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PMFBY: मुआवजे के ल‍िए 6 साल किया संघर्ष, अदालती जीत के बाद भी 70 वर्षीय क‍िसान की जारी है लड़ाई  

PMFBY: मुआवजे के ल‍िए 6 साल किया संघर्ष, अदालती जीत के बाद भी 70 वर्षीय क‍िसान की जारी है लड़ाई  

किसान सूरजमल नैन ने साल 2017 जुलाई में खरीफ की फसल कपास लगाई थी. भारी बारिश के चलते फसल पूरी तरह से खराब हो गई. किसान की लागत भी जाती रही. फसल का बीमा होने के बावजूद बीमा कंपनी और विभाग ने बीमा देने से मना कर दिया. छह साल की लड़ाई के बाद अब कोर्ट ने बीमा की रकम देने के आदेश दिए हैं. तीन एकड़ जमीन पर फसल खराब हो गई थी. जबकि बीमा आठ एकड़ जमीन का हुआ था.

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अदालती आदेश के बाद बीमा मुआवजे के ल‍िए भटक रहे सूरजमल नैन- फोटो क‍िसान तक अदालती आदेश के बाद बीमा मुआवजे के ल‍िए भटक रहे सूरजमल नैन- फोटो क‍िसान तक

बीमाधड़ी: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना देश के कई क‍िसानों के ल‍िए राहत बनी हुई है, लेक‍िन दूसरी तरफ कई क‍िसान ऐसे हैं, जो बीमा कंपन‍ियों के मकड़जाल में फंस कर ठगी यानी बीमाधड़ी के श‍िकार हो रहे हैं. क‍िसान तक की बीमाधड़ी सीरीज के दूसरी कड़ी में ऐसे ही क‍िसान सूरजमल नैन की कहानी...जो फसल बीमा कंपन‍ियों से ठगी के शि‍कार हुए क‍िसानों के चेहरा बन कर उभरे हैं, लेक‍िन उनकी ये लड़ाई अभी अधूरी है, ज‍िसके पटापेक्ष के ल‍िए उन्हें अभी और संघर्ष करने की जरूरत है. उनकी इस कहानी में 70 वर्षीय सूरज मल खुद मुख्य भूम‍िका में हैं. तो वहीं बीमा कंपन‍ियों के ख‍िलाफ 6 साल की लड़ाई और अदालती जीत और उसके बाद भी मुआवजे के ल‍िए उनका इंतजार इस पूरी स्टोरी का लेटेस्ट अपडेट है. क‍िसान तक की स्पेशल सीरीज बीमाधड़ी की इस कड़ी में फसल बीमा कंपन‍ियों से बीमाधड़ी के श‍िकार हुए क‍िसानों का चेहरा बने 70 वर्षीय क‍िसान सूरजमल की कहानी...

बीमा की रकम पाने को छह साल से लगातार लड़ाई जारी रखे हुए पीड़ित किसान सूरजमल नैन जींद, हरियाणा के रहने वाले हैं. सूरजमल का खेत के बीच में एक बड़ा लेकिन साधारण सा मकान बना हुआ है. हफ्ते में कम से कम तीन दिन सूरजमल अपना झोला उठाकर गांव से शहर करीब 30 किमी दूर जाते हैं. पहले सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते हैं तो फिर कोर्ट में तारीख करते हैं. आज भी बीमा से जुड़े एक-एक कागज के लिए उन्हें महीनों आरटीआई से जुड़ी प्रक्रिया से जूझना पड़ता है. 

कपास की फसल पूरी खराब हुई, बीमा के बाद भी नहीं म‍िला मुआवजा 

किसान सूरजमल नैन का कहना है, साल 2017 जुलाई में खरीफ की फसल कपास लगाई थी. तीन एकड़ एरिया में कपास लगाई गई थी. इसी दौरान बैंक के स्टेटमेंट से पता चला क‍ि उनकी फसल का बीमा हो चुका है. उनकी आठ एकड़ जमीन पर लगी फसल का बीमा कर लिया गया था. लेकिन हैरत की बात यह है क‍ि फसल का बीमा करने से पहले मेरी रजामंदी तक नहीं ली गई. बिना बताए बैंक खाते से रुपये काटकर फसल का बीमा कर दिया, लेकिन फसल का बीमा कर लिया है. इसका कोई सबूत वगैरह, मतलब कागज-पत्री भी नहीं दि‍या गया, लेकिन इसी दौरान बारिश के चलते कपास की फसल पूरी तरह से चौपट हो गई है.

बीमा कंपनी बजाज एलायंज कंपनी ने कृष‍ि विभाग के साथ मिलकर खराब फसल का सर्वे भी किया. सर्वे में माना कि तीन एकड़ में कपास की 100 फीसद फसल खराब हो चुकी है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि इसके बाद भी बीमा कंपनी खराब फसल का मुआवजा नहीं दे रही है. 

