गोबर से बनी गणेश जी की मुर्ति फोटोः किसान तकआज के समय में गोबर भी आजीविका का बेहतर साधन हो सकता है. इतना ही नहीं इसके जरिए इको फ्रेंडली उत्पाद बनाए जाते हैं. जो पूरी तरह से पर्यावरण हितैषी होते हैं. इन दिनों गोबर से तरह-तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. राखी से लेकर सजावटी सामान तक शामिल है. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के शुभम साव भी एक ऐसे युवा हैं जिन्होंने गोबर से उत्पाद बनाने का फैसला किया और उसी क्षेत्र में आगे बढ़ते गए. गोबर से समान बनाना सीखने के लिए देश विभिन्न गौशालाओं में गए. इस दौरान वो महाराष्ट्र के नागपुर से लेकर राजस्थान तक के गौशालाओं में गए और गोबर से विभिन्न उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया.
ओडिशा के भुवनेश्वर से एमएससी आइटी की पढ़ाई करने वाले शुभम को बचपन से ही गाय से लगाव था. फिर जैसे-जैसे बड़े हुए गाय के बारे में समझा जाना और इसके महत्वको समझने के बाद उन्होंने सोचा की गौ-आधारित चीजों को बढ़ावा देने के लिए कुछ ऐसा कार्य किया जाए जिससे गाय की रक्षा हो सके और इसके जरिए कुछ लोगों को रोजगार भी दिया जा सके साथ ही काम करने के लिए बाहर नहीं जाना प़ड़े. इसके बाद उन्होंने 2018-19 से इसकी शुरुआत की. इसके साथ-साथ लोगों को अपनी कला को पहुंचाने के लिए अपनी युट्यूब चैनल की शुरुआत की. इससे उन्हें काफी लाभ भी मिला और कई जगहों से ऑर्डर आने लगे.
शुभम साव फिलहाल गोबर के विभिन्न उत्पाद बनाने के अलावा जमशेदपुर के एक सरकारी स्कूल में आईटी शिक्षक का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि इस बार उन्हें एक लाख राखी का ऑर्डर मिला है. यह ऑर्डर अमेठी और मुंबई से मिला है. राखी के अलावा शुभम गोबर से गणेश जी की मूर्ति, तोरण द्वारा, ओम,स्वास्तिक चिन्ह के अलावा उबटन और पंचगव्य साबून बनाते हैं. गोबर के उत्पाद के अलावा वो लोगों की मांग और जरूरत के हिसाब से उनके क्षेत्र में पाए जाने वाले जड़ी-बूटी निशुल्क देते हैं. साथ ही विभिन्न प्रकार के पौधे भी उपलब्ध कराते हैं.
गोबर के उत्पाद बनाने के अलावा वो इसे बनाने की ट्रेनिंग भी देते हैं. हाल ही में उन्होंने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से देवघर में महिलाओं को दिया, धूप, दंतमंजन, हवन टिकिया, मोबाइल चिप और चाभी रिंग बनाने का प्रशिक्षण दिया था. इसके अलावा अब वो गौ आधारित धान की खेती को बढ़ावा देने के तहत चावल की खेती कर रहे हैं. गोबर के उत्पादों के अलावा वो गोबर का पाउडर भी सप्लाई करते हैं. वो गोबर पाउडर को मलेशिया तक भेज चुके है, वहा हिंदू मंदिर के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है.
गोबर के पाउडर में ग्वार फली और मेंदा लकड़ी 100 ग्राम प्रति किलो की दर से मिलाया जाता है. इससे जो उत्पाद बनते हैं उनमें मजबूती आती है. उन्होंने बताया की उनके पास एक ही गाय है. वो दूसरे लोगों से गोबर खरीदते हैं. गोबर सूखा कर उसे पाउडर बनाया जाता है. उसे 15-20 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदते हैं. इसमें सिर्फ देशी गाय के गोबर का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह उत्पाद इतने मजबूत होते हैं कि गिरने पर भी जल्दी नहीं टूटते हैं. इसके अलावा इसमें स्मेल नहीं होता है. बस इसे पानी से बचाकर रखना पड़ता है. राखी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा दो तरह की राखी बनाई जाती है. एक सामान्य राखी होती है और एक राखी में सब्जियों के पौधे के बीज डाले होते हैं. जिसे त्योहार खत्म होनेके बाद गमले में डाल देने पर उससे पौधे निकल आते हैं.
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