एम.एस. स्वामीनाथन हमेशा से ही छोटे किसानों और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के पक्षधर रहे. उनका दृढ़ विश्वास था कि विज्ञान की मदद से हाशिए पर पड़े लोगों को आसानी से लाभ पहुंचाया जा सकता है. यही वजह है कि स्वामीनाथन किसानों को ज्ञान और संसाधनों से सशक्त बनाने के मुखर समर्थक थे. यही वजह है कि भारत के किसानों की कायाकल्प करने और उनकी आय बढ़ाने के मकसद से हरित क्रांति के जनक यानी स्वामीनाथन आयोग ने केंद्र सरकार को एक बेहद गहन और महत्वपूर्ण सिफारिश रिपोर्ट दी थी. स्वामीनाथन आयोग की वो रिपोर्ट किसानों के लिए सबसे बड़ी ‘हथियार’ बनी और सरकार के लिए सबसे बड़ी गले की फांस. आज एम.एस. स्वामीनाथन की जन्म शताब्दी पर हम इसी स्वामीनाथन रिपोर्ट पर विस्तार से बता रहे हैं.
दरअसल, स्वामीनाथन आयोग इस रिपोर्ट में सी-2 (Comprehensive Cost) यानी संपूर्ण लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर MSP देने की सिफारिश की थी. लेकिन किसानों को वर्तमान में जो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है, वो इस लागत के आधार पर नहीं होता है. स्वामीनाथन की इस रिपोर्ट की सिफारिश के हिसाब से अगर कृषि उपज की C-2 लागत पर 50 प्रतिशत लाभ जोड़कर MSP दी जाने लगे तो किसानों की आय बढ़ जाएगी.
स्वामीनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि किसानों को उनकी फसल की पूरी उत्पादन लागत, यानी C2 में पारिवारिक श्रम, खर्चा और जमीन के किराए का कम से कम 50% लाभ मिलना चाहिए. इसे ही “C2 + 50%” सूत्र कहते हैं. आसान भाषा में कहा जाए तो MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) फसल की लागत से 50% अधिक होना चाहिए.
मगर स्वामीनाथन आयोग ने MSP का यह सूत्र औपचारिक नहीं किया था. बल्कि अपनी सिफारिश में ये कहा कि CACP यानी Cost & Price Commission को फसल की उत्पादन लागत पर आधारित MSP तय करना चाहिए. जिसमें जोखिम और कटाई के बाद की गतिविधियों को भी ध्यान में रखा जाए. लेकिन किसान संगठन और तमाम किसान दल स्वामीनाथन आयोग के इसी फॉर्मूले को कानूनी तौर पर अपनाने की मांग करने लगे, यही मांग सरकार के लिए सबसे बड़ी फांस बन गई.
दरअसल, स्वामीनाथन आयोग ने फसलों का एमएसपी तय करने के लिए दो स्पष्ट सिफारिशें की थीं. इसमें पहला तो है कि फसलों के लिए MSP की घोषणा में देरी बंद होनी चाहिए, खास तौर से खरीफ फसलों में कतई ना हो. दूसरी सिफारिश थी कि समूचे भारत में MSP का फॉर्मूला लागू होना चाहिए. लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि MSP का लाभ मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आंध्र के किसानों तक ही सीमित रह जाता है.
फरवरी 2015 में जब भारतीय किसान संगठनों के संघ (CIFA) ने राष्ट्रीय किसान नीति के कार्यान्वयन की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, तो केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि सिफारिश की गई एमएसपी प्रदान नहीं किया जा सकती. लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि निर्धारित करने से बाजार विकृत हो सकता है.
सरकार ने इस हलफामें में कहा था कि एमएसपी और उत्पादन लागत के बीच यांत्रिक संबंध कुछ मामलों में प्रतिकूल साबित हो सकता है. किसी एक वस्तु की कीमत में वृद्धि या कमी की तुलना अन्य वस्तुओं से नहीं की जा सकती क्योंकि यह मांग और आपूर्ति के साथ ही बाजार की ताकतों पर भी निर्भर करता है. सरकार का कहना है कि यह ध्यान देने वाली बात है कि मूल्य निर्धारण नीति, यानी एमएसपी का निर्धारण, कोई 'लागत-प्लस' प्रक्रिया नहीं है, हालांकि लागत एमएसपी का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है. मूल्य निर्धारण नीति का उद्देश्य उचित और लाभकारी मूल्य प्राप्त करना है, न कि आय नीति बनाना.
स्वामीनाथन आयोग की इस रिपोर्ट में बताए गए एमएसपी के फॉर्मूले को किसान संगठन कानूनी जामा पहनाने की मांग कर रहे हैं. यानी हर फसल पर C2+50% MSP और सरकार की ओर से गारंटीकृत खरीद. अगर ये कानून बना तो इससे सरकार पर बहुत भारी वित्तीय दबाव पड़ेगा.
गौरतलब है कि स्वामीनाथन आयोग ने अपनी सिफारिशें केवल MSP तक सीमित नहीं रखीं, बल्कि एक व्यापक रणनीति भी दी थी, जिसमें निम्न चीजें शामिल थीं-
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