खान-पान के शौकीनों से कसूरी मेथी पर चर्चा करना गैर जायज है. फिर भी कसूरी मेथी अपने स्वाद और खुशबू के लिए सबकी जुबां पर आ ही जाती है. दुनियाभर के बाजारों में कसूरी मेथी एक ब्रांड नाम के साथ बिकती है. लेकिन, अब वक्त करवट लेने वाला है. कसूरी के इस ब्रांड नेम को नागाैरी मेथी के देशी ब्रांड नाम से कड़ी टक्कर मिलने वाली है. इसके लिए राजस्थान में बड़े स्तर पर काम शुरू हो गया है. चौंकिये, मत... जो होने जा रहा है, वो सभी मायनों में जायज है. इसे बहुत पहले हो जाना चाहिये था और इससे राजस्थान के किसानों को बड़ा फायदा होगा.
आइये समझते हैं कि पूरा मामला क्या है. साथ ही जानते हैं कि कसूरी मेथी क्या है. मेथी के साथ ये कसूरी नाम कहां से जुड़ा है. बाजार में बिक रही कसूरी मेथी कहां से आती है और नागौरी मेथी ने अब कैसे और कहां से एंट्री ली है.
पाकिस्तान के लाहौर शहर के बारे में तो सब जानते ही हैं. इस शहर के दक्षिण में करीब 50 किलोमीटर चलने पर एक शहर है, जिसे कुसूर नाम से जाना जाता है. ये पाकिस्तान का 24वां सबसे बड़ा शहर है. यहां सदियों से मेथी का उत्पादन बड़े स्तर पर होता रहा है. आजादी के पहले से ही यहां पर पैदा होने वाली मेथी अपनी खुशबू की पूरी दुनिया में छाप छोड़ती आ रही है और कसूरी मेथी के तौर पर इसे विश्वभर में पहचान मिली हुई है. लेकिन आजादी से पहले तक कसूरी मेथी भारत का अपना ब्रांड था. लेकिन, 1947 में बंटवारे के बाद कसूर शहर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. बावजूद इसके, कसूरी मेथी का नाम भारत और भारतीयों की जुबां पर देसी ब्रांड के तौर पर जुड़ा रहा.
आजादी के बाद से लंबे समय तक कसूरी मेथी भारत और पाकिस्तान की साझी विरासत रही. कई अन्य शहरों की मेथी भारतीय बाजारों में कसूरी मेथी के नाम से बिकती रही. लेकिन, 21 वीं सदी में पाकिस्तान ने कसूरी मेथी पर अपना दावा मजबूत किया. जिसके तहत पाकिस्तान कुसूर को मेथी के लिए जीआई टैग दिलवा चुका है. इस वजह से मौजूदा समय में कसूरी मेथी पाकिस्तान की पहचान बन चुकी है.
अब बात करते हैं नागौरी पान मेथी की. असल में नागौरी मेथी किसी भी सूरत में कसूरी मेथी से कम नहीं है. दोनों का स्वाद और खुशबू एक जैसी है. दोनों ही पान मेथी हैं. दरअसल, इन दोनों ही शहरों में एक बात समान है. दोनों ही शहरों की जलवायु पान मेथी की किस्म का उत्पादन करने में सक्षम है. नागौर में जिस मेथी का उत्पादन किया जा रहा है, वो स्वाद से लेकर खुशबू में कसूरी मेथी की तरह ही उम्दा है, लेकिन नागौरी मेथी का क्रेडिट भी पाकिस्तान का कुसूर खा जाता है.
भारतीय बाजारों में कसूरी मेथी के नाम से बिक रही मेथी का अधिकांश हिस्सा असल में नागौरी मेथी ही है. लेकिन, इसका ब्रांड नेम कसूरी मेथी है. असल में राजस्थान के नागौर जिले में 1970 के दशक से मेथी की खेती हाे रही है. नागौर के ताऊसर गांव से इसका उत्पादन शुरू हुआ था. तब भारत में इसे कसूरी मेथी के नाम से ही बेचा और प्रचारित किया गया. शुरुआती दौर में ताऊसर के किसान घरों में मसाले के लिए कुछ क्यारियों में इस मेथी को उगाते थे.
घरों से निकलकर यह स्थानीय बाजार में पहुंची. इसके बाद अच्छे स्वाद के कारण आस-पास के क्षेत्रों में भी पान मेथी पहुंची. अब ताऊसर के अलावा दर्जनों गांव कुचेरा, खजवाना, जनाणा, रूण, इंदोकली, ढाढरिया कलां, खुड़खुड़ा, देशवाल जैसे दर्जनों गांव में पान मेथी उगाई जा रही है.
