मशरूम की खेती से मुनाफा तो बहुत है, पर जल्दी खराब हो जाने का डर हमेशा बना रहता था. इसकी वजह से महिलाएं गरीबी और संसाधनों की कमी के कारण अपना सब्जी और मशरूम का उत्पादन सस्ते में बेचती थी. लेकिन आज, तकनीक की मदद से उनकी मेहनत को सही दाम और पहचान दोनों मिलने लगी है.
रामगढ़ जिले के मांडू कृषि विज्ञान केंद्र में गुरुवार को किसान संगोष्ठी की एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस किसान संगोष्ठी में बड़ी संख्या में महिला और पुरुष किसानों को नई प्रणाली से खेती करने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि वे अपनी आय में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि कर सकें. इस संगोष्ठी में बिहार और झारखंड के कई कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए.
रांची स्थित दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के एमएमएस ओम प्रकाश शर्मा बताते हैं कि इस पद्धति से खेती करने के लिए जीरो टिल कम फर्टिलाइजर ड्रिल की आवश्यकता होती है. इसके जरिए खेत में धान की बुवाई की जाती है. धान की बुवाई करते वक्त इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि मशीन की मीटरिंग सही तरीके से सेट की गई हो.
फल और सब्जियों की खेती में पॉलीहाउस का बहुत बड़ा योगदान है. पॉलीहाउस से किसान अपने मुताबिक तापमान रख सकते हैं और इसे नियंत्रित कर सकते हैं. इस नई तकनीक से किसान अच्छी उपज पा सकते हैं और उससे उनकी कमाई भी बढ़ जाएगी. इसे देखते हुए बीएयू ने एक खास तरह का पॉलीहाउस बनाया है.
जब राज्य में लगातार दो बार सूखा पड़ा और धान की रोपाई ढंग से नहीं हो पाई तब विभाग का ध्यान इन योजनाओं की तरफ गया. इसके बाद जब फसल नुकसान का आकलन किया गया तब यह पता चला की कई जगहों पर रोग और कीट के कारण भी फसलों को काफी नुकसान हुआ है.
अमृत कृषि का विकास प्रो दाभोलकर ने किया था. यह कृषि की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें खेती के बाहरी चीजों का इस्तेमाल कम करके इसकी लागत को कम किया जाता है और स्थानीय तौर पर उपलब्ध किया जाता है.
गंदूरा उरांव से पूछने पर उन्होंने किसान तक को बताया कि इजरायल में जिस तकनीक का इस्तेमाल होता है उसका इस्तेमाल झारखंड में करना मुश्किल है. यहां पर इजरायली तकनीक के नाम पर सिर्फ ड्रिप और स्प्रिंक्लर का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा बड़ी मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता है.
शीतकालीन कार्य योजना की घोषणा करते हुए केजरीवाल ने कहा कि पराली जलाने से रोकने वाले पूसा बायोडीकंपोजर का छिड़काव पिछले साल के 4,400 हेक्टेयर के मुकाबले इस साल 5,000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर किया जाएगा.
किसान तक के पास उपलब्ध फोन रिकॉर्डिंग के आधार पर बोकारो जिला के चंद्रपुरा प्रखंड अंतर्गत पबलो गांव के किसान मुकेश महतो ने बताया कि उनकेपास तीन अगस्त को एक फोन आया था.
मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड जिले के बांस कारीगरो की पहचान कर रहा है और उनका रजिस्ट्रेशन कर रहा है साथ ही उनका कारीगर पहचान पत्र, आधार उद्यम और ई श्रम कार्ड बनाया गया है और उनकी आवश्यकता के अनुसार टूल कीट भी दिया गया है.
आज भी देश में मात्र तीन फीसदी किसान ही सही तरीके से जैविक खेती करते हैं. क्योंकि जैविक खेती करना महंगा होगा. इसमें लगने वाले कृषि इनपुट महंगे होते हैं. इसके अलावा हर फसल पर इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं साथ ही अलग-अलग भौगोलिक स्थितियों में भी इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
निशांत कुमार रांची के ऐसे युवा हैं जिन्होंने मछली पालन में एक्वा टूरिज्म को शामिल किया और इसे औऱ बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. एक छोटे से टैंक से उन्होंने 2018 में मछली पालन की शुरुआत की थी. पर आज उनक पास एशिया का अपनी तरह का पहला फार्म है जहां पर मछली पालन की पांच अलग-अलग तकनीकों का पालन किया जाता है.
गाय के बारे में समझा जाना और इसके महत्वको समझने के बाद उन्होंने सोचा की गौ-आधारित चीजों को बढ़ावा देने के लिए कुछ ऐसा कार्य किया जाए जिससे गाय की रक्षा हो सके और इसके जरिए कुछ लोगों को रोजगार भी दिया जा सके साथ ही काम करने के लिए बाहर नहीं जाना प़ड़े.
निशांत ने तालाब में सघन मछली पालन शुरू किया. इसके बाद उन्हें थोड़ी सफलता मिली तब उन्होंने मछली पालन में खास तकनीक का इस्तेमाल करने का मन बनाया. जानें इस तकनीक से जुड़ी निशांत की सफलता की पूरी कहानी-
मुलाकात के दौरान कृषि मंत्री ने भारत सरकार के कृषि सचिव से कहा कि वर्ष 2022 खरीफ मौसम में कम वर्षा एवं कम बुवाई क्षेत्र के कारण राज्य के 22 जिलों के 226 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था
एग्री बिजनेस सेंटर के प्रभारी ने केंद्र के कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि नई तकनीक के द्वारा केरला में उत्पादित विभिन्न फल और सब्जियों का प्रसंस्करण करते हुए वैल्यू एडिशन के साथ प्रोसेस प्रोडक्ट तैयार करके बाजार में उपलब्ध कराया जा रहा है. इस तरीके से किसानों की आय बढ़ी है.
झारखंड में 18000 हेक्टेयर में खरीफ फसल की खेती होती, इसका अधिकांश हिस्सा सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर है. इस लिए किसानों को यह जानना बेहद जरूरी है कि बारिश कम होने की सूरत में किसान कैसे धान की खेती कर सकते हैं.
इस मामले में जब झारखंड किसान महसभा ने आरटीआई से जरिए पूरे मामले को समझा और जांच की मांग की थी, तब कृषि विभाग ने एक जांच कमेटी बनाई थी. जांच कमेटी ने अपनी जांच पूरी की थी, इसके बाद कई महत्वपूर्ण चौंकानेवाले खुलासे किए हैं.
झारखंड के केदार स्नातक कर रहे थे, लेकिन इस दौरान उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी. फिर उन्होंने अपनी मेहनत से कमाए हुए पैसे से नया प्रयोग शुरू किया. आज इनके प्रयोग का ही नतीजा है की गांव के मंदिर और मस्जिद समेत अन्य सामूहिक स्थल 24 घंटे जगमगा रहे हैं.
गुमला जिले के घाघरा प्रखंड अंतर्गत गुनिया जरगाटोली गांव में बोरी बांध का निर्माण किया गया है. लगभग हर साल यहां पर ग्रामीण इसे बनाते हैं. गांव के ग्रामीण इसे मिलकर श्रमदान करके बनाते हैं,
ड्रिप इरिगेशन तकनीक के जरिए किसान 70-80 फीसदी पानी की बचत कर सकते हैं. तो वहीं सिंचाई के लिए अधिक मेहनत भी नहीं करनी पड़ती, जबकि फसलों को भी सटीक सिंचाई मिलती है.
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