किसानों ने अब रासायनिक खाद वाली खेती का दायरा कम करना शुरू कर दिया है. इसका सबूत यह है कि पिछले तीन साल में ही ऐसी खेती का रकबा डबल हो गया है. खेती को जहरमुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई मुहिम रंग लाने लगी है. साल 2021-22 में इसका रकबा 59,12,414 हेक्टेयर हो गया है, जो 2020-21 में 38,08,771 और 2019-2020 में सिर्फ 29,41,678 हेक्टेयर ही था. यह रकबा प्राकृतिक खेती से अलग है. इतनी तेजी से जहरमुक्त खेती का रकबा बढ़ने को कृषि विशेषज्ञ सुखद मान रहे हैं. ऐसी खेती के मामले में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सबसे आगे हैं.
एक दौर में यहां पर जैविक खादों से ही लोग खेती करते थे. लेकिन हरित क्रांति की शुरुआत के बाद जब उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा तब रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल की अंधी दौड़ शुरू हुई. हालांकि, इसके अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से बीमारियों का भी खतरा बढ़ा और एक बार फिर से केमिकल फ्री खेती की जरूरत महसूस की जाने लगी. खासतौर पर यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल से धरती भी बंजर होने लगी. खुद प्रधानमंत्री ने कई मंचों से रासायनिक खादों का उपयोग कम करने के लिए अपील की. जिसका असर अब जमीन पर दिखने लगा है.
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रासायनिक खेती के दौर में आमतौर पर लोग जैविक खेती पर बात नहीं करते थे. लेकिन, भारत में इस तरफ सरकार का ध्यान 2004-05 में गया. जब जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना की शुरूआत की गई. नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग के मुताबिक 2003-04 में भारत में जैविक खेती सिर्फ 76,000 हेक्टेयर में हो रही थी. जो 2009-10 में बढ़कर 10,85,648 हेक्टेयर हो गई.
इसके बाद एक बार फिर इसकी वृद्धि रुक गई. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील और जैविक उत्पादों के बढ़ते एक्सपोर्ट की वजह से एक बार फिर से इसका विस्तार शुरू हो गया है. जैविक खेती का एरिया मध्य प्रदेश में 1680510, महाराष्ट्र में 1165730, आंध्र प्रदेश में 253922, गुजरात में 604248 और ओडिशा में 225222 हेक्टेयर हो गया है.
जैविक खेती करने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) के तहत मदद मिलती है. तीन साल में प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये मिलते हैं. इसमें से किसानों को जैविक खाद, जैविक कीटनाशकों और वर्मी कंपोस्ट आदि खरीदने के लिए 31,000 रुपये (61 प्रतिशत) मिलता है. जबकि मिशन आर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ इस्टर्न रीजन के तहत किसानों को जैविक इनपुट खरीदने के लिए तीन साल में प्रति हेक्टेयर 7500 रुपये की मदद दी जाती है.
रासायनिक खादों का उपयोग न करना ही जैविक खेती नहीं है. आपका का जैविक उत्पाद तभी बिकेगा जब इसका प्रमाण पत्र होगा कि आपकी फसल जैविक है. यानी इसके लिए सर्टिफिकेशन की जरूरत होती है. इसके लिए सरकार ने कुछ संस्थाओं को काम दिया है. प्रमाण पत्र लेने से पहले खाद, बीज, मिट्टी, बुवाई, सिंचाई, कटाई, कीटनाशक और पैकिंग आदि हर कदम पर जैविक सामग्री जरूरी है. आपने उत्पादन के लिए आर्गेनिक चीजों का ही इस्तेमाल किया है इसके लिए इस्तेमाल की गई सामग्री का रिकॉर्ड रखना होता है. एपीडा ने आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए कई एजेंसियों को काम दिया है.
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