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नागौरी पान मेथी को 2020 में ही यह नाम मिला है. यह नाम इसे राजस्थान एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड द्वारा इसे नोटिफाइड कमोडिटी में शामिल करने के बाद मिला है. नोटिफाई होने के बाद इसे फसल का दर्जा मिला. इससे पहले नागौरी पान मेथी का कोई आधिकारिक नाम नहीं था और इसे घास की श्रेणी में रखा जाता था. अब इसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए जोधपुर के दक्षिण एशिया जैव प्रोद्योगिकी संस्थान में रिसर्च शुरू की जा रही है. इसीलिए नागौरी पान मेथी की चर्चा है.
किसान तक ने इस संस्थान के डायरेक्टर भागीरथ चौधरी से बात की. वे बताते हैं कि नागौर के मूंडवा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति लगभग वैसी ही है, जैसी पाकिस्तान के कुसूर शहर की हैं. वहां भी मेथी उगाई जाती है और यहां भी वैसे ही स्वाद की मेथी पैदा की जाती है, लेकिन वहां के जीआई टैग को यहां इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसीलिए पहले इसे नोटिफाइड कमोटिडी में शामिल कराया गया. फिर 2021 में मूंडवा क्षेत्र में एक जगह राज्य सरकार ने इसकी खरीद-बिक्री के लिए दी.”
भागीरथ आगे जोड़ते हैं, “नागौरी पान मेथी को फसल के रूप में पहचान दिलाने का पूरा श्रेय यहां के किसानों को जाता है. लेकिन, अब इसे भारत सरकार के मसाला बोर्ड की सूची में शामिल करवाना और जीआई टैग दिलवाना है. यह टैग मिलने के बाद नागौरी पान मेथी के नाम का उपयोग इस भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के अलावा कोई और नहीं कर सकेगा. इससे पान मेथी को पहचान मिलेगी और मांग में भी बढ़ोतरी होगी.”
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किसान तक ने नागौरी पान मेथी के बारे में ज्यादा जानने के लिए नागौर कृषि विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विकास पावड़िया से बात की. उन्होंने बताया कि इसे पान मेथी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके पत्ते छोटे होते हुए भी पान के पत्ते जैसी आकृति के होते हैं. नागौर जिले में पान मेथी के उत्पादन से करीब चार हजार किसान जुड़े हैं. लगभग 3500 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है.
किसानों के अलावा हजारों की संख्या में इससे लेबर भी जुड़ी है जो खेतों से मंडी तक में इससे जुड़े कामों में लगी है. डॉ. विकास बताते हैं कि नागौरी पान मेथी का कम से कम 150 करोड़ का कारोबार है. यहां से मेथी दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में जाकर री-पैकिजिंग की जाती है और फिर उसे बाजार में उतारा जाता है.
नागौर के बलाया गांव के रहने वाले किसान देवाराम काला 10 बीघा खेत के मालिक हैं. किसान तक से बातचीत में वे बताते हैं, " नागौरी मेथी देशभर में अपने स्वाद के कारण प्रसिद्ध है. इसकी बुवाई 20 अक्टूबर से पूरे नवंबर महीने तक चलती है. हर हफ्ते स्प्रिंगलर से सिंचाई की जाती है. बुवाई के आधार पर 15 नवंबर के बाद से बाजार में फसल आनी शुरू हो जाती है."
देवाराम बताते हैं कि नागौरी मेथी की सात से आठ कटिंग होती हैं. पहली पांच कटिंग तक मेथी का भाव अच्छा मिलता है. 150 से 160 रुपए प्रति किलो तक मंडी में भाव मिलता है. इसके बाद सेकेंड क्वालिटी की मेथी 130-140 रुपए प्रति किलो तक बिकती है. देवाराम जोड़ते हैं, "कई मसाला कंपनियां इस मेथी को खरीदती हैं. मैं कैच मसाला कंपनी को अपनी उपज बेचता हूं. वहीं, क्षेत्र के अधिकतर किसान एमडीएच को उपज बेचते हैं."
नागौरी पान मेथी की खरीद-बिक्री के लिए राजस्थान सरकार ने मूंडवा में 2021 में मंडी खोलने की घोषणा की थी. इसके लिए जमीन भी आवंटित हो गई, लेकिन खरीद-बिक्री शुरू नहीं हो पाई है. इसीलिए पान मेथी उगाने वाले किसान सड़क किनारे ही भाव-ताव करते हैं. मंडी नहीं होने के कारण व्यापारी मेथी का मनमाना रेट लगाते हैं. इस कारण किसानों को औने-पौने दामों पर फसल बेचनी पड़ती है.
डॉ. भागीरथ कहते हैं कि अगर इस मेथी के लिए प्रोसेसिंग यूनिट्स, विशेष मंडी, बाजार व्यवस्था और फूड पार्क स्थापित किए जाएं तो इससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ होगा. उन्हें पैदावार का अच्छा दाम मिलेगा और मेथी के उत्पादन के साथ-साथ इसकी गुणवत्ता भी बढ़ेगी.