PMFBY: बीमा कंपनी ने बिना पूछे प्रीमियम काटा, रकबा कम किया, फसल भी बदल दी

PMFBY: बीमा कंपनी ने बिना पूछे प्रीमियम काटा, रकबा कम किया, फसल भी बदल दी

बीमाधड़ी सीरीज के इस पार्ट में समझिए कि आखिर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कहां समस्या है. बीमा कंपनियां अपनी मर्जी से काम करती हैं. एक किसान का अपने आप प्रीमियम काटा. रकबा घटाया और फिर फसल भी बदल दी. पढ़िए ये रिपोर्ट.

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PMFBY: बीमा कंपनी ने बिना पूछे प्रीमियम काटा, रकबा कम किया, फसल भी बदल दीप्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों के साथ हो रही धोखाधड़ी. फोटो- Kisan Tak

बीमाधड़ीः प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क‍िसानों को प्राकृत‍िक आपदा में मुआवजा देने के ल‍िए बनी हैं, लेक‍िन फसल बीमा कंपन‍ियों का मकड़जाल किसानों की मुश्कि‍लें बढ़ा रहा है. ऐसे में सवाल यहीं है कि आखिर प्रधानमंत्री फसल योजना के सिस्टम में आखिर चूक कहां है और इससे किसान किस तरह ठगे जा रहे हैं.दरअसल, इस पूरी योजना में बीमा कंपनियों की तरफ से एकतरफा संवाद, किसानों में जानकारी का अभाव और तकनीकी कारणों का फायदा उठाकर बीमा कंपनियां मुनाफा बटोर रही हैं. किसान तक की सीरीज बीमाधड़ी में की इस कड़ी में पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट. 

फसल बीमा में कम कर दी जमीन

किसान गोपीलाल चौधरी राजस्थान में टोंक जिले के डोडवाड़ी गांव के रहने वाले हैं. वे बीमा कंपनियों की धोखाधड़ी के शिकार हुए सबसे बेहतरीन उदाहरणों में से एक हैं. रबी 2022 में उनका करीब 2607 रुपये अपने आप प्रीमियम काटा गया, जबकि खरीफ 2022 में उन्होंने बैंक में बीमा नहीं करने की अर्जी दी थी. इतना ही नहीं बीमा पॉलिसी में उनकी खेती के रकबा कम कर दिया और फसल तक बदल दी गई. बीमा पॉलिसी के अनुसार गोपीलाल का खसरा नंबर 312 करीब 2 बीघा एक विस्वा का है. जबकि हकीकत में ये रकबा आठ बीघा और चार विस्वा का है. गोपीलाल ने इस साल रबी में इस रकबे में सरसों बोई थी, लेकिन कंपनी ने पॉलिसी में चना लिखा है. 

गेहूं बोया था चने का बीमा क‍िया   

किसान गोपीलाल चौधरी बताते हैं क‍ि इसी तरह 763 नंबर खसरा करीब 15 विस्वा है. पॉलिसी में कंपनी ने पांच विस्वा में चना की फसल का बीमा किया है, जबकि गोपीलाल ने इसमें गेहूं बोया हुआ था. बीमा कंपनियों की बीमाधड़ी का ये अकेला केस नहीं हैं. पूरे देश में इस तरह के केस हैं. 

30 बीघा खेती के मालिक गोपीलाल बेहद दुखी हैं. उन्हें पीड़ा है कि जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भारत सरकार ने किसानों के फायदे के लिए और आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए बनाई, उसका फायदा किसानों की बजाय बीमा कंपनियां अधिक उठा रही हैं. वे बीमा कंपनियों की ओर से होने वाले एकतरफा संवाद को सबसे बड़ी परेशानी बताते हैं. कहते हैं, क‍ि रबी 2022 के लिए एचडीएफसी एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने खुद ही प्रीमियम काट लिया. यहां तक कि मेरा खसरा नंबर और फसल भी बदल दी. फसल बीमा कंपनियां अपने फायदे के लिए किसानों को अंधेरे में रखती हैं.”

PMFBY में किसान गोपीलाल को मिली बीमा पॉलिसी. पेन से अंडरलाइन किया कम रकबा और फसल बदल दी.

बिना बताए काटा जाता है प्रीमियम

गोपीलाल एक और उदाहरण देकर बताते हैं क‍ि मैंने खरीफ 2022 में बैंक में यह लिखकर दिया कि मुझे इस सीजन में फसलों का बीमा नहीं करवाना है. क्योंकि मुझे पहले के सालों में फसलों के नुकसान के बाद भी बीमा की राशि नहीं मिली. मेरे लिखकर देने पर बैंक ने बीमा नहीं किया, लेकिन रबी सीजन 2022 में बिना मेरी अनुमति के ही बैंक ने बीमा के लिए प्रीमियम काट लिया.

गोपीलाल सवाल उठाते हुए कहते हैं क‍ि जब मैंने एक बार बीमा नहीं कराने के लिए एप्लीकेशन दे दी तो फिर अगली बार कंपनी या बैंक को मुझसे पूछकर ही तो बीमा करना चाहिए, लेकिन संवाद में किसानों की भूमिका नहीं होने के कारण इसी तरह लाखों किसानों से बिना उनकी सहमति के ही बैंक अपने आप प्रीमियम काट लेते हैं.

