आज से कई दशक पहले से सिसल के पत्तों का इस्तेमाल कई चीजों के लिए किया जा रहा है, जिसमें कागज, सुतली और कपड़ा बनाना शामिल है. हाल ही में, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस पौधे से एक बेहद उपयोगी चीज तैयार की है, जिसे महिलाएं पीरियड्स में पैड की जगह इस्तेमाल कर सकते हैं. यह शोध पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ सैनिटरी नैपकिन का निर्माण करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
सिसल के पत्तों में पानी को जमा करने और सूखे क्षेत्रों में पनपने की क्षमता होती है. स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं ने पाया कि सिसल से बने फ़्लफ़ पल्प की सोखने की क्षमता व्यावसायिक रूप से निर्मित सैनिटरी नैपकिन से बेहतर है. यह सामग्री पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ है, क्योंकि इसमें कोई केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता और यह स्थानीय स्तर पर छोटे पैमाने पर तैयार की जा सकती है.
भारत और अन्य विकासशील देशों में पीरियड्स में स्वच्छता उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सस्ते और टिकाऊ विकल्पों की आवश्यकता है. सिसल आधारित सैनिटरी नैपकिन इस समस्या का समाधान प्रदान कर सकते हैं. यह न केवल प्रदूषण को कम करती है, बल्कि कच्चे माल की उपलब्धता और बनाने की लागत को भी घटाती है.
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सिसल की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे यह कपास और अन्य पौधों की तुलना में पर्यावरण के लिए कम हानिकारक है. शोधकर्ताओं के अनुसार, सिसल के उपयोग से सैनिटरी नैपकिन का उत्पादन अधिक टिकाऊ और इको फ्रेंडली हो सकता है, विशेष रूप से पानी की खपत और कार्बन उत्सर्जन को कम करके.
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इस तकनीक का लाभ यह है कि इसे स्थानीय स्तर पर छोटे पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादित सैनिटरी नैपकिन के कारण होने वाले कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सकता है. इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने "वितरित निर्माण" मॉडल अपनाया है, जहां स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उत्पादन किया जाता है.
सिसल के पत्तों से बने सैनिटरी नैपकिन न केवल पर्यावरण के लिए टिकाऊ हैं, बल्कि यह कम लागत और बेहतर सोखने की क्षमता प्रदान करते हैं. यह शोध भविष्य में पीरियड्स में स्वच्छता उत्पादों के उत्पादन में क्रांति ला सकता है और विकासशील देशों में पीरियड्स में स्वच्छता की पहुंच को बढ़ा सकता है.
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