फेडरेशनों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कराई थी. गोवा मार्केटिंग फेडरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी को इस घोटाले में भूमिका के लिए निलंबित कर दिया गया था. वहीं कई फेडरेशनों को काली सूची में डाल दिया गया और खरीद प्रक्रिया में पूरी तरह से बदलाव की घोषणा की गई थी.
महाराष्ट्र के नासिक-पुणे-अहिल्यानगर जिलों के प्याज उत्पादक क्षेत्र के किसानों की खेत से प्याज की खरीद को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है. कुछ किसान चाहते हैं कि सरकारी एजेंसियां खुले बाजारों से प्याज खरीदें. उनकी मानें तो एफपीसी हमेशा बाजार भाव से कम कीमत अदा करते हैं. लेकिन एफपीसी यह कहकर इसे सही ठहराते हैं कि इससे किसानों का ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बच जाता है. किसानों का कहना है कि उनके लिए यह बात समझ पाना मुश्किल है.
किसान नेताओं की मानें तो इस समस्या के समाधान का सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि सरकार प्याज बाजारों में कभी हस्तक्षेप न करे. केंद्र सरकार प्याज की कीमतों पर कड़ी नजर रखती है और निर्यात प्रतिबंध या आयात जैसे तरीकों से कीमतों को नियंत्रित करने की कोशिश करती है. सरकार को बाजारों से पूरी तरह बाहर हो जाना चाहिए. बाजार को मांग-आपूर्ति तंत्र के जरिए अपनी कीमत तय करने में सक्षम होना चाहिए.
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