बांस का सामान बनातीं महिलाएं फाइल फोटोः किसान तकझारखंड का गुमला जिला कृषि के मामले में खास बनता जा रहा है. इस जिले में धान के अलावा वैकल्पिक फसलों की खेती पर खासा ध्यान दिया गया है. इसके अलावा वन क्षेत्र होने के कारण यहां वन संपदा भी भरपूर मात्रा में मिलती है. यही कारण है कि यहां के किसान फसल के अलावा भी अन्य चीजों की खेती में आगे बढ़ रहे हैं. इनमें से एक बांस की खेती भी है जिसमें काफी विकास हुआ है. इसका सीधा लाभ यहां के ग्रामीणों को मिल रहा है. बांस यहां के ग्रामीणों के लिए आजीविका का एक प्रमुख जरिया बन रहा है. जिला प्रशासन के सहयोग से किसानों को एक हजार से अधिक किसानों को बांस की खेती से जोड़ा गया है. इसके अलावा बांस की खेती करने वाले कारीगरों को टूल कीट भी दिया गया है.
गौरतलब है कि बदलते वक्त के साथ बांस की उत्पादों की भी खूब डिमांज बढ़ी है. झारखंड के अलावा यहां से बाहर के बाजारों में बांस की बनी वस्तुओं की खूब मांग होती है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड जिले के बांस कारीगरो की पहचान कर रहा है और उनका रजिस्ट्रेशन कर रहा है साथ ही उनका कारीगर पहचान पत्र, आधार उद्यम और ई श्रम कार्ड बनाया गया है और उनकी आवश्यकता के अनुसार टूल कीट भी दिया गया है. इसका फायदा यहां के कारीगरों को मिल रहा है. वो अपने उत्पाद राज्य के अलावा यहां के बाहर के बाजारों में भी बेच रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि झारखंड के इतिहास मे पहली बार ऐसा हुआ है जब प्रशासन के बेहतर कार्य के लिए जिले को प्रधानमंत्री अवार्ड मिला था. इस अवार्ड को दिलाने में गुमला के बांस कारीगरों की भूमिका सराहनीय है. यहां पर एक हजार से अधिक बांस कारीगरो को टूल कीट दिया गया था , साथ ही बांस कला भवन का भी निर्माण कराया गया है. जहां पर एक साथ बैठकर बांस कारीगर अपना काम करते हैं. इतना ही नहीं समय समय पर इन कारीगरों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
एक साथ बांस कारीगरों के आ जाने से मार्केटिंग में आसानी हुई है. साथ ही एक छत के नीचे एक साथ काम करने की सुविधा हो जाने से बांस कारीगर अब पूरे सालभर आराम से काम कर पा रहे हैं. पहले उन्हें बारिश और धूप में परेशानी का सामना करना पड़ता था. इससे उनकी कमाई बढ़ी है. पहले जहां बांस कारीगार महीने में 10,000 रुपये तक की कमाई करते थे वही अब 20 से 25 हजार रुपये तक महीने की कमाई कर रहे हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today