भारत में खाद की मांग बढ़ती जा रही है. चालू खरीफ सीजन की बुवाई को देखते हुए इसके कारण आयात में भी उछाल देखा गया है. चालू वित्त वर्ष 2025-26 में अप्रैल से जुलाई के दौरान यूरिया, डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश) खादों के आयात में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 5 फीसदी बढ़ाेतरी दर्ज की गई है. इस तरह इन खादों का आयात बढ़कर 48.5 लाख टन तक पहुंच गया.
खासतौर पर सरकार ने जुलाई में सप्लाई दुरुस्त करने के लिए आयात की रफ्तार और तेज कर दी, क्योंकि कई इलाकों में यूरिया और डीएपी की कमी की शिकायतें देखने में आई थीं. 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, एक्सपर्ट्स का कहना है कि आने वाले दिनों में भारत का खाद आयात और बढ़ सकता है, क्योंकि पड़ोसी चीन ने खाद निर्यात पर लगाए प्रतिबंधाें में ढील दी है.
अगर अलग-अलग खादों पर नज़र डालें तो अप्रैल-जुलाई की अवधि में डीएपी का आयात 35%, यूरिया का 22% और एनपीके का 22% बढ़ा है. वहीं इनके उलट म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात 67 फीसदी घटकर सिर्फ 3.5 लाख टन रह गया है.
मालूम हो कि इसी वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में कुल खाद आयात 16.29% गिर गया था, जिसके पीछे वैश्विक भू-राजनीतिक संकट जैसे- इजरायल-ईरान तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध थे, जिनके कारण सप्लाई बाधित हुई थी. वहीं, चीन की ओर से निर्यात प्रतिबंध ने भी भारत की आयात स्थिति को कमजोर कर रखा था.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सालाना करीब 600 लाख टन खादों का उपभोग करता है, जिसमें से लगभग 100 लाख टन आयात किए जाते हैं. देश यूरिया खपत 350 लाख टन है, जिसमें 87 फीसदी घरेलू स्तर पर बनता है. इसके बावजूद डीएपी का करीब 60 प्रतिशत आयात पर निर्भर है और इसकी घरेलू उत्पादन क्षमता भी विदेशी कच्चे माल ‘रॉक फॉस्फेट’ पर टिकी है, जो मुख्यत: सेनेगल, जॉर्डन, दक्षिण अफ्रीका और मोरक्को से आता है.
वहीं, पोटाश की स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि देश पूरी तरह आयात पर निर्भर है. भारत ने रूस, इजरायल, बेलारूस और जॉर्डन से सालाना करीब 20 लाख टन की लंबी अवधि की आपूर्ति संधियां कर रखी हैं. केंद्र सरकार ने मौजूदा हालात को देखते हुए आयात को गति देने का फैसला किया है. नेशनल फर्टिलाइजर्स और इंडियन पोटाश जैसी एजेंसियों ने 20-20 लाख टन यूरिया के आयात के लिए टेंडर जारी किए हैं.
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