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क‍िसान ने आरटीआई से जुटाएं दस्तावेज   

सूरजमल ने आरोप लगाते हुए किसान तक को बताया कि जब बारिश के चलते फसल खराब हुई तो कंपनी ने बीमा की रकम देने से ही इंकार कर दिया. अब इसे अंधेरगर्दी या दंबगई चाहें जो कह लो, वो इसलिए कि बीमा कंपनी और कृषि विभाग ने खुद ही माना था कि फसल 100 फीसद खराब हुई है, अब खुद ही बीमा देने से इंकार कर रहे हैं. लेकिन सर्वे रिपोर्ट से संबंध‍ित एक भी कागज मेरे पास नहीं था. मैं कंपनी की कही गई बात को ही कंपनी के सामने साबित नहीं कर पा रहा था. फ‍िर मैंने आरटीआई का सहारा लिया. सबसे पहले मैंने बीमा कंपनी और कृष‍ि विभाग की सर्वे रिपोर्ट आरटीआई में हासिल की. हालांकि इसे हासिल करने में ही मुझे करीब एक साल का वक्त लग गया. 

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अदालत में दी बीमा कंपनी को चुनौती 

सूरजमल का कहना है क‍ि मैं पूरे तीन साल तक कृष‍ि विभाग समेत जींद प्रशासन के दफ्तरों के चक्कर काटता रहा, लेकिन कहीं से भी मुझे राहत नहीं मिली. हर बार अध‍िकारी दफ्तरों में बुलाकर घंटों इंतजार कराते और फिर मीटिंग की बात कहकर चले जाते. लेकिन मैं भी जुनून का पक्का था. हर रोज अपनी फरियाद लेकर अफसरों के पास पहुंच ही जाता था. इसका फायदा यह हुआ कि इस दौरान सीखने को बहुत कुछ मिला. जब मुझे समस्या का कोई समाधान निकलता नहीं दिखा तो फिर मैंने कंज्यूमर कोर्ट में अर्जी लगा दी. लेकिन कोर्ट जाने से पहले सभी तरह के दस्तावेज भी जुटाए, जिसमे अच्छा खासा वक्त लग गया. 

6 साल की लड़ाई के बाद अदालत ने पक्ष में सुनाफा फैसला 

सूरजमल का कहना है कि शुरुआती एक-डेढ़ साल में उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि फसल का बीमा आसानी से नहीं मिलेगा. इसलिए कंज्यूमर कोर्ट जाने का फैसला किया. लेकिन उन्होंने दूसरों से सुन रखा था कि कोर्ट जाने के लिए कागजों की जरूरत होती है. कोर्ट कागजों से ही बात को सुनती और समझती है. इसलिए आरटीआई की मदद से जितने भी कागज जुटाए थे सबके साथ कोर्ट की पैरवी में लग गया. पहले से की गई तैयारी का नतीजा यह हुआ कि किसी भी एक तारीख पर मेरा केस कमजोर पड़ता हुआ नहीं दिखा. यही वजह है कि तीन साल बाद ही सही, कोर्ट ने मेरे हक में फैसला सुनाया. 2020 से मार्च 2023 तक केस चला और कोर्ट ने मेरे हक में फैसला लिखते हुए कहा बीमा कंपनी को आदेश दिया कि 13 अप्रैल तक मुझे बीमा की रकम मय नौ फीसद ब्याज के साथ दे.  

अदालती आदेश के बाद भी कंपनी ने नहीं द‍िया मुआवजा 

सूरजमल का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा करने वाली कंपनी मान चुकी है कि 100 फीसद फसल बारिश में खराब हो चुकी है. बावजूद इसके कंपनी मुआवजा देने को तैयार नहीं है. तीन साल की सुनवाई के बाद एक महीने पहले कंज्यूमर कोर्ट भी आदेश दे चुका है कि किसान को मुआवजा दो, बावजूद इसके मुआवजा नहीं दिया गया है. इन्हें ना सरकार का है और ना ही कोर्ट का. क्योंकि सवा महीने पहले ही कंज्यूमर कोर्ट ने बीमा की रकम देने का आदेश दिया है, लेकिन कंपनी पर इसका भी कोई असर नहीं पड़ा है. अभी तक कंपनी ने बीमा की रकम नहीं दी है.

अब क्या है 80 वर्षीय सूरजमल की तैयारी 

बीते छह साल से सरकारी दफ्तरों और कोर्ट के चककर लगाने वाले किसान सूरजमल का सिलिसला एक महीने के लिए रुक गया था. वो भी तब जब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बीमा कंपनी को आदेश दिया था कि वो किसान को एक महीने में उसका मुआवजा दे. लेकिन एक बार फिर 15 अप्रैल से किसान का रुका हुआ सिलसिला शुरू हो गया है. क्योंकि जींद, हरियाणा के इस किसान की लड़ाई अभी अपने अंजाम तक नहीं पहुंची है. कोर्ट का फैसला आने के बाद भी बीमा कंपनी ने पीडि़त किसान को उसका मुआवजा नहीं दिया है. सूरजमल ने बताया क‍ि एक बार फिर वो अदालती कार्रवाई में जुट गए हैं. उनकी जानकारी में आया है क‍ि कंपनी अपील में जा रही है. जिसके लिए उन्होंने कागजी तैयारी शुरू कर दी है. 70 साल से ज्यादा की मेरी उम्र हो चुकी है. लेकिन खराब हुई कपास की फसल का बीमा लिए बिना मैं मानूंगा नहीं. चाहें इसके लिए मुझे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी क्यों न जाना पड़े. 

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