प्रिजर्वेशन यूनिट फोटोः किसान तकझारखंड के कृषि विभाग में प्रिजर्वेशन यूनिट के नाम पर बड़ा घोटाला सामने आया था. प्रिजर्वेशन यूनिट घोटाला मामले में कृषि विभाग की तरफ से किसानों के बीच मशीन बांटी गई थी, जिसमें जबरदस्त अनियमित्ताएं बरती गई थी, ऐसे किसानों को इस योजना का लाभ दिया गया था, जिन्हें इसकी जरुरत भी नहीं थी और इसके इस्तेमाल के तरीकों की जानकारी भी नहीं थी. इसलिए किसानों को दिए जाने के बाद भी किसान इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं. उनके आंगन या खेत में यह एक बक्से की तरह रखा हुआ है, जिसका कोई उपयोग नहीं है.इस मामले में जब झारखंड किसान महसभा ने आरटीआई से जरिए पूरे मामले को समझा और जांच की मांग की थी, तब कृषि विभाग ने एक जांच कमेटी बनाई थी. जांच कमिटी ने अपनी जांच पूरी की थी इसके बाद कई महत्वपूर्ण चौंकानेवाले खुलासे किए हैं.
किसान महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष पंकज राय के मुताबिक मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था. समिति ने जांच के बाद अपनी प्राइमरी रिपोर्ट कृषि विभाग के सचिव को सौंप दी है. समिति की जांच में जो खुलासा हुआ है उसके मुताबिक प्रिजर्वेशन यूनिट की खरीद के मामले में भारी गड़बड़ी हुई है, जो कई स्तरों पर हैं.
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक प्रिजर्वेशन यूनिट की खरीद के मामले में टेंडर प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. नियमों के मुताबिक प्रिजर्वेशन यूनिट बांटे जाने से पहले एक सर्वे की जरूरत थी, जो किया ही नहीं गया. यूनिट के इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत थी, लेकिन इस नियम का भी पालन नहीं किया गया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में इस तरह से लगभग 18 करोड़ रुपए के वारे-न्यारे किए गए हैं. इस घोटाले में उपकरणों की खरीद में भारी अनियमितत बरती गई.
जांच समिति ने एक और जो चौंकानेवाला खुलासा किया है, उसके मुताबिक बिना टेंडर के ही प्रिजर्वेशन यूनिट की खरीद जिलास्तर पर की गई. इसमें सिर्फ उद्यान विभाग के आधार का इस्तेमाल किया गया. यूनिट की खरीद के लिए झारखंड शिक्षा परियोजना काउंसिल के इंजीनिय़रों ने तकनीकी स्वीकृति प्रदान की, जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है. क्योंकि JPEC का इंजीनियर पीडब्लयू कोड या अन्य किसी नियम के अनुसार इस तरह की खरीद के लिए तकनीकी स्वीकृति प्रदान नहीं कर सकता है. जेपीइसी के इंजीनियरों ने इसके लिए दो लाख रुपये का एस्टीमेट तैयार किया था और तकनीकी स्वीकृति प्रदान की थी.
किसान महासभा ने आरोप लगाया था कि प्रिजर्वेशन यूनिट के लिए 50-50 के फॉर्मूले पर काम करना था, इसमें 50 फीसदी का अंशदान किसान को करना था और 50 फीसदी का अंशदान सरकार को करना था. पर इस नियम की भी धज्जियां उड़ाई गई. किसानों से इसके लिए एक भी पैसे नहीं लिए गए. मांडर के एक प्रगतिशील किसान गंदूरा उरांव को यह मशीन दी गई है. उन्होंने बताया की इसके लिए उनके एक भी पैसे नहीं लिए गए थे. अब उनके आंगन में यह मशीन धूल फांक रही है.
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