क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन को लेकर जो डर आज से 10 साल पहले दिखाया गया था, अब वह सच होने लगा है. एक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2024 वह महीना था जब दुनिया ने सबसे ज्यादा गर्मी देखी. साल 1991 से 2020 के बीच यह दूसरा मौका था जब जुलाई के महीने में इतनी गर्मी पड़ी. कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की तरफ से आई एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. रिपोर्ट की मानें तो जुलाई में औसत तापमान 0.68 डिग्री सेंटीग्रेट ज्यादा था. कॉपरनिकस, यूरोपियन यूनियन की मौसम एजेंसी है.
कॉपरनिकस ने गुरुवार को कहा है कि पिछला महीना धरती के लिए दूसरा सबसे गर्म जुलाई महीना था. इस नए आंकड़ें ने 13 महीने के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है वह भी तब जब हर महीना सबसे गर्म था और जिसकी वजह अल नीनो मौसम पैटर्न था. कॉपरनिकस ने अपनी मंथली रिपोर्ट में कहा है कि यह महीना सन् 1850-1990 के दौर के प्री-इंडस्ट्रीयलाइजेशन से 1.48 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले 12 महीने प्री-इंडस्ट्रीयलाइजेशन औसत से 1.64 डिग्री सेल्सियस अधिक थे.
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जुलाई में दो सबसे गर्म दिन भी दर्ज किए गए. कॉपरनिकस ने हाई टेंप्रेचर के लिए मुख्य तौर पर जीवाश्म ईंधन बेस्ड उद्योगों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसेज को जिम्मेदार ठहराया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अल नीनो से सामान्य तौर पर प्रभावित न हो सकने वाले महासागरों में तापमान में असामान्य वृद्धि देखी गई. कॉपरनिकस के क्लाइमेट रिसर्चर जूलियन निकोलस ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया, 'यह अल नीनो खत्म हो गया है लेकिन ग्लोबल टेंप्रेचर में इस तरह का इजाफा, यानी काफी हद तक तस्वीर वैसी ही है जैसी एक साल पहले थी.'
उनका कहना था कि हीटवेव्स की वजह से रिकॉर्ड टेंप्रेचर तक नहीं आए हैं. लंबे समय तक चलने वाली गर्मी के मौसम का इंसानों पर असर पड़ना लाजिमी है. दक्षिणी और पूर्वी यूरोप, अमेरिका, पश्चिमी कनाडा, अफ्रीका के अधिकांश भाग, मध्य पूर्व, एशिया और पूर्वी अंटार्कटिका में औसत से ज्यादा तापमान दर्ज किया गया. उत्तर-पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी अंटार्कटिका, अमेरिका के कुछ हिस्सों, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में औसत से कम या करीब तापमान देखा गया.
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जुलाई 2024 भी उत्तरी यूरोप और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में औसत से अधिक बारिश होगी जबकि दक्षिणी और पूर्वी यूरोप में सूखे की चेतावनी जारी की गई है. आर्कटिक समुद्री बर्फ साल 2022 और 2023 की तुलना में 7 फीसदी कम है, जो कि औसत से भी बहुत कम है. हालांकि यह साल 2020 में दर्ज 14 फीसदी की गिरावट जितनी गंभीर नहीं है. अंटार्कटिक समुद्री बर्फ जुलाई में दूसरी बार सबसे कम थी.
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ग्लोबल सी टेंप्रेचर भी रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब बना हुआ है और इस जुलाई में यह पिछले साल जुलाई से सिर्फ 0.1 डिग्री सेल्सियस कम है. इससे लगातार 15 महीने से जारी नए रिकॉर्ड का सिलसिला खत्म हो गया. निकोलस ने कहा, ' हमने जो देखा वह इस बात को लेकर हैरान करने वाला था यह कितना गर्म हो गया है. इससे यह सवाल उठता है कि एल नीनो या ला नीना जैसी प्राकृतिक जलवायु पैटर्न के बाहर समुद्र में क्या हो रहा है. क्या सी वेव्स में बदलाव हो रहा है?'
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