
किसी भी मौसम में लोगों को बाजार में सब्जी की ढेरों वैरायटी मिलती हैं. ऐसी ही एक पत्तेदार सब्जी है साग. दरअसल, साग को अधिकतर लोग खाना पसंद करते हैं. ये तो हुई साग खाने की बात, मगर साग उगाने की बात भी काफी अहम है. किसान साग की खेती कर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं, वर्तमान समय में साग की कुछ ऐसी किस्में हैं जिनकी खेती करने पर किसानों को बेहतर उपज के साथ अच्छी कीमत भी मिलेगी. ऐसे में अगर आप भी चौलाई के साग की कुछ ऐसी ही किस्म की तलाश कर रहे हैं, तो आप अरुण रेड की खेती कर सकते हैं. आइए बताते हैं कहां सस्ते में मिलेगी बीज और क्या है इसकी खासियत.
मौजूदा समय में किसान पारंपरिक फसलों को छोड़कर सब्जी वाली फसलों की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं. इसकी को देखते हुए राष्ट्रीय बीज निगम किसानों की सुविधा के लिए ऑनलाइन चौलाई के साग की उन्नत किस्म अरुण रेड किस्म का बीज बेच रहा है. इस बीज को आप ओएनडीसी के ऑनलाइन स्टोर से खरीद सकते हैं. यहां किसानों को कई अन्य प्रकार की फसलों के बीज भी आसानी से मिल जाएंगे. आप इसे घर बैठे ऑनलाइन ऑर्डर करके डिलीवरी करवा सकते हैं.
अरुण रेड किस्म उगाना काफी फायदेमंद है. इसे खाने से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है. साथ ही इसे उगाना भी काफी आसान होता है. इसलिए इसको खेत के अलावा, बागीचा और किचन गार्डन में भी उगाया जा सकता है. साग की अरुण रेड किस्म एक उच्च उपज वाली किस्म है, जिसे केरल कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया है. इस किस्म की खास बात ये है कि इसके गहरे लाल रंग के पत्ते काफी फायदेमंद और आकर्षक होते हैं. यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है, जिसकी औसत उपज लगभग 20 टन प्रति हेक्टेयर है.
अगर आप भी चौलाई के साग की अरुण रेड वैरायटी की खेती करना चाहते हैं या गार्डन में उगाना चाहते हैं तो इसके बीज का 1 पैकेट फिलहाल 37 फीसदी छुट के साथ 25 रुपये में मिल जाएगा. बता दें कि इस बीच को खरीदने के लिए आपको राष्ट्रीय बीज निगम की वेबसाइट पर जाना होगा. इसे खरीद कर आप आसानी से चौलाई के साग की खेती कर सकते हैं.
चौलाई साग की खेती के लिए बीजों को सीधे खेत में छिड़कने या फिर रोपण विधि से बुवाई की जा सकती है. रोपण विधि से खेती करने पर ज़्यादा पैदावार मिलती है. चौलाई की खेती मैदानी क्षेत्रों में सितंबर की शुरुआत में ही करनी चाहिए. वहीं, चौलाई की खेती के लिए जुताई के समय खेत में सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए. चौलाई की खेती में पौधों के बीच में पर्याप्त दूरी रखना जरूरी होता है. साथ ही इसकी खेती में बुवाई के बाद मिट्टी को लगातार नम रखना होता है.
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