अरंडी, जिसे कैस्टर (Castor) भी कहते हैं, खरीफ की एक प्रमुख तिलहनी फसल है लेकिन इसे रबी में बोया जाता है जो कम खर्च और कम मेहनत में किसानों को बढ़िया मुनाफा दे सकती है. अरंडी के तेल की मांग देश और विदेश में लगातार बढ़ रही है. इसका इस्तेमाल सिर्फ दवाइयों और पशु चिकित्सा में ही नहीं, बल्कि साबुन, पेंट, स्याही, क्रीम, प्लास्टिक और ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में भी होता है. बढ़ती मांग के कारण भारत से इसका निर्यात भी बढ़ रहा है, जिससे किसानों को अच्छा भाव मिलने की पूरी संभावना रहती है.
अरंडी का तेल सिर्फ एक साधारण तेल नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण औद्योगिक कच्चा माल है जिसका इस्तेमाल कई क्षेत्रों में होता है. सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में इसका उपयोग क्रीम, साबुन और मेकअप का सामान बनाने के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है. वहीं, औद्योगिक स्तर पर इससे प्रिंटिंग की स्याही, मोम, वार्निश, नाइलॉन के धागे और कृत्रिम रेजिन जैसी चीजें तैयार होती हैं. इसके अलावा, पशु चिकित्सा में भी इसे जानवरों की कब्ज दूर करने सहित कई दवाइयों में प्रयोग किया जाता है. इन्हीं विविध उपयोगों के कारण अरंडी तेल की वैश्विक मांग तेजी से बढ़ रही है.
अरंडी की सफल खेती के लिए दो बातें सबसे अहम हैं. पहला सही किस्म का चुनाव और दूसरा उसे बोने का सही समय. हमेशा प्रमाणित उन्नत किस्मों के बीज ही बोने चाहिए, क्योंकि इनमें बीमारियां और कीड़े लगने का खतरा कम होता है और पैदावार भी काफी ज़्यादा होती है. कुछ प्रमुख उन्नत किस्में हैं - अरुणा, वरुणा, जीसीएच-4, जीसीएच-5, जीसीएच-7 और आरसीएचसी-1. किस्म चुनने के बाद, उसे सही समय पर बोना भी उतना ही जरूरी है. खरीफ की फसल के लिए मॉनसून की पहली बारिश के बाद जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है. रबी की फसल के लिए 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच बुवाई करनी चाहिए, जबकि गर्मियों की फसल के लिए जनवरी का महीना सबसे बेहतर होता है.
अरंडी की बुवाई के लिए खेत तैयार करते समय, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, जिसके लिए प्रति एकड़ लगभग 5 से 6 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बीज को जमीन में 7-8 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा न बोएं, वरना अंकुरण ठीक से नहीं हो पाएगा. साथ ही, फसल को फंगस जैसी बीमारियों से बचाने के लिए बुवाई से पहले 3 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर बीजों का उपचार जरूर कर लें.
अंरडी कीअच्छी उपज के लिए खाद का सही इस्तेमाल ज़रूरी है. एक एकड़ खेत के लिए लगभग 17-20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 12 -15 किलोग्राम फास्फोरस की जरूरत होती है. सिंचित खेती में फास्फोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय दें. बची हुई आधी नाइट्रोजन की मात्रा दो महीने बाद सिंचाई के साथ दें. असिंचित खेती में नाइट्रोजन और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पहले ही खेत में डाल दें.
अरंडी की खेती में लागत और मुनाफे का गणित सीधे तौर पर सिंचाई की व्यवस्था से जुड़ा होता है. असिंचित (बिना सिंचाई वाले) क्षेत्रों में प्रति एकड़ लागत लगभग 6,000 से 8,000 रुपये आती है, जिससे 7 से 8 क्विंटल तक पैदावार मिलती है. वहीं, सिंचित क्षेत्रों में लागत बढ़कर 10,000 से 12,000 रुपये प्रति एकड़ हो जाती है, लेकिन पैदावार भी बढ़कर 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच जाती है. अरंडी का बाजार भाव औसतन ₹60 से ₹70 प्रति किलो रहता है, तो लागत निकालकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today