जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच जुबानी जंग तेज होती जा रही है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) डिप्टी उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया महबूबा मुफ्ती के बीच चुनाव से पहले जुबानी जंग देखने को मिल रही है. केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं. उमर अब्दुल्ला ने पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती को लेकर कहा था कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को ही टिकट देकर चुनाव में खड़ा किया है. अब महबूबा मुफ्ती ने पलटवार करते हुए कहा कि उमर अब्दुल्ला को भी अपने सिद्धांतों के अनुसार बाहर रहना चाहिए था.
कभी गुपकार घोषणापत्र गठबंधन (पीएजीडी) के तहत सहयोगी रहे दोनों दलों के बीच अब तीखी नोकझोंक हो रही है. दोनों ही जम्मू-कश्मीर में मौजूदा संकट के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उमर और महबूबा के बीच जारी चुनावी अभियान के दौरान बयानबाजी और भी तेज हो गई है. उमर ने हाल ही में महबूबा की पीडीपी से अपने उम्मीदवार वापस लेने और नेशनल कॉन्फ्रेंस को चुनाव मैदान सौंपने की बात कही थी. उन्होंने अब्दुल्ला परिवार को राजनीतिक वंश बताने वाली महबूबा की टिप्पणी की भी आलोचना की थी.
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उमर ने कहा, 'जिन लोगों ने हम पर वंशवाद की राजनीति का आरोप लगाया था, उन्होंने अब अपने रिश्तेदारों (महबूबा की बेटी इल्तिजा) को मैदान में उतारा है. अगर वह वाकई वंशवादी राजनीति के खिलाफ हैं तो उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के अलावा किसी और को उम्मीदवार चुनना चाहिए था.' गौरतलब है कि महबूबा इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं और उनकी जगह पर उनकी बेटी इल्तिजा अपनी किस्मत आजमाने जा रही हैं. महबूबा ने भी उमर को अपने ही तरीके से जवाब दिया.
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महबूबा मुफ्ती ने उमर को याद दिलाया कि नेशनल कॉन्फ्रेंस का चुनावों पर अपना रुख बदलने का एक लंबा इतिहास रहा है. उनका कहना था कि पार्टी अपनी राजनीतिक सुविधा के आधार पर उन्हें 'हराम' या 'हलाल' करार देती रही है. महबूबा ने कहा, '1947 से लेकर आज तक, चुनावों पर एनसी का रुख असंगत रहा है. 1947 में, जब शेख अब्दुल्ला पहली बार जम्मू-कश्मीर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी बने और बाद में भारत के साथ गठबंधन किया तो चुनावों को हलाल माना जाता था. जब वह प्रधानमंत्री बने, तब भी वे हलाल थे. लेकिन जब उन्हें हटा दिया गया, तो 22 साल तक चुनाव हराम हो गए.'
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