खेती में सफलता की यह कहानी त्रिपुरा के नसीरुद्दीन की है. वे पूर्वी त्रिपुरा के कदमताल ब्लॉक में बित्रकुल काला गंगरपार गांव के रहने वाले हैं. उनका शुरू से मानना था कि खुद में भरोसा और कड़ी मेहनत की बदौलत इंसान कामयाबी को आसानी से हासिल कर सकता है. शुरू में उनकी जिंदगी ऊहापोह और अस्थिरता में गुजरी, मगर बाद में सबकुछ ट्रैक पर आ गया. इसके पीछे वे एक मंत्र को कारण बताते हैं-जहां चाह, वहां राह.
नासिर ने पढ़ाई करने की सोची, लेकिन उसमें रुकावट आ गई. इसमें आर्थिक स्थितियां भी जिम्मेदार रहीं. जैसे-तैसे सेकेंडरी स्कूल तक पहुंचे, मगर उनका पढ़ाई में मन नहीं लगा. फिर पढ़ाई भी छोड़ दी. इसके बाद उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी. वे इस सोच में पड़ गए कि जब पढ़ेंगे नहीं और नौकरी भी नहीं करेंगे तो आखिर गुजारा कैसे चलेगा.
इस बीच उनकी जिंदगी में एक टर्निंग पॉइंट आया. उन्होंने सोशल मीडिया पर कुल यानी भारतीय बेर के बारे में एक पोस्ट देखा. उस पोस्ट में बेर की खेती और उससे अच्छी कमाई का जिक्र था. फिर क्या था. नासिर ने फैसला कर लिया कि वे भी बेर की खेती करेंगे और कामयाबी हासिल करेंगे. इस तरह उनकी खेती का सफर इस सोच के साथ शुरू हो गया.
दिमाग में क्लियर विजन के साथ नासिर ने 2029 में कोलकाता से बेर की 200 पौध मंगाई. इन नर्सरियों को उन्होंने एक कानी यानी 0.4 एकड़ के खेत में लगा दिया. सालभर में ही उनकी मेहनत रंग लाने लगी. 1 जनवरी, 2020 को उन्होंने बेर की पहली उपज ली. मार्केट में अच्छे रेट पर बेचा और पहली ही उपज में उन्हें 6 लाख रुपये की कमाई हुई.
तब तक कोविड का दौर शुरू हो गया. हालांकि नासिर इस महामारी से भी नहीं डरे और अपने मिशन में लगे रहे. पहली उपज से हुई कमाई से खुश नासिर ने 2 एकड़ में बेर की पौध लगाई. धीरे-धीरे उन्होंने बेरों की संख्या को बढ़ाकर 1,000 पौधों तक पहुंचा दिया. उनकी सोच और मेहनत लगातार रंग लाई और आज उन्हें इसका इनाम भी मिल रहा है. सबकुछ काट-छांट कर नासिर बेर की खेती से हर साल 8-9 लाख रुपये कमाते हैं.
नासिर ने बेर की बिक्री के लिए अपना एक खास मॉडल भी बनाया है जिसे डायरेक्ट कंज्यूमर मॉडल नाम दिया है. आज वे सीधे ग्राहकों को 100 रुपये किलो बेर बेचते हैं. एक पौधे से उन्हें हर साल 30-40 किलो बेर मिलता है. आज उनके बाग का इतना नाम हो गया है कि हर दिन वहां 50-60 खरीदार आते हैं. अभी तक उन्होंने 120 क्विंटल कुल यानी बेर की बिक्री कर दी है. उनका कहना है कि किसी 'सेल्फ मेड फार्मर' के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है.
नासिर की यह खेती केवल उन तक ही सीमित नहीं है बल्कि कई किसानों को वह ट्रेनिंग देने के साथ कुल लगाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं. आज नासिर अपनी तरह बाकी किसानों को बेर की एक पौध 100 रुपये में बेच रहे हैं. बेर बेचने के अलावा पौध से भी उनकी कमाई बढ़ रही है. नासिर कहते हैं कि लोगों को सिर्फ सरकारी नौकरी के पीछे नहीं भागना चाहिए बल्कि खेती में भी अपना भविष्य बनाया जा सकता है.
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