उत्तर प्रदेश सरकार ने बासमती धान की गुणवत्ता और इसके निर्यात को बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. प्रदेश के 30 जिलों में 11 तरह के कीटनाशकों की बिक्री और इस्तेमाल पर 1 अगस्त से 60 दिनों के लिए पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. यह फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि बासमती की कटाई से करीब एक महीने पहले किसी भी रासायनिक कीटनाशक का उपयोग चावल की गुणवत्ता को खराब कर सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्राईसाइक्लाजोल, ब्यूप्रोफेजिन, एसीफेट, क्लोरोपाइरीफास, टेबुकोनोजोल, प्रोपिकोनाजोल, थायोमेथाक्साम, प्रोफेनोफास, इमिडाक्लोप्रिड, कार्बेंडजिम और कार्बोफ्यूरान नामक 11 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है. यह प्रतिबंध राज्य के उन 30 जीआई (GI) टैग प्राप्त बासमती उत्पादक जिलों में लागू है, जिनमें हाथरस, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, रामपुर और बरेली जैसे प्रमुख जिले शामिल हैं. कृषि विभाग ने सभी कीटनाशक विक्रेताओं को साफ चेतावनी दी है कि अगर कोई भी इन प्रतिबंधित कीटनाशकों को बेचता हुआ पाया गया, तो उसके खिलाफ कीटनाशी अधिनियम 1968 के तहत कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
यह फैसला बासमती चावल की शुद्धता और विदेशों में भारत की साख बचाने के लिए लिया गया है. भारत दुनिया में बासमती का सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन कई देश जैसे यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देश, कीटनाशकों के अवशेष को लेकर बहुत सख्त हैं. जब चावल में इन प्रतिबंधित कीटनाशकों के अवशेषउनकी तय सीमा (MRL) से ज्यादा पाए जाते हैं, तो वे पूरी खेप को रिजेक्ट कर देते हैं. इससे देश को भारी आर्थिक नुकसान होता है और भारतीय बासमती की छवि भी खराब होती है. साथ ही, ये रसायन इंसानों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं. कई देश जैसे कि यूरोप, अमेरिका, जापान और खाड़ी देश, भारत से जाने वाले चावल की बहुत सख्ती से जांच करते हैं. ये कीटनाशक फसल के साथ-साथ इंसानों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक हैं
विशेषज्ञों के अनुसार, बासमती धान की फसल में झोंका रोग (Blast Disease) और जीवाणु झुलसा (Bacterial Leaf Blight) जैसी कई बीमारियां और कीट लगते हैं. इनसे अपनी फसल को बचाने के लिए किसान मजबूरी में कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अगर गलत समय पर या गलत मात्रा में इनका उपयोग हो, तो चावल में इनके अवशेष रह जाते हैं और एक्सपोर्ट में खेप फेल हो जाती है. बासमती चावल में कीटनाशकों के अवशेष का सबसे कड़ा मानक यूरोपीय संघ में है. यहां कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) 0.01 PPM 0.01 मिलीग्राम/किग्रा अवशेष की अनुमति है. अमेरिकामें यह सीमा 0.3 PPM है. जापान में यह सीमा 0.8 PPM है. इसी वजह से बासमती की खेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल बहुत सावधानी से करना पड़ता है. यह प्रतिबंध यूपी के उन 30 जिलों में लागू है जिन्हें बासमती के लिए जीआई (GI) टैग मिला है.
भारत पिछले एक दशक से दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसमें बासमती चावल का एक विशेष स्थान है. बासमती, जो अपने लंबे दाने, अनूठी सुगंध और बेहतरीन स्वाद के लिए प्रसिद्ध है, भारतीय उपमहाद्वीप के एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में उगाया जाता है और इसे भौगोलिक उपदर्शन (GI) टैग भी प्राप्त है. इस जीआई क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत सात राज्य शामिल हैं. इसलिए, बासमती की साख और निर्यात को बचाने के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे केवल कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा सुझाए गए कीटनाशकों का ही प्रयोग करें. इसके साथ ही, कीटनाशक की सही मात्रा का उपयोग करें और दवा छिड़कने और फसल की कटाई के बीच सही समय का अंतराल (PHI) जरूर रखें, जैसा कि उत्पाद के लेबल पर बताया गया है.
ये भी पढ़ें-
नकली बीज और कीटनाशक बेचने वालों पर सरकार का बड़ा प्रहार, अब मोबाइल ऐप करेगा पर्दाफाश
MCX के साथ जुड़ेंगे किसान समूह, वायदा व्यापार से बढ़ेगी आमदनी
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today