बकानी तेरी खैर नहीं! बासमती धान के इस जानलेवा रोग पर चलेगा “जीन” का डंडा

बकानी तेरी खैर नहीं! बासमती धान के इस जानलेवा रोग पर चलेगा “जीन” का डंडा

बकानी रोग के बारे में आपने सुना होगा. धान में यह सबसे खतरनाक रोगों में एक है जिसे सबसे पहले जापान में पकड़ा गया था. हालांकि इस रोग को जड़ से खत्म करने के लिए जेनेटिक मॉडिफिकेशन पर काम चल रहा है. आइए डिटेल्स में जान लेते हैं.

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बकानी तेरी खैर नहीं! बासमती धान के इस जानलेवा रोग पर चलेगा “जीन” का डंडाधान में बकानी रोग का खतरा सबसे अधिक होता है

बासमती धान के जानलेवा रोगों में बकानी भी एक है. देश दुनिया में तमाम कोशिशों के बावजूद इस रोग का ज़हर और कहर दोनों बरकरार है. पर इस फिक्र को थोड़ा हल्का करते हुए वैज्ञानिकों ने धान के एक जीन को मॉडिफ़ाई करने का प्रयास शुरू कर दिया है. बहुत जल्द बासमती धान की ऐसी किस्म बनेगी जो बकानी को बाय कह देगी. इसके बारे में पूसा के पूर्व निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह (एके सिंह) ने विस्तार से जानकारी दी है. 'किसान तक' से खास बातचीत में डॉ. सिंह ने बकानी रोग और उस पर होने वाली रिसर्च के बारे में पूरी जानकारी दी. 

जापान से आई बकानी बीमारी

डॉ. सिंह ने कहा, बकानी एक जपानी शब्द है और इसका अर्थ होता है मूर्ख. जापानी भाषा में मूर्ख को ही बकानी कहते हैं. इस बीमारी को बकानी यानी मूर्ख का नाम भी क्यों दिया गया, इसका खास कारण है. जापान में पहली बार धान में इस बीमारी को देखा गया और उसका नाम बकानी रखा गया. इसका कारण ये है कि यह बीमारी एक फफूंद से होती है जिसे जिबरेला फिजिकोराई बोलते हैं. यह फफूंद बकानी से ग्रसित पौधों के अंदर जिबरेलिक एसिड बनाती है. यह एसिड एक ग्रोथ हार्मोन है जो पौधों को बढ़ाता है. जिबरेलिक एसिड के बनते ही पौधे बहुत लंबे हो जाते हैं और बाद में चलकर सूख जाते हैं.

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बकानी को मूर्ख रोग क्यों कहते हैं?

डॉ. एके सिंह ने आगे बताया, जब ऐसे पौधे लंबे होते हैं तो अन्य पौधों से बिल्कुल अलग दिखते हैं. धान के खेत में अगर 10 पौधे भी बकाने से ग्रसित होंगे और आप सड़क से जा रहे होंगे तो दूर से दिख जाएंगे. इस बीमारी को मूर्ख यानी बकानी इसलिए कहते हैं क्योंकि जब किसी पौधे का व्यवहार सामान्य पौधों से अलग होता है तो उसे मूर्ख की संज्ञा देते हैं. इसी तरह से इस बीमारी का नाम बकानी पड़ा है.

डॉ. सिंह ने बताया कि इस बीमारी पर वैज्ञानिकों की टीम लगातार शोध कर रही है ताकि अपने देश की परंपरागत किस्मों को बचाया जा सके. धान की प्राचीन किस्मों की स्क्रीनिंग की जा रही है और उन्हें कोशिश की कोशिश जारी है. धान की कुछ किस्में मिली हैं जिन पर बकानी रोग नहीं लगता. ऐसी किस्मों में देखा गया कि बकानी के बीजाणु से ग्रसित करने के बाद भी उसमें यह रोग नहीं लगता है. इन प्रजातियों की पहचान करने के बाद इनका संकरण और मैपिंग के दौरान कुछ जीन मिली है जिसे बासमती धान में ट्रांसफर करने का काम चल रहा है.

बकानी से धान को 20 परसेंट नुकसान

डॉ. सिंह ने बताया कि बकानी रोग के चलते धान में 20 परसेंट तक नुकसान हो जाता है. इस रोग से धान के 10 से लेकर 20 परसेंट तक पौधे प्रभावित हो जाते हैं. इस बीमारी से ग्रसित पौधे को बाहर से देखने पर खराब लगता है. यह बीमारी बीज से भी होती है और मिट्टी से भी फैलती है. इस रोग से बचने का एक ही उपाय है कि बीज का ठीक ढंग से उपचार करें. उपचार करने के लिए बुवाई से पहले बीज में बावस्टिन दवा का प्रयोग करें. इसके अलावा हम ट्राइकोडर्मा का भी प्रयोग कर सकते हैं. अगर धान की रोपाई करने जा रहे हैं तो किसान उसकी जड़ों को बावस्टिन के घोल में डुबो दें तो उससे बीमारी से बचाव में लाभ मिलता है. बकानी के प्रतिरोधी किस्म 3-4 साल में आ सकती है. 

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