महाराष्ट्र की शंकर पट प्रथा, इस क‍िसान मेले में 150 सालों से हो रही बैलों की दौड़

महाराष्ट्र की शंकर पट प्रथा, इस क‍िसान मेले में 150 सालों से हो रही बैलों की दौड़

यह प्रथा अमरावती के तलेगांव से जुड़ी हुई है. इस शंकर पट प्रथा में पिछले 20 साल से महिलाएं भी अपनी भागीदारी न‍िभा रही हैं. इससे पहले सिर्फ पुरुष ही बैल दौड़ाते थे. लेकिन, अब महिलाओं में भी इसका उत्साह कम नहीं है. वो भी बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा लेती हैं. 

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महाराष्ट्र की शंकर पट प्रथा, इस क‍िसान मेले में 150 सालों से हो रही बैलों की दौड़महाराष्ट्र की शंकर पट प्रथा. सांकेतिक फोटो

अमरावती के तलेगांव दशासर में शंकर पट प्रथा कई मायनों में खास है. ये प्रथा 150 साल से चली आ रही है. इस प्रथा की मुख्य व‍िशेषता बैलों के जोड़े की दौड़ है. ये दौड़ 150 सालों से आयोज‍ित हो रही है. हालांक‍ि पूर्व तक बैल की दौड़ों में पुरुषाें का ही वर्चस्व था. ले‍क‍िन, शंकर पट में पिछले 20 साल से महिलाओं को शामिल किया जा रहा है. अब महिलाओं में भी इसका उत्साह कम नहीं है. वो भी बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा लेती नजर आ रही हैं. आइए जानते हैं क‍ि अमरावती के तलेगांव से जुड़ी हुई ये शंकर पट प्रथा क्या है.  

किसानों के लिए किया जाता है मेले का आयोजन

इस दौड़ को देखने आने वाले किसानों के लिए यहां पर मेले का भी आयोजन किया जाता है. जहां पर खेती-किसानी से संबन्धित वस्तुएं मिलती हैं. इस बैलगाड़ी दौड़ में महाराष्ट्र के कई जिलों के अलावा मध्य प्रदेश के किसान भी इसमें हिस्सा लेते हैं. महाराष्ट्र के अमरावती जिले के तलेगांव दशासर में पिछले 150 साल से शंकर पट में बैलों को छोटी सी बैलगाड़ी में जोत कर दौड़ाया जाता है. हालांक‍ि बीते साल में बैल जोड़ी की इस दौड़ पर पाबंदी लगा दी गई थी. जिसे अब हटा दिया गया है. आपको बता दें किसानों का यह सबसे पसंदीदा आयोजन हुआ करता है.

पुरुषों के साथ महिलाएं भी लेती हैं हिस्सा

आमतौर पर पुरुष इस बैलगाड़ी दौड़ में हिस्सा लेते हैं. लेकिन, अब तलेगांव दशासर में इस कार्यक्रम में महिलाएं भी जम कर हिस्सा लेकर अपना परचम लहरा रही हैं. बैलगाड़ी दौड़ में जिन महिलाओं ने इस दौड़ में हिस्सा लिया उनका कहना है कि अब कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहां महिलाएं पुरुषों से पीछे हैं. प्लेन से लेकर  बाइक तक महिलाएं चलती हैं तो बैलगाड़ी क्यों नहीं दौड़ा सकती हैं. 

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आयोजन में हिस्सा लेने के लिए ससुराल से आती हैं महिलाएं

महिलाओं का कहना है की वह इस दौड़ में हिस्सा लेती हैं क्योंकि इस दौड़ में बैलों की नस्ल और नए बैल की नस्ल विकसित होती है, जो किसानों के सदैव साथ में रहते हैं. मह‍िलाओं का कहना है क‍ि प्लेन से लेकर गाड़ी चलाना सीखना बड़ी बात नहीं, लेकिन बैलगाड़ी को दौड़ाना यह थोड़ा मुश्किल काम है. इसीलिए इस परंपरा को बरकरार रखने के लिए हम हमारे ससुराल से मायके आकर इस दौड़ में हिस्सा लेते हैं.

शंकर पट से जुड़ी बातें 

इस बैलगाड़ी दौड़ में आयोजक के द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र के कई जिला समिति और मध्य प्रदेश के भी किसान हिस्सा लेते हैं. इस बार लगभग 100 से अधिक बैल जोड़ियां इस पट में शामिल हुए थे. इस पाठ में देखने वाले गांव के लोग और आसपास के जिले के किसान भी शामिल हुए थे. जहां इस पद के बगल में ही मेले का भी आयोजन किया गया था. खाने पीने की चीजों के साथ साथ खेल का मेला भी होता है और साथ ही साथ किसानों के खेतों में लगने वाले जो औजार हैं वह भी यहां पर मिलते हैं.

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