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World Bee Day: यूं ही नहीं पृथ्वी पर जीवन के लिए सबसे जरूरी हैं मधुमक्ख‍ियां  

World Bee Day: यूं ही नहीं पृथ्वी पर जीवन के लिए सबसे जरूरी हैं मधुमक्ख‍ियां  

पर्यावरणव‍िद् और 'बर्ड्स आई व्यू' नामक क‍िताब के लेखक एन. श‍िवकुमार ने कहा क‍ि ज‍िन मधुमक्ख‍ियों के ब‍िना कृष‍ि क्षेत्र की कल्पना नहीं की जा सकती वही कृष‍ि क्षेत्र इन मधुमक्ख‍ियों के ल‍िए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने उनका जीवन संकट में डाल द‍िया है.  

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क्या मधुमक्ख‍ियों के ल‍िए खतरा बन रहा कृष‍ि क्षेत्र (Photo-Ministry of Agriculture). क्या मधुमक्ख‍ियों के ल‍िए खतरा बन रहा कृष‍ि क्षेत्र (Photo-Ministry of Agriculture).

ब्रिटेन की रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी ने मधुमक्ख‍ियों को यूं ही नहीं पृथ्वी पर जीवन के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण घोषित किया हुआ है. दरअसल, हम लोग जो भी अनाज, फल और सब्जियां खाते हैं उन्हें उगाने के लिए महज मिट्टी, पानी और धूप ही जरूरी नहीं हैं, बल्कि इसमें कीट-पतंगों की भी जरूरत पड़ती है. इस मामले में मधुमक्खि‍यों का स्थान बहुत ऊंचा है. मधुमक्खियों के ज‍िम्मे पृथ्वी पर सबसे कठिन काम है. वो पराग को एक फूल से दूसरे फूल तक ले जाकर उत्पादन में अपनी भूमिका निभाती हैं. इनके इसी महत्व को रेखांक‍ित करने के ल‍िए साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस घोषित किया था. दुन‍िया भर में मधुमक्खियों की 20,000 से अधिक प्रजातियां हैं. ज‍िनके ब‍िना खासतौर पर कृष‍ि क्षेत्र की कल्पना नहीं की जा सकती. 
 
'क‍िसान तक' से बातचीत में पर्यावरणव‍िद् और 'बर्ड्स आई व्यू' नामक क‍िताब के लेखक एन. श‍िवकुमार ने कहा क‍ि ज‍िन मधुमक्ख‍ियों के ब‍िना कृष‍ि क्षेत्र अधूरा है वही कृष‍ि क्षेत्र इन मधुमक्ख‍ियों के ल‍िए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. खेती-क‍िसानी में कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने उनका जीवन संकट में डाल द‍िया है. लेक‍िन ध्यान रखना होगा क‍ि मधुमक्खियां व‍िलुप्त हुईं तो मानव जाति के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. मधुमक्ख‍ियों की कमी की वजह से कई देशों में सेब की पैदावार कम हो रही है.  

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मधुमक्खि‍यों के ल‍िए कीटनाशक बैन

यूरोपीय संघ के देश स्लोवेनिया के प्रस्ताव पर ही विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है. इसने 2011 में ही मधुमक्खियों के लिए खतरनाक कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा द‍िया था. लेक‍िन, भारत सह‍ित कई देशों में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है. यही नहीं पेड़ों के कटने से उनका आश‍ियाना छ‍िन रहा है. पुराने पेड़ों को बचाना बहुत जरूरी है. इनके ल‍िए 40 ड‍िग्री से अध‍िक तापमान भी इनके ल‍िए खतरनाक है. कई ऐसी र‍िपोर्ट हैं ज‍िनमें पता चलता है क‍ि मधुमक्खी और अन्य परागणकों की आबादी कम हो रही है. यह बहुत ही खतरनाक बात है. 

क्या मानता है कृष‍ि मंत्रालय 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय ने खुद भी कहा है क‍ि मानव उपयोग के लिए फलों और बीजों का उत्पादन करने वाली दुनिया की लगभग 75 प्रतिशत फसलें परागणकों पर कम से कम आंशिक रूप से निर्भर करती हैं. हमारी खाद्य सुरक्षा, पोषण और हमारे पर्यावरण का स्वास्थ्य मधुमक्खियों और परागणकों पर निर्भर करता है. कई क्षेत्रों में मधुमक्खियां और कई अन्य कीट बहुतायत और विविधता में घट रहे हैं. जबक‍ि, खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक कई पौधों से प्राप्त दवाएं, भोजन के रूप में मानव उपयोग के लिए फल या बीज पैदा करने वाली दुनिया भर में चार में से तीन फसलें, कम से कम आंशिक रूप से, परागणकों पर निर्भर करती हैं. 

आजीव‍िका का साधन

पर्यावरण और परागण से अलग हटकर भी देखें तो मधुमक्खियां बहुत सारे लोगों खासतौर पर छोटे क‍िसानों की आजीव‍िका का साधन भी हैं. केंद्र सरकार अक्सर मीठी क्रांति का जिक्र कर रही है. इसकी चर्चा अनायास ही नहीं हो रही. भारत ने विश्व के पांच सबसे बड़े शहद उत्पादक देशों में अपनी जगह पक्की कर ली है. किसानों की आय इसके प्रोडक्शन से बढ़ सकती है. इसल‍िए इसका व‍िस्तार करने की कोश‍िश जारी है. ताक‍ि क‍िसानों के जीवन में मिठास घुले.

भारत से इसका काफी एक्सपोर्ट भी हो रहा है. पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाकों का आर्गेनिक शहद तो पूरी दुनिया में पसंद किया जा रहा है. गुजरात का बनासकांठा भी शहद उत्पादन का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है. हरियाणा के यमुना नगर में भी किसान मधुमक्खी पालन से सालाना कई सौ-टन शहद पैदा कर रहे हैं.  

क‍ितना है शहद उत्पादन

फार्मा सेक्टर और फूड इंडस्ट्री में लगातार इसकी मांग बढ़ रही है. कृषि विशेषज्ञों के मुताब‍िक महज 30,000 रुपये में मधुमक्खी पालन का काम शुरू हो सकता है. इसके प्रत‍ि क‍िसानों की बढ़ती द‍िलचस्पी का सबूत यह है क‍ि बहुत तेजी से शहद उत्पादन बढ़ रहा है. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013-14 में भारत 74,150 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन करता था जो 2021-22 में 1 लाख 33 हजार 200 मीट्रिक टन हो गया है. 

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