खरीफ सीजन की शुरुआत होने वाली है और झारखंड के किसान इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस बार बारिश कैसी होगी और धान की खेती कैसी होगी. क्योंकि पिछली बार किसान खेत तैयार करने के लिए बारिश का इंतजार करते रह गए थे और धान रोपाई का समय निकल गया था. इसके कारण धान की खेती अच्छे से नहीं हो पाई थी. अब इस बार किसान उम्मीद भरी नजरों से बारिश का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में किसानों को यह जानना जरूरी है कि ऐसे हालात में जब बारिश अनियमित हो तब किस प्रकार से धान की खेती करें और अच्छी उपज हासिल करें.
झारखंड में 18000 हेक्टेयर में खरीफ फसल की खेती होती, इसका अधिकांश हिस्सा सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर है. इस लिए किसानों को यह जानना बेहद जरूरी है कि बारिश कम होने की सूरत में किसान कैसे धान की खेती कर सकते हैं. किसानों तक इस महत्वपूर्ण जानकारी को पहुंचाने के लिए किसान तक ने कृषि विज्ञान केंद्र रामगढ़ के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ डीके राघव से बात की. उन्होंन इस सवाल के जवाब में सबसे पहले कहा कि झारखंड के किसानों को धान की खेती करने के लिए डीएसआर यानी सीधी बुवाई तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में कृषि विज्ञान केंद्र रामगढ़ के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ डीके राघव ने कहा कि अगर बारिश का पैटर्न अच्छा भी रहता है और अच्छी बारिश होती है, तब भी किसान अपनी 25 फीसदी जमीन पर डीएसआर तकनीक से धान की रोपाई जरूर करें. क्योंकि इस तकनीक में बेहद कम बारिश कि जरूरत होती है और धान की उपज हो जाती है.इसलिए किसान मॉनसून की शुरुआत में ही अपनी 25 फीसदी जमीन पर डीएसआर विधि से धान की बुवाई करें.
डीएसआर विधि से धान रोपने का सबसे पहला फायदा यह होता है कि इसमें बहुत कम मजदूर लगते हैं, एक या दो मजदूर इसमें धान की बुवाई कर सकते हैं, इसलिए लेबर नहीं मिलने की समस्या नहीं होती है. इसके अलावा किसान अगर सही समय पर खरीफ की खेती करते हैं तो उनके पास सही समय पर रबी फसल की खेती करने का मौका मिल जाता है. इस तकनकी से बुवाई करने पर सूखे जैसे हालात होने पर भी धान की पैदावार हो जाती है, इसलिए किसानों को नुकसान नहीं होता है.
किसान तक से बातचीत में डॉ डीके राघव ने कहा कि किसान अच्छी पैदावार के लिए धान की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो सूखा रोधी हैं. इन किस्मों में आईसीएआर पटना द्वारा विकसित सहभागी और स्वर्ण उन्नत और आईआर 64 जैसी अन्य किस्में हैं. आईआर 64 बुवाई या तो मशीन से कर सकते हैं या हल से भी कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि केवीके रामगढ़ में पिछले तीन सालों से इस धान की खेती हो रही है. धान की इन किस्मों की खासियत यह है कि किसान को हर साल धान के बीज खरीदने की जरूरत नहीं होती है. अपनी उपज को ही किसान तीन सालों तक बीज के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह से किसानों बीज के लिए आत्मनिर्भर हो जाते हैं.
डीएसआर तकनीक से खेती करने के लिए किसान जून के पहले सप्ताह मे बारिश होने के बाद खेती की जुताई कर लें. बुवाई के वक्त खेत में इतनी नमी होनी चाहिए, जितनी गेंहू और सरसों की बुवाई के वक्त होनी चाहिए. किसान भाई प्रति एकड़ 15-20 किलो की दर से बुवाई करें. इस विधि से धान लगाने पर प्रति एकड़ 120 से 125 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार होती है. खरपवार से नियत्रंण के लिए किसान खरपतवार का इस्तेमाल कर सकते हैं.
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