जलवायु परिवर्तन के इस दौर में फसल सबसे अधिक बारिश से प्रभावित हो रही है. सही समय पर और उचित मात्रा में बारिश नहीं होने के कारण इसका सबसे अधिक असर खेती पर पड़ा है. उसमें भी सबसे अधिक प्रभाव धान की खेती पर पड़ा है. किसान नुकसान में हैं क्योंकि धान की खेती अच्छे से नहीं हो पा रही है. उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है. किसान जितनी लागत धान की खेती में लगा रहे हैं, उतना फायदा नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे दौर में जीरो टिलेज फार्मिंग कृषि की ऐसी पद्धति है जिससे किसान न सिर्फ अच्छा उत्पादन हासिल कर सकते हैं, बल्कि कम खर्च में अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं.
यह एक नई पद्धति है, इसलिए अधिक किसानों को इसकी जानकारी नहीं है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि जीरो टिलेज फार्मिंग क्या होती है और इससे कैसे खेती करते हैं. रांची स्थित दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के एमएमएस ओम प्रकाश शर्मा बताते हैं कि इस पद्धति से खेती करने के लिए जीरो टिल कम फर्टिलाइजर ड्रिल की आवश्यकता होती है. इसके जरिए खेत में धान की बुवाई की जाती है. धान की बुवाई करते वक्त इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि मशीन की मीटरिंग सही तरीके से सेट की गई हो. अगर सही तरीके से मीटरिंग नहीं सेट जाती है तो सीड रेट के अनुसार बीज नहीं गिर पाएंगे जबकि टिलेज फार्मिंग में बीज दर बहुत मायने रखती है. इसलिए बुवाई से पहले समतल जमीन पर मीटरिंग को लेवल कर लेना चाहिए.
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जीरो टिलेज के फायदे बताते हुए ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि जीरो टिलेज फार्मिंग में बचत ही बचत होती है. सबसे पहले इसमें बीज की बचत होगी. फिर मजदूरी की बचत होती है और खाद की बचत होती है. इसमें खेत को ट्रैक्टर से जुताई करने की जरूरत नहीं पड़ती है. इसलिए कार्बन फुटप्रिंट भी कम होता है. जीरो टिलेज फार्मिंग का फायदा यह होता है कि इसमें मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और किसान इसमें लंबे समय तक खेती कर सकते हैं और अच्छा उत्पादन हासिल कर सकते हैं. मिट्टी का स्वास्थ्य इसमें बेहतर बना रहता है और मिट्टी का क्षरण भी नहीं होता है. बीज, मजदूर, खाद की बचत, समय से बुवाई होने पर अच्छी पैदावार होती है. जीरो टिलेज फार्मिंग का एक और फायदा होता कि जब इसमें धान की सीधी बुवाई की जाती है तो खरपतवार का नियंत्रण करना आसान हो जाता है.
झारखंड में जो किसान जीरो टिलेज फार्मिंग पद्धति से धान की खेती करते हैं उन्हें इस बात का खास ध्यान देना चाहिए कि 30 जून से पहले धान की बुवाई कर देनी चाहिए. इस अवधि से पहले धान की बुवाई करने पर किसान रोपाई किए गए धान के बराबर उत्पादन पा सकते हैं. इसमें बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिए खरपतवार पर नियंत्रण बेहद जरूरी है. इस पद्धति से खेती करने के लिए किसानों को मध्यम अवधि वाली 120-130 दिनों वाली धान की वैरायटी का चयन करना चाहिए. इससे अच्छी पैदावार मिलती है. झारखंड के किसान इस पद्धति के लिए अनुशंसित धान की किस्म सहभागी, विशेष, ललाट आईआर 64, 36 का चयन कर सकते हैं. खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान बुवाई के बाद खेत में पेंडिमेथिलीन 1.3 लीटर को 250 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
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वर्तमान समय में यह पद्धति इसलिए किसानों के लिए लाभकारी मानी जा रही है क्योंकि वर्षा अब नियमित हो गई है. साल दर साल बारिश की स्थिति में बदलाव आ रहा है और मात्रा में गिरावट आ रही है. जीरो टिलेज फार्मिंग एक ऐसी पद्धति है जिसमें 30-40 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है और मौसम में परिवर्तन होने पर भी इसमें पैदावार प्रभावित नहीं होती है. इसलिए इस पद्धति को क्लाइमेट रेजिलियेंट पद्धति भी कहा जाता है.
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