सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मुद्दे पर हस्तक्षेप करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि जब अदालत पहले ही इस मुद्दे पर कई आदेश पारित कर चुकी है और मामला विचाराधीन है, तो बिना किसी ठोस आधार के हस्तक्षेप और निर्देशों के लिए दायर की जाने वाली याचिकाओं को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए. जिस वजह से यह याचिका खारिज की जाती है.
यह याचिका पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत टोंगड़ द्वारा दायर की गई थी. इसमें कहा गया था कि "वायु प्रदूषण एक स्थायी राष्ट्रीय संकट बन चुका है, और अप्रैल-मई के दौरान पराली जलाने से निकलने वाली प्रदूषण न केवल दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि उन राज्यों में रह रहे निवासियों को भी प्रभावित करता है जहां पराली जलाई जाती है. याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि बच्चों और बुजुर्गों पर इसका गंभीर असर पड़ता है.
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याचिका में यह भी जिक्र किया गया कि "वायु प्रदूषण एक स्थायी राष्ट्रीय संकट बन चुका है, जिससे देश में लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है. यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है." इसके अलावा, याचिका में यह भी कहा गया कि "पिछले कई दशकों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए असंख्य निर्देशों के बावजूद, सरकारी एजेंसियां और संबंधित हितधारक सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करने में विफल रहे हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और मामले पर पहले से चल रही सुनवाई को ध्यान में रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया. देश में रविशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में हर साल धान और गेहूं की कटाई के बाद पराली जलाने की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है. इससे न केवल पर्यावरण को भारी नुकसान होता है, बल्कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण भी गंभीर स्तर तक बढ़ जाता है.
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