कृषि प्रधान राज्य बिहार अपनी पारंपरिक कृषि संपदा को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में हर दिन एक नई उपलब्धि हासिल कर रहा है.राज्य के कई कृषि उत्पादों को पहले ही जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) मिल चुका है, जबकि अन्य उत्पादों को भी यह मान्यता दिलाने के लिए सरकार लगातार प्रयासरत है.इसी कड़ी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने जीआई (भौगोलिक संकेत) पंजीकरण के लिए निर्धारित 2024-25 का लक्ष्य पूरा कर लिया है. साथ ही, बिहार के तीन और कृषि उत्पादों – लिट्टी-चोखा, बिहार चना सत्तू और बथुआ आम को जीआई टैगिंग के लिए औपचारिक रूप से जीआई कार्यालय, चेन्नई भेजने की स्वीकृति प्रदान की गई है.
बिहार को 'जीआई हब' बनाने की दिशा में बीएयू ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इस वित्तीय वर्ष में बीएयू, सबौर ने 30 उत्पादों के लिए जीआई पंजीकरण की दिशा में कार्य किया, जिनमें से 08 उत्पाद – मालभोग चावल, पटना दुहिया मालदा, बिहार सिंघाड़ा, सीता सिंदूर, हाजीपुर का चिनिया केला, मगही ठेकुआ, बिहार तिलौरी और बिहार अधौरी पहले ही जीआई टैगिंग के लिए भेजे जा चुके थे. अब तीन और उत्पादों की स्वीकृति के साथ, बिहार के कुल 11 कृषि उत्पादों को आधिकारिक रूप से जीआई पंजीकरण प्रक्रिया में शामिल कर लिया गया है. इसके साथ ही, बीएयू, सबौर ने 2024-25 के लिए निर्धारित लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया है.
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बीएयू के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने कहा, "भौगोलिक संकेत (जीआई) पंजीकरण बिहार के विशिष्ट कृषि उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने और किसानों की आर्थिक समृद्धि बढ़ाने का एक क्रांतिकारी कदम है. यह पहल हमारी समृद्ध कृषि विरासत की सुरक्षा के साथ-साथ बाजार में उनकी विशिष्टता को भी मजबूत करेगी." जीआई पंजीकृत उत्पादों के उपयोगकर्ताओं की संख्या को 1,000 तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
वहीं, बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि बिहार के अधिक से अधिक पारंपरिक कृषि उत्पादों को जीआई टैगिंग प्राप्त हो. इस वर्ष का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है, जो बिहार को 'जीआई हब' के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
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बीएयू, सबौर की यह पहल स्थानीय किसानों को सशक्त बनाने, कृषि नवाचार को बढ़ावा देने और बौद्धिक संपदा संरक्षण के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है.जीआई टैगिंग से बिहार के अनूठे कृषि उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नई पहचान मिलेगी, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी और राज्य की समृद्ध कृषि विरासत को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त होगा. वहीं, जिन कृषि उत्पादों को अब तक जीआई टैग मिल चुका है, उनके लिए भी एक बेहतर बाजार उपलब्ध हो रहा है.
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