दही, लस्सी , पनीर, मावा, आइसक्रीम के साथ ही घरों और होटलों में चाय के लिए दूध की जरूरत. गर्मियों के मौसम में दही, लस्सी और आइसक्रीम की डिमांड से हम सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं. लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि जब गर्मियों के मौसम में गाय-भैंस दूध देना कम कर देते हैं. हरा चारा जरूरत के मुताबिक होता नहीं है. फिर भी डेयरी संचालक बढ़ी हुई डिमांड को पूरी कर देते हैं तो कैसे? किसान तक ने इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए बात की है वीटा डेयरी, हरियाणा जीएम, प्रोडक्शन से.
जानकारों की मानें तो 25-30 हजार लीटर और उससे ज्यादा का दूध कारोबार करने वाली कंपनियां हमेशा इमरजेंसी सिस्टम पर भी काम करती हैं. इस सिस्टम के तहत दूध की खपत भी हो जाती है और इमरजेंसी के लिए स्टॉक भी तैयार हो जाता है. दूध डेयरी जितनी बड़ी होगी उसका इमरजेंसी स्टॉक उतना ही ज्यादा होगा.
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वीटा डेयरी, हरियाणा के जीएम, प्रोडक्शन चरन जीत सिंह ने किसान तक को बताया कि इमरजेंसी सिस्टम हर डेयरी में काम करता है. इस सिस्टम के तहत डेयरी में डिमांड से ज्यादा आने वाले दूध को जमा किया जाता है. जमा किए गए दूध का मक्खन और मिल्क पाउडर बनाया जाता है. डेयरियों में स्टोरेज क्वालिटी और कैपेसिटी अच्छी होने के चलते मक्खन और मिल्क पाउडर 18 महीने तक चल जाता है. अब तो इतने अच्छे-अच्छे चिलर प्लांट आ रहे हैं कि मक्खन पर एक मक्खी बराबर भी दाग नहीं आता है.
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चरन जीत सिंह बताते हैं कि जब बाजार में दूध की डिमांड ज्यादा हो जाती है या किसान-पशु पालकों की ओर से दूध कम आने लगता है तो ऐसे वक्त में इमरजेंसी सिस्टम से शहरों को दूध की सप्लाई दी जाती है. जैसे गर्मियों में अक्सर होता है कि पशु दूध कम देते हैं, लेकिन डिमांड बराबर बनी रहती है. इस डिमांड को भी इमरजेंसी सिस्टम से ही पूरा किया जाता है.
चरन जीत सिंह का कहना है जब भी ज्यादा दूध की जरूरत पड़ती है तो इमरजेंसी सिस्टम में से मक्खन और मिल्क पाउडर लेकर उन्हें मिला दिया जाता है. यह मिक्चर पहले की तरह से ही दूध बन जाता है. जब बड़े-बड़े आंदोलन के दौरान या फिर शहरों में कर्फ्यू लगा होने के चलते दूध की सप्लाई नहीं हो पाती है तो ऐसे में दूध को जमा कर इमरजेंसी सिस्टम में मक्खन और मिल्क पाउर बना लिया जाता है. और कई बार ऐसा भी होता है कि ऐसे हालात में हमारे पास तक दूध ही नहीं पहुंचता है तो हम इमरजेंसी सिस्टम से शहरों को दूध की सप्लाई करते हैं.
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