देश में खेती और किसान दोनों ही अब बदल रहे हैं. किसानी के पेशे में अब युवा भी आने लगे हैं. ये युवा पढ़े-लिखे हैं और अपने खेतों में नवाचार कर रहे हैं. इन्हीं नवाचारों से इन्होंने खेती को प्रोफिटेबल बनाया है. राजस्थान के चूरु जिले में ऐसे ही एक युवा किसान विकास रणवां हैं. MCA पास आउट विकास पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती करते हैं. यहीं वजह है कि उन्हें सामान्य किसानों की तुलना में फसल का अधिक भाव मिलता है. ये ही नहीं फसल के साथ-साथ विकास पशुपालन से भी मुनाफा कमा रहे हैं. फिलहाल विकास के पास 15 गाय हैं.
विकास राजस्थान यूनिवर्सिटी से एमसीए पास आउट हैं. इससे पहले उन्होंने अपनी बीसीए भी राजस्थान यूनिवर्सिटी से की. पढ़ाई पूरी करने के बाद विकास ने आईटी कंपनी टीसीएस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी करने लगे,लेकिन, बाद में नौकरी छोड़ कर बीते एक दशक से ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं. विकास किसान तक से बातचीत में बताते हैं कि उनकी शुरूआती पढ़ाई चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल से हुई. फिर उच्च शिक्षा जयपुर में राजस्थान यूनिवर्सिटी से पूरी की.
किसान तक से बातचीत में विकास खेती शुरू करने के बारे में बताते हैं. वे कहते हैं, “एक बार मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ दिल्ली स्थित पूसा संस्थान में गया. वहां कुछ कृषि वैज्ञानिकों ने खेती के नए तरीकों के बारे में बताया. फिर 2010 में चुरू वापस आकर मैंने एक दोस्त के साथ मिलकर डेयरी शुरू की. इसमें हमारे पास 55 से ज्यादा अमेरिकन गायें हो गईं. इन गायों के गोबर से वेस्ट डिकम्पोजर बनाया और इसी को खेतों में खाद के रूप में उपयोग करने लगे.”
विकास बताते हैं कि आमतौर पर किसान अपने पशुओं के गोबर का ढेर लगा देते हैं और फिर उसे खाद के तौर पर उपयोग करते हैं. यह तरीका ज्यादा प्रभावी नहीं है. इसकी बजाय बायो डिकम्पोजर का उपयोग करके बनाई खाद ज्यादा गुणवत्ता वाली होती है. बायो-डिकम्पोजर में 6-7 बैक्टीरिया होते हैं, जो गोबर को बेहतर उर्वरक में बदलते हैं. हरियाणा-पंजाब में पराली निस्तारण के लिए भी यही डिकम्पोजर काम लिया जा रहा है, जिससे अब पराली से प्रदूषण की समस्या से कुछ हद तक निजात मिली है.”
विकास कहते हैं कि ऑर्गेनिक खेती से मेरी पैदावार काफी बढ़ी है. चुरू जैसे क्षेत्र में एक बीघा में 7-8 क्विंटल तक गेहूं पैदा होता है, लेकिन बायो-डिकम्पोजर खाद के कारण मेरी पैदावार 14 क्विंटल प्रति बीघा तक हो रही है. बीते साल गेहूं का भाव 2500 रुपए क्विंटल था, लेकिन मैंने 3800 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में अपनी फसल बेची.
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वहीं, सरसों 5-6 क्विंटल प्रति बीघा होती है. जो सामान्य से ज्यादा है. वे बताते हैं कि मेरी पैदावार की एडवांस बुकिंग होती है. गाय का घी 1500 रुपए किलो तक बेच रहा हूं.
विकास बताते हैं कि चुरू में खारे पानी और मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण खेती सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन किसान यदि परम्परागत खेती के साथ-साथ उन्नत तकनीक अपनाएं और नवाचार पर ध्यान दें तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. सरकार नैनो यूरिया पर फोकस कर रही है,लेकिन किसान अभी भी दाने पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं. जबकि, नैनो ज्यादा बेहतर है. खेती में देसी तौर-तरीकों के साथ उन्नत और आधुनिक तकनीक पर ध्यान और अपने ज्ञान का पूरा उपयोग जरूरी है.
खेती और पशुपालन का चोली-दामन का साथ है. विकास समझाते हुए कहते हैं कि खेती के बिना पशुपालन और पशुपालन के बिना खेती मुश्किल है. इसीलिए शुरूआत में उन्होंने डेयरी का काम शुरू किया. उनके पास करीब 55 अमेरिकन गाय थीं, लेकिन, इनका दूध की गुणवत्ता रास नहीं आई. इसीलिए डेयरी का काम बंद कर दिया.
फिलहाल मेरे पास 15 साहीवाल गायें हैं. इन गायों का दूध 65 रुपए प्रति लीटर और घी 1500 रुपए किलो तक बिक रहा है. साथ ही सिरोही नस्ल की 100 से अधिक बकरियां भी मेरे पास हैं.” अपने उत्पाद बेचने के लिए विकास इंटरनेट का सहारा भी लेते हैं.
विकास रणवां खुद एक सक्षम किसान हैं. लेकिन उन्होंने सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ लिया. वे बताते हैं कि ऑर्गेनिक खेती के लिए उन्होंने ड्रिप इरिगेशन और पावर रिपर के लिए अनुदान मिला. साथ ही कई अन्य योजनाओं का लाभ में इस खेती में लिया गया. विकास कहते हैं कि किसानों और पशुपालकों के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने काफी योजनाएं चलाई हुई हैं. किसान जागरुक होकर इन योजनाओं का लाभ लें तो किसानी का काम काफी सस्ता हो सकता है.
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