शहरों में लोग काम पर जाने से पहले अपने नाश्ते में केला या केले का शेक लेते हैं. यह सबसे जल्दी तैयार होने वाला पौष्टिक नाश्ता होता है. इस बात की गवाही आंकड़े भी देते हैं. दुनिया में 51 प्रतिशत केला लोग नाश्ते के रूप में खाते हैं. केला एक ऐसा फल है जो शरीर को काफी एनर्जी देता है, साथ-साथ हैप्पी हार्मोन बढ़ाने में भी मदद करता है. केले का कोई सीजन भी नहीं होता. इसकी मांग बाजारों में पूरे साल रहती है. हर मौसम में आप इसके मजे ले सकते हैं.
वहीं यह काफी सस्ता भी होता है तो इसका सेवन लगभग सभी लोग करते हैं. लेकिन, क्या कभी केले को देखकर आपके दिमाग में यह सवाल आया है कि केला आखिर टेढ़ा ही क्यों होता है? कभी सीधा क्यों नहीं होता? अगर नहीं सोचा तो अब सोच लीजिए और आइए जवाब आपको इस खबर में बताते हैं...
केले के टेढ़े होने के पीछे के बहुत बड़ा साइंटिफिक रीजन है. दरअसल जब केले का फल आना शुरू होता है तो वह एक गुच्छे में आता है. यह एक कली जैसी होती है, जिसमें हर पत्ते के नीचे केले का एक गुच्छा होता है. इसे देसी भाषा में गैल कहा जाता है. उस समय केला नीचे की ओर बढ़ना शुरू करता है. तब वह सीधा होता है. लेकिन एक साइंटिफिक कॉन्सेप्ट है. जिसे Negative Geotropism कहते हैं. जिसके बारे में आपने शायद सुना हो. यह थ्योरी बताती है के कुछ पेड़ ऐसे होते हैं जो सूरज की तरफ बढ़ते हैं (सूरजमुखी भी इसी का उदाहरण है. जिससे केला नीचे की तरफ बढ़ने की बजाए ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है. यही वजह है कि इसका आकार टेढ़ा हो जाता है.
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यदि पौधे के हिस्सों की गति गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव की ओर है तो इसे positive Geotropism (सकारात्मक भू-अनुवर्तन) कहते हैं. वहीं अगर पौधे के हिस्से की गति गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ यानी विपरित दिशा में है तो उसे Negative Geotropism (नकारात्मक भू-अनुवर्तन) कहते हैं.
केले की उत्पत्ति कब और कहां से हुई इसकी सटीक जानकारी किसी को पता नहीं है. हालांकि, ऐसा माना जाता है कि लगभग 4,000 साल पहले मलेशिया के वर्षावनों में केले के पेड़ उगते थे. फिर उसके बाद यह पेड़ पूरी दुनिया में फैल गए. अब यह फल भारत, मलेशिया समेत दुनिया के करीब 150 देशों में पाया जाता है. दुनिया भर के लाखों किसान इसका उत्पादन कर अपनी आजीविका चलाते हैं.
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