Success Story: रांची के निशांत ने दो छोटे टैंक से शुरू किया मछली पालन, आज पूरे एशिया में मशहूर है उनका फार्म

Success Story: रांची के निशांत ने दो छोटे टैंक से शुरू किया मछली पालन, आज पूरे एशिया में मशहूर है उनका फार्म

निशांत ने तालाब में सघन मछली पालन शुरू किया. इसके बाद उन्हें थोड़ी सफलता मिली तब उन्होंने मछली पालन में खास तकनीक का इस्तेमाल करने का मन बनाया. जानें इस तकनीक से जुड़ी निशांत की सफलता की पूरी कहानी-

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Success Story: रांची के निशांत ने दो छोटे टैंक से शुरू किया मछली पालन, आज पूरे एशिया में मशहूर है उनका फार्मनिशांत के फार्म में लगे बॉयोफ्लॉक टैंक फोटोः किंग फिशरीज

कृषि और मत्सय पालन रोजगार का एक बेहतर विकल्प हो सकता है. इस क्षेत्र में स्टार्टअप के जरिए युवा किसान खुद के साथ-साथ औऱ लोगों को भी रोजगार दे रहै हैं. रांची के रातु में किंगफिशरीज का संचालन करने वाले निशांत कुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. किगंफिशरीज मत्सय पालन के क्षेत्र में आज एक बड़ा नाम है. इसकी शुरुआत बेहद छोटे स्तर से की गई थी. 12X24 के टैंक से निशांत ने इस सफर की शुरुआत की थी. आज उनके पास मछली पालन की आधुनिकतम तकनीक मौजूद है. इसके अलावा वो एक्वा टूरिज्म को बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे हैं. 

निशांत बताते हैं कि वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर कृषि क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे. उनके पास तालाब के तौर पर एक बड़ा जलाशय मौजूद था, इसलिए तीनों दोस्तों ने मिलकर मछली पालन करने का फैसला किया. इसके बारे में तमाम तरह की जानकारी जुटाने के बाद सबसे पहले ट्रायल के तौर पर दो टैंकों में इसकी शुरुआत की. हालांकि शुरुआत में पूरी जानकारी नहीं थी इसलिए मछलियां मर गईं. पर निशांत ने हार नहीं मानी और फिर दोगुना जोश और तैयारी के साथ मछली पालन शुरू किया. थोड़ी सफलता मिलती देख तालाब में केज कल्चर के जरिए मछली पालन शुरू किया. 

CIFE से मिला तकनीकी सहयोग

इस तरह से उन्हें धीरे-धीरे मछली पालन का आइडिया हो गया. तब उन्होंने जिला मत्सय कार्यालय से संपर्क किया और सरकारी योजनाओं का लाभ लेना शुरू किया.  इसके बाद निशांत ने तालाब में सघन मछली पालन शुरू किया. इसके बाद उन्हें थोड़ी सफलता मिली तब उन्होंने मछली पालन में खास तकनीक का इस्तेमाल करने का मन बनाया. सीआईएफइ मोतीपुर के वैज्ञानिक ड़ॉ मो. अकलाकुर से तकनीकी सहायता मिली. तकनीकी सहायता मिलने के बाद उन्होंने बॉयोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन की शुरुआत की. पीएमएमएसवाई योजना से भी काफी सहयोग मिला. शुरुआत में 24 बॉयोफ्लॉक टैंक इंस्टॉल किए गए. बॉयोफ्लॉक से मछली पालन करने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा.

आईओटी आधारित है आरएएस सिस्टम

फिर इसके बाद निशांत कुमार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने बॉयोफ्लॉक टैंक की संख्या को बढ़ाया. आज उनके पास 74 बॉयोफ्लॉक टैंक है. इतना हीं नहीं उनके पास मछली पालन की आधुनिकतम तकनीक आरएएस मौजूद है. निशांत के फार्म में आरएएस के आठ टैंक हैं. सभी टैंक आईओटी पर चलते हैं और ऑटोमेटिक हैं. किसी भी प्रकार की गड़बड़ी होने पर या टैंक के पानी का पैरामीटर ऊपर-नीचे होने पर अलार्म बजना शुरू हो जाता है. इस तरह से मछली पालन करने में आसानी होती है. आज किंगफिशरीज एशिया का एक ऐसा फार्म बन गया है जहां पर पांच तकनीक से मछली पालन किया जाता है और एक्वा टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाता है. निशांत अपने फार्म में आईएमसी की प्रजातियों के अलावा मोनोसेक्स तिलापिया और पंगास, पाब्दा, सिंघी, अमूर कार्प, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प इत्यादि मछली का पालन करते हैं. 

 

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