जब भी पैकेट खोलकर चिप्स खाओ तो एक-एक चिप्स सफेद बिना जला हुआ निकलता है. 20 से 25 किलो तक आलू के चिप्स एक साथ फ्राई करने पर भी वो जलते यानि ब्राउन नहीं होते हैं. हर एक चिप्स का रंग एक जैसा ही होता है. यहां तक की जले का एक निशान तक चिप्स पर नहीं आता है. चिप्स का रंग ठीक वैसा ही बना रहता है जैसा आलू का होता है. जबकि घर के किचिन में आठ-दस चिप्स भी तलने जाओ तो कोई ज्यादा ब्राउन हो जाएगा तो कोई हल्का.
घर में चिप्स फ्राई करते वक्त दो-चार चिप्स का जलना तो तय है. लेकिन सवाल यह है कि ऐसा होता क्यों है. क्यों घर के चिप्स जल जाते हैं और बाजार के चिप्स पर एक दाग तक नहीं आता है. इसी सवाल का जवाब जानने के लिए किसान तक ने पोटैटो रिसर्च सेंटर के साइंटिस्ट से की बात.
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बड़ी-बड़ी कंपनियों में तले जा रहे आलू के चिप्स ब्राउन न होने के पीछे फ्राई करने वाले की कोई कलाकारी नहीं है. यह तो आलू के साथ की गई एक खास तरह की प्रोसेसिंग का कमाल है. लेकिन आलू की यह प्रोसेसिंग घर पर नहीं कोल्ड स्टोरेज में की जाती है. इस बारे में किसान तक ने सेंट्रल पोटेटो रिसर्च सेंटर, पटना के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. शिव प्रताप सिंह से इस बारे में बात की. उन्होंने बताया कि जब आलू को चिप्स के तौर पर फ्राई करते हैं तो उसमे मौजूद शुगर भी जलने लगती है.
चिप्स पर जो ब्राउन कलर दिखाई देता है वो जली हुई शुगर होती है. अब सवाल उठता है कि इतनी शुगर आलू में कहां से आती है. तो इस सवाल का जवाब यह है कि अगर हम गौर करें तो आलू को कोल्ड स्टोरेज में आठ से दस महीने तक रखकर खाया जाता है. यही वजह है कि जब हम आलू को कोल्ड स्टोरेज में 3 से 4 डिग्री तापमान पर रखते हैं तो उसमे मौजूद स्टार्च शुगर में बदलने लगता है. यही शुगर तेल में जलती है.
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लेकिन जब हम कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर का तापमान 10 से 12 डिग्री रखते हैं तो आलू की प्राकृतिक अवस्था बरकरार रहती है. मतलब आलू में मौजूद स्टार्च शुगर में नहीं बदलता है. इस तापमान पर आलू जमे न इसका भी खास ख्याल रखा जाता है. क्योंकि आलू जमने लगेगा तो उसका स्वाद तो बिगड़ेगा ही साथ में आलू में मौजूद कई तत्व का मिश्रण खराब हो जाएगा. आलू कोल्ड स्टोरेज में जमा न इसके लिए आलू पर सीआईपीसी केमिकल का छिड़काव किया जाता है.
अक्टूबर-नवंबर से पंजाब, हल्द्वानी, मुरादाबाद, चंदौसी, कन्नौज और फर्रुखाबाद का आलू बाजार में आ जाता है. यह आलू खुदाई के दौरान सीधे खेतों से मंडियों को सप्लाई होता है. यहां आलू का उत्पादन ज्यादा नहीं होता है तो कोल्ड स्टोरेज में भी बहुत ही कम जाता है या कम वक्त के लिए जाता है. इस थोड़े से वक्त में भी यहां का आलू अपनी प्रकृतिक अवस्था में ही बना रहता है.
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