सफेद चना या फिर काबुली चला भी जिसे कहते हैं वो भारत की प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है, जो पोषण और आय का एक अच्छा स्रोत है. किसानों की सुविधा के लिए अब आईसीएआर-भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर ने एक नई चना किस्म विकसित की है पूर्वांच (IPFD 18-3) के नाम से. यह किस्म खासतौर पर रबी सीजन के लिए उपयुक्त है, विशेष रूप से उत्तर-पूर्व मैदान क्षेत्र के सिंचित इलाकों में. क्या है इसकी खासियत, पहचान और क्यों किसानों को चना की इस किस्म की खेती करनी चाहिए आइए जानते हैं.
1.औसत उपज
इस किस्म की औसत उपज 17.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह उन किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है जो अधिक उपज की तलाश में हैं.
2.जल्दी पकने वाली किस्म
पूर्वांच किस्म 117 दिनों में परिपक्व हो जाती है, जिससे यह रबी सीजन में समय पर फसल कटाई के लिए अनुकूल रहती है. यह सुविधा किसानों को अगली फसल की तैयारी का भी पर्याप्त समय देती है.
3.उच्च प्रोटीन सामग्री
इस किस्म में 25.7% प्रोटीन होता है, जो इसे पोषण के नजरिए से भी इसे अधिक महत्वपूर्ण बनाता है. यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है और बाजार में इसकी मांग अधिक हो सकती है.
पूर्वांच किस्म को उत्तर-पूर्व मैदान क्षेत्र के सिंचित क्षेत्रों में लगाने की सिफारिश की गई है. यह विशेष रूप से इन राज्यों के लिए उपयुक्त है:
इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी इस किस्म के लिए अनुकूल पाई गई है.
चना की नई किस्म पूर्वांच (IPFD 18-3) किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है, जो अधिक उपज, कम रोग, और पोषण से भरपूर उत्पादन चाह रहे हैं. इसकी समय पर परिपक्वता और रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता इसे एक लाभकारी और टिकाऊ कृषि विकल्प बनाती है. यदि आप रबी सीजन में चना की खेती करने की सोच रहे हैं, तो पूर्वांच को ज़रूर अपनाएं और अपनी खेती को लाभदायक बनाएं.