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किसान गोपीलाल की इस बात की तस्दीक आंकड़ें भी करते हैं. पिछले छह साल में देशभर में बीमा कंपनियों ने 40 हजार करोड़ रुपये की कमाई की है. 2016 में योजना शुरू होने से 2021-22 तक विभिन्न बीमा कंपनियों को 1,70,127 करोड़ रुपये प्रीमियम के तौर पर मिले हैं.

इतने ही समय में किसानों को 1,30,015 करोड़ रुपये क्लेम के रूप में मिले हैं. बता दें कि पीएम फसल बीमा योजना में किसानों से रबी की फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत, खरीफ के लिए दो और व्यावसायिक एवं बागवानी फसलों के लिए पांच प्रतिशत प्रीमियम लिया जाता है. बची हुई राशि प्रीमियम के रूप में केंद्र और राज्य सरकारें बराबर-बराबर देती हैं. पिछले छह साल में केन्द्र और राज्य सरकारों ने 1,44,875.8 करोड़ रुपये की प्रीमियम सब्सिडी दी है. 

टोंक में बीमा कंपनी 2022 के लिए एचडीएफसी एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के एजेंट अजय पांडे से प्रतिक्रिया लेने के लिए हमने दो बार उन्हें फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. वहीं, टोंक में कृषि विभाग के अधिकारी सुगर सिंह मीणा ने कहा कि राज्य के अधिकारियों के हाथ में इस योजना में कुछ भी नहीं है. अगर किसानों को बीमा नहीं मिल रहा तो आप बीमा कंपनी वालों से बात कीजिए.  

किसान गोपीलाल चौधरी

बीमा करते वक्त खेत यूनिट, क्लेम पूरे गांव में हुए नुकसान पर

राजस्थान के बाड़मेर जिले में गुड़ामालानी तहसील के किसानों ने पीएम फसल बीमा योजना के क्लेम के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी है. यह वही जिला है जहां से केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी आते हैं. इस क्षेत्र के किसानों ने खरीफ 2021 के करीब 600 करोड़ रुपये के क्लेम लंबी लड़ाई के बाद हासिल किए हैं. फिलहाल अधिकतर किसानों के खाते में यह राशि पहुंच गई है.

एग्रीकल्चर इंश्योंरेंस कंपनी यहां दावों के विपरीत सिर्फ 25 प्रतिशत क्लेम ही देना चाहती थी. कृषि मंत्रालय और बीमा कंपनी के बीच लंबे समय तक मामला चला. लेकिन बाद में मंत्रालय ने बीमा कंपनी को जल्द भुगतान करने के आदेश दिए. 2021 खरीफ में यहां भीषण अकाल के कारण फसलें नष्ट हो गई थीं. 
इस पूरे केस में क्लेम बंटवारे के यूनिट आकलन की समस्या थी. दरअसल, बीमा करते वक्त कंपनियां एक-एक किसान और रकबा के हिसाब से बीमा करती हैं, लेकिन जब क्लेम देने की बारी आती है तो कंपनी गांव को यूनिट मानती है. मतलब पूरे गांव में नुकसान कितना हुआ. क्लेम इस आधार पर दिया जाता है. 

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गुड़ामालानी तहसील के मीठी बेरी गांव के इशाक़ खान इस नियम के पीड़ित किसान हैं. इस रबी सीजन में उनकी अरंडी की फसल पाले से पूरी नष्ट हो गई, लेकिन आधे गांव की अरंडी की फसल में नुकसान कम हुआ. बीमा कंपनी ने जहां नुकसान कम हुआ, उसी का सर्वे किया. इशाक कहते हैं क‍ि नुकसान के दायरे में वही खेत लिए गए जहां नुकसान कम हुआ था. इससे मुझे काफी घाटा हो गया. क्योंकि अरंडी की फसल लगभर 10 महीने में तैयार होती है. इसीलिए मैं ना तो खरीफ और ना ही रबी की कोई दूसरी उपज ले पाया.

गुड़ामालानी में भारतीय किसान संघ के जोधपुर प्रांत के प्रमुख प्रहलाद सियोल किसान तक से कहते हैं क‍ि ये योजना एक अच्छी मंशा के साथ शुरू हुई है, लेकिन इसकी पालना में बहुत खामियां हैं. जल्द ही सरकार को कुछ कड़े कदम उठाने होंगे. नहीं तो किसान इसी तरह लुटते रहेंगे.

योजना एक, समस्याएं अनेक

राष्ट्रीय किसान पंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट से भी किसान तक ने इस संबंध में बात की. वे कहते हैं क‍ि किसानों के पास बीमा एजेंटों के मोबाइल नंबर तक नहीं होते. टोल फ्री नंबर भी बंद ही रहते हैं. इसीलिए बीमा कंपनियां एक तरफा संवाद करती हैं. योजना में राज्य सरकार नोडल एजेंसी है, लेकिन उसके पास शक्तियां नहीं हैं.

इसके अलावा हम 33 प्रतिशत खराबे की शर्त, पटवारी की जगह कृषि विशेषज्ञ से खराबे का आकलन कराने, जिले के साथ-साथ तहसील स्तर पर फसल बीमा कंपनी के दफ्तर खोलने की मांग कर रहे है. हम किसानों की सबसे बड़ी मांग तो यही है कि बीमा कंपनियों की बजाय खुद सरकार ही इसे चलाए ताकि फसल खराब होने की स्थिति में जिम्मेदारी भी तय हो सके.